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स्वामी-हर
जैन पुराणकोश : ४७७
स्वामी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
१७२ स्वायम्भुव-(१) वृषभदेव द्वारा बनाया गया एक अनुपलब्ध व्याकरण शास्त्र । इसमें सौ से भी अधिक अध्याय थे। मपु० १६.११२
(२) वृषभदेव के बावनवें गणधर । हपु० १२.६४ । स्वास्थ्यभाक्-सौधर्मेन्द्र द्वारा वृषभदेव का एक नाम । मपु. २५.१८५ स्वाहा-चक्रपुर नगर के राजा चक्रध्वज के पुरोहित धूमकेश को स्त्री।
इसके पुत्र का नाम पिंगल था । पपु० २६.४, ६, दे० पिंगल
हंस-एक द्वीप । यह लंका द्वीप के समीप था। यहाँ समस्त ऋद्धियाँ
और भोग उपलब्ध थे । वन-उपवन से यह विभूषित था। राम ने लंका में प्रवेश करने के पूर्व यहाँ ससैन्य विश्राम किया था। पपु०
४८.११५, ५४.७६ हंसगर्भ-विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी का दसवाँ नगर । मपु० १९.
७९, ८७, हपु० २२.९१ हंसद्वीप-(१) अमररक्ष विद्याधर के पुत्रों के द्वारा बसाये गये दस नगरों में पाँचत्रों नगर । पपु० ५.३७१-३७२
(२) रावण का अधीनस्थ एक राजा । पपु० १०.२४ (३) एक द्वीप । यह लंका के पास था। हंसपुर इस द्वीप को राजधानी था । पपु० ५४.७६-७७ दे० हंस हंसध्वज-वस्त्र असते हुए हंसों से चित्रित समवसरण की ध्वजायें ।
मपु० २२.२२८ हंसपुर-हंसद्वीप का एक नगर । यहाँ का राजा हंसरथ था। पपु०
५४.७६-७७ दे० हंस हंसरय-लंका के पास स्थित हंसद्वीप के हंसपुर नगर का राजा । इसे
राम के सहायक विद्याधरों ने पराजित किया था। पपु० ५४.७६
७७ हंसावली-विदेहक्षेत्र को एक नदी । रक्षावर्त पर्वत इसी नदी के किनारे __है । पपु० १३.८२ हक्का-राम के समय का एक वाद्य । यह सैन्य-प्रस्थान के समय बजाया
जाता था । पपु० ५८.२७ इतवुर्नय-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु०
२५.२१० हनुमान्-(१) मानुषोत्तर पर्वत की ऐशान दिशा में स्थित वज्रक कट का निवासी एक देव । हपु० ५.६०६
(२) विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित आदित्यपुर नगर के राजा प्रह्लाद और रानी केतुमती का पौत्र तथा वायुगति अपर नाम पवनंजय तथा महेन्द्र नगर के राजा महेन्द्र की पुत्री अंजना का पुत्र । इसका जन्म चैत मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रात्रि के अन्तिम प्रहर में पर्यक गुहा में हुआ था। हनुरुहद्वीप का निवासी प्रातसय विद्याधर इसका नाना था। अपने नाना के घर जाते हए
यह विमान से नीचे गिर गया था। इसके गिरने से शिला चूर-चूर हो गयी थी किन्तु इसे चोट नहीं आई थी। यह शिला पर हाथ-पैर हिलाते हुए मुंह में अंगूठा देकर खेलता रहा । श्रीशैल पर्वत पर जन्म होने तथा शिला के चूर-चूर हो जाने से माता ने इसे श्रीशैल तथा हनुरूह नगर में जन्म संस्कार होने से हनुमान् कहा था। यह रावण की महायता के लिए लंका गया था, वहाँ इसने बरुण राजा के सौ पुत्रों को बांध लिया था। चन्द्रनखा की पुत्री अनंगपुष्पा, किष्कुपुर नगर के राजा नल को पुत्री हरिमालिनी और किन्नर जाति के विद्याधरों की अनेक कन्याओं को इसने विवाहा था। इसकी एक हजार से भी अधिक स्त्रियाँ थीं। सीता के पास राम का सन्देश यह ही लंका ले गया था। राम की ओर से इसने युद्ध कर माली को मारा था। कुम्भकर्ण द्वारा बांध लिए जाने पर अवसर पाकर यह बन्धनों से मुक्त हो गया था। रावण की विजय के पश्चात् अयोध्या आने पर राम ने इसे श्री पर्वत का राज्य दिया था। अन्त में मेरु वन्दना को जाते समय उल्कापात देखकर यह विरक्त हो गया था और चारण ऋद्धिधारी धर्मरत्न मुनि से इसने दीक्षा ले ली थी। पश्चात् यह मुक्त हुआ । छठे पूर्वभव में यह दमयन्त राजपुत्र तथा पाँचवें पूर्वभव में देव हुआ था। चौथे में सिंहचन्द और तीसरे में पुनः देव हुआ। दूसरे पूर्वभव में सिंहवाहन राजपुत्र तथा प्रथम पूर्वभव में लान्तव स्वर्ग में देव था। इसका अपर नाम अणुमान् था। पपु० १५.६-८, १३.१६, २२०, १६.२१९, १७.१४१-१६२, २१३, ३०७, ३४५-३४६, ३६१-३६४, ३८२-३९३, ४०२-४०३, १९. १.३-१५, ५९, १०१-१०८, ५३.२६, ५०-५५, ६०.२८, ११६११८, ८८.३९, ११२.२४, ७५-७८, ११३.२४-२९, ४४-४५ दे०
अणुमान् हनूरुहद्वोप-एक द्वीप । यहाँ हनुमान की माता अंजना के मामा प्रतिसर्य
का राज्य था। हनुमान् का यहाँ जन्म संस्कार हुआ था । इसीलिए इस द्वीप के नाम पर अणुमान् का 'हनुमान' नामकरण हुआ था।
पपु० १७.३४४-३४६,४०३ हय-दशानन का पक्षधर एक राजा । इसने इन्द्र विद्याधर को पराजित
करने में रावण का साथ दिया था। मपु० १०.३६-३७ हयग्रीव-(१) अश्वग्रीव विद्याधर का अपर नाम । मपु० ५७.८७-९० दे० अश्वग्रीव
(२) अनागत आठवाँ प्रतिनारायण । हपु० ६०.५६९-५७० हयपुर-विजया का एक नगर । श्रीपाल यहाँ से ही सुसीम पर्वत गये
थे। मपु० ४७.१३२-१३४ हयपुरी-राजा सुमुख की राजधानी । गान्धार देश की पुष्कलावती नगरी
का राजकुमार हिमगिरि अपनो बहिन गान्धारी को इसी नगरी के राजा से विवाहना चाहता था किन्तु कृष्ण हिमगिरि को मारकर
गान्धारी को हर लाये थे और उन्होंने उसे विवाह लिया था। हपु० ___४४.४५-४८ हर-(१) भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम ।
मपु० २४.३६, २५.१६३
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