________________
सुदर्शना-सुधौतकलधौतथी
सुदर्शना-(१) तीर्थंकर वृषभदेव की पालकी । मपु० १६.९३-९४, ९८- १००, हपु० ९.७७
(२) सद्भद्रिलपुर नगर के धनदत्त सेठ को ज्येष्ठ पुत्री । सुज्येष्ठा की यह बड़ी बहिन थी। इन दोनों बहिनों ने दीक्षा ले ली थी तथा तीव्र तपश्चरण करके दोनों अच्युत स्वर्ग में देव हुई। मपु० ७०.१८२१९६, हपु० १८.११२-११३, ११७, १२२-१२३ ।
(३) विराटनगर के राजा विराट की रानी। यह कीचक की बहिन थी । हपु० ४६.२३, २६-२८
(४) सन्ध्याकार नगर के राजा सिंहघोष की रानी । यह हृदयसुन्दरी की जननी थी। हपु० ४५.११४-११५
(५) नन्दीश्वर द्वीप की उत्तरदिशा संबंधी अंजनगिरी की उत्तर दिशा में स्थित वापी । हपु० ५.६६४
(६) एक गणिनी । विदेहक्षेत्र की अयोध्या नगरी के राजा जयवर्मा की रानी सुप्रभा ने इनके पास रत्नावली व्रत के उपवास किये थे । मपु० ७.३८-४४
(७) खड्गपुर नगर के राजा सोमप्रभ की रानी। पुरुषोत्तम नारायण के भाई सुप्रभ की यह जननी थी। मपु० ६७.१४१-१४३, पपु०२०.२३८-२३९
(८) ब्रह्म स्वर्ग के विद्युन्माली इन्द्र की चार प्रमुख देवियों में एक देवी । मपु० ७६.३२-३३
(९) एक आर्यिका । पपु० १०६.२२५-२३३ दे० सुदर्शन-२०
(१०) काकन्दी नगरी के राजा रतिवर्धन की रानी । इसके प्रियंकर और हितकर दो पुत्र थे । यह पति और पुत्रों के दीक्षित हो जाने पर उनके वियोग में दुखी होकर निदानवश अनेक योनियों में भ्रमण करने के पश्चात् मनुष्यगति में पुरुष होकर पुण्यवशात् सिद्धार्थ क्षुल्लक हुई । पपु० १०८.७, ४७-४९ सुदुःसह-राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का बारहवाँ पुत्र । पापु०
८.१९९ सुदेव-शामली नगर के दामदेव ब्राह्मण का कनिष्ठ पुत्र । वसुदेव का
यह छोटा भाई था । इसकी स्त्री प्रियंगु थी। पपु० १०८.३९-४१ सुदेवी-वरुण लोकपाल की रानी। इसकी पुत्री सत्यवती का विवाह
रावण के साथ हुआ था। पपु० १९.९८ सुदृष्टि-(१) भदिल नगर का एक श्रेष्ठी । इसकी स्त्री का नाम अलका
था। सुनैगम देव के द्वारा देवकी के युगल पुत्र इसकी पत्नी के पास तथा इसके मृत पुत्र देवकी के पास स्थानान्तरित किये गये थे । देवकी के पुत्रों के बड़े होने पर इसे अपूर्व वैभव प्राप्त हुआ । मपु० ७१.२९३२९६, हपु० ३५.४-५, ९
(२) गजपुर नगर के राजा सुप्रतिष्ठ और रानो सुनन्दा का पुत्र । इसका पिता इसे राज्य लक्ष्मी देकर दीक्षित हो गया था। मपु०७०. ५१-५७, हपु० ३४.४३, ४६-४७
(६) कृष्ण का पक्षधर एक राजा । यह युद्ध करने कुरुक्षेत्र पहुँचा था । मपु० ७१.७४
जैन पुराणकोश : ४४९ सुधर्म-(१) तीर्थकर महावीर के ग्यारह गणधरों में गौतम इन्द्रभूति गणधर से प्राप्त श्रुत के धारक दूसरे गणधर । इनसे जम्बूस्वामी अन्तिम केवली ने श्रुत धारण किया था। मपु० १.१९९, ७४.३४, हपु० १.६०, ३.४२, वीवच० १.४१-४२, १९.२०६
(२) एक मुनिराज । गिरिनगर के राजा चित्ररथ ने इनके उपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा ले ली थी। चित्ररथ के रसोइए ने इन्हें कड़वी तुम्बी-आहार में दी थी जिससे इनके शरीर में विष फैल गया था । अपना मरण निश्चित जानकर इन्होंने ऊर्जयन्तगिरि पर समाधिमरण किया और ये अहमिन्द्र हुए। मपु० ७१-२७१-२७५, हपु० ३३.१५०-१५५
(३) महावीर के निर्वाण के पश्चात् हुए दस पूर्व और ग्यारह अंगधारी ग्यारह मुनियों में अन्तिम मुनि । वीवच० १,४६
(४) सातवें बलभद्र नन्दिषेण के पूर्वजन्म के दीक्षागुरु । पपु० २०.२३५
(५) तीसरे बलभद्र के दीक्षागुरु । पपु० २०.२४६-२४७ (६) तीर्थकर धर्मनाथ का पुत्र । मपु० ६१.३७
(७) एक मुनि । इनसे रत्नपुर नगर के राजा मणिकुण्डली के दोनों पुत्र दीक्षित हुए थे। मपु० ६२.३६९-३७३
(८) पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा श्रीधर के दीक्षागुरु । मपु० ७.१४, १६
(९) तीसरे बलभद्र । इनका अपर नाम धर्म था। मपु० ५९.६३, ७१, हंपु० ६०.२९० सुधर्मक-बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के एक गणधर । हपु० ६०.३४७ सुधर्ममित्र-एक मुनि । ग्यारहवें चक्रवर्ती जयसेन के पूर्वभव के ये
दीक्षागुरु थे। पपु० २०.१८८-१८९ ।। सुधर्मसेन-लोहाचार्य के पश्चात् हुए अनेक आचार्यों में एक आचार्य
इनके पूर्व श्रीधरसेन तथा बाद में सिंहसेन आचार्य हुए । हपु०
६६.२८ सुधर्मा-(१) समवसरण की एक सभा। यह विजयदेव के भवन से
उत्तरदिशा में स्थित है। यह छः कोश लम्बी, तीन कोश चौड़ी, नो कोश ऊँची और एक कोश गहरी है । इसके उत्तर में एक जिनालय है । हपु० ५.४१७
(२) रथनपुर नगर के राजा सहस्रार के पुत्र इन्द्र को एक सभा । पपु०७.१-२, १८, २८ सुधाम-समवसरण में सभागृहों के आगे स्थित स्फटिक द्वार के आठ
नामों में तीसरा नाम । हपु० ५७.५९ सुधी-(१) एक नृप । यह राम के भाई भरत के साथ दीक्षित हो गया था । पपु० ८८.४
(२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १२५, १७१ सधौतकलधौतधी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.२००
Jain Education Interational
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org