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सूविर
स्त्रियों का मरण छींक लेकर होता है। पति-पत्नी दोनों एक साथ उत्पन्न होते और एक साथ ही मरकर स्वर्ग जाते हैं । मपु० ३.२२४३, पपु० २०.८०, वीवध० १८.८५ - ९३
सुषिर ---तत, अवनद्ध घन और सुषिर इन चार प्रकार के वाद्यों में बाँस से निर्मित वीणा आदि वाद्य । धपु० १७.२७४, हपु० १९. १४२-१४३
सुषेण - (१) राजा शान्तन का पौत्र और महासेन का पुत्र । हपु०
४८.४०-४१
(२) राम का पक्षधर एक योद्धा । यह महासैनिकों के मध्य रथ पर सवार होकर रणांगण में पहुँचा था । पपु० ५८.१३, १७
(३) जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के कनकपुर नगर का राजा । इसकी एक गुणमंजरी नाम की नृत्यकारिणी थी। भरतक्षेत्र के विध्यशक्ति ने इससे युद्ध किया और युद्ध में इसे पराजित कर बलपूर्वक इससे इसकी नृत्यकारिणी को छीन लिया था। इस घटना से दुखी होकर इसने सुव्रत जिनेन्द्र से दीक्षा ले ली थी तथा वैरपूर्वक मरकर यह प्राणत स्वर्ग में देव हुआ था । स्वर्ग से चयकर द्वारावती नगरी के राजा ब्रह्म की दूसरी रानी उषा का द्विपृष्ठ नाम का नारायण पुत्र हुआ । मपु० ५८.६१-८४
(४) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश के अरिष्टपुर नगर के राजा वासव और रानी वसुमती का पुत्र । इसकी माता इसके मोह में पड़कर दीक्षा न ले सकी थी। मपु० ७१.४०० - ४०१ •सुषेणा - जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की श्रावस्ती नगरी के राजा दृढ़राज की रानी तीर्थंकर शंभवनाथ इनके पुत्र थे । मपु० ४९.१४-१५, १९ सुसंयुतसोमेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। ० २४.१४० - सुसिद्धार्थ - नौवें बलभद्र बलराम के गुरु । पपु० २०. २४७
- सुस्थित - ( १ ) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित पोदनपुर नगर का राजा । इसकी रानी सुलक्षणा और पुत्र सुप्रतिष्ठ था । मपु० ७०.१३८-१३९ (२) लवण समुद्र का स्वामी एक व्यन्तर देव । हपु० ६३७, ५४.३९
(३) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १८५
सुस्थिर - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०३ - सुसोमा - ( १ ) सुराष्ट्र देश की अजापुरी नगरी के राजा राष्ट्रवर्धन
और विनया रानी की पुत्री । यह नमुचि की बहिन थी । कृष्ण ने नमुचि को मार कर इसे अपनी पटरानी बना लिया था । मपु० ७१. ३८६-३९७ ० ४४.२६-३१० नमु
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(२) एक नगरी । यह घातकीखण्ड द्वीप में पूर्वविदेह क्षेत्र के वत्स देश की राजधानी थी । मपु० ५२.२-३ ५६.२, ६३.२०९, हपु० ५. २४७, २६९
(३) जम्बूद्वीप की कौशाम्बी नगरी के राजा धरण की रानी । यह तीर्थंकर पद्मप्रभ की जननी थी । मपु० ५२.१८-१९, २१, २६, पपु० २०.४२
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जैन पुराणकोश : ४६३
(४) जम्बूद्वीप के विजयापर्यंत की पूर्व दिशा की ओर नीलगिरि को पश्चिम दिशा में विद्यमान एक देश । श्रीपाल ने यहाँ अपने चक्रवर्ती होने का प्रमाण दिया था। मपु० ४७.६५-६७
(५) जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र की अयोध्या नगरी के राजा श्रीवर्मा की रानी । श्रीधर्मा इसका पुत्र था । मपु० ५९.२८२-३८३
(६) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में महावत्स देश की मुख्य नगरी । मपु० १०.१२१-१२२
सुसेन - राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारों का तैंतालीसवाँ पुत्र । पापु
८. १९८
सौम्यात्मा धर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम ०२५.
१२८
सुहस्त – राजा धृरराष्ट्र और रानी गान्धारी का छियासठवां पुत्र | पापु०
८.२०१
सुहित - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७८ सुह्य - भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक देश । इसका निर्माण तीर्थंकर वृषभदेव के समय में हुआ था । मपु० १६.१५२ सुह्य - भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड का देश इसका निर्माण वृषभदेव के समय में हुआ था । पपु० १०१.४३
सुहृत् — सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १७८ सुकरिका - भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी । दिग्विजय के समय
भरतेश की सेना यहाँ आयी थी । मपु० २९.८७
सूक्ष्म - (१) भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । भ० २४.३८, २५.१०५
(२) पुद्गल द्रव्य के छः भेदों में दूसरा भेद । अनन्त प्रदेशों के समुदाय रूप होने से कर्मों के इन्द्रिय अगोचर स्कन्ध सूक्ष्म होते हैं । मपु० २४.१४९-१५०, वीवच० १६.१२०
(३) एकेन्द्रिय जीवों के सूक्ष्म और बादर इन दो भेदों में प्रथम भेद । मपु० १७.२४, पपु० १०५.१४५ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति शुक्लान के चार भेदों में इस नाम का तीसरा भेद । सब प्रकार के वचनयोग, मनोयोग और बादर काययोग को त्यागकर सूक्ष्मकाय योग का आलम्बन लेकर केवली इस ध्यान को स्वीकार करते हैं, परन्तु जब उनकी आयु एक अन्तमुहूर्त मात्र शेष रहती है तब समुद्घात के द्वारा अघातिया कर्मों की स्थिति को समान करके अपने पूर्व शरीर प्रमाण होकर सूक्ष्म काययोग से यह ध्यान करते हैं । मपु० २१.१८८-१९५, हपु० ५६.७१-७५ सूक्ष्मदर्शी - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. २१६ सूक्ष्मनिगोदियाल पर्याप्त एकेन्द्रिय जीवों का एक भेद इनका शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग बराबर होता है और उत्पन्न होने के तीसरे समय में वह जघन्य अवगाहना रूप होता है । उत्कृष्ट अवगाना एक योजन और एक कोश की होती है। हपु० ५८.७३-७५ सूक्ष्मत्व सिद्ध जीवों के आठ गुणों में पाँचवाँ गुण । मपु० २०.२२२२२३
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