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शंबर-शक
जैन पुराणकोश : ३९३
पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव, दूसरे पूर्वभव में राजपुत्र कैटभ और प्रथम पूर्वभव में अच्युतेन्द्र हुआ था । इसका अपर नाम शंभव था । मपु० ७२.१७४-१७५, १८९-१९१, हपु० ४३.१००, ११५, १४८१४९, १५८-१६०, २१६-२१८, ४८.४-२०, ६१.४९-५५, ६८, ६५.१६-१७ शंबर-(१) सुप्रकारनगर का एक विद्याधर राजा । श्रीमती इसकी
रानी तथा लक्ष्मणा पुत्री थी। कृष्ण इसके दामाद थे। मपु० ७१. ४०९-४१४
(२) तीर्थकर पार्श्वनाथ के पूर्वभव का भाई एक ज्योतिष देव । इसने पार्श्वनाथ पर अनेक उपसर्ग किये थे । पार्श्वनाथ को केवलज्ञान हो जाने पर उनसे क्षमा याचना कर यह सम्यक्त्त्वी हो गया था। मपु० ७३.११७-११८, १३६-१३८, १४५-१४६, १६८
(३) राम का पक्षधर एक योद्धा । पपु० ६६.२५ शंबुकुमार यादवों का पक्षधर एक राजा । इसने क्षेमविद्व विद्याधर से युद्ध करके उसे रथ-विहीन करते हुए युद्धभूमि से भगा दिया था। शंब के साथ युद्ध कर रहे विद्याधर को भी इसने युद्धक्षेत्र से पलायन
करने को बाध्य किया था। पापु० १९.१११-११३ शंबूक-अलंकारपुर नगर के राजा खरदूषण तथा रावण की बहिन
दुर्नखा का ज्येष्ठ पुत्र । यह सुन्द का बड़ा भाई था। इसने सूर्यहासखड्ग की प्राप्ति हेतु दण्डक वन में क्रौंचरवा नदी और समुद्र के उत्तर तट पर एक वंश की झाड़ी में एकासन करते हुए ब्रह्मचर्य पूर्वक बारह वर्ष पर्यन्त साधना की थी। फलस्वरूप एक खड्ग प्रकट हुआ था। वह सात दिन बाद ग्राह्य होने से यह वहीं स्थिर रहा। इसी बीच लक्ष्मण इस वन में आये और खड्ग से उत्पन्न सुगंध का अनुसरण करते हुए वंश की झाड़ी के निकट पहुँचे । लक्ष्मण को खड्ग दिखाई दिया। सहज भाव से खड्ग लेकर लक्ष्मण ने खड्ग की परीक्षा के लिए उस वंश झाड़ो को काट डाला। झाड़ी के कटते ही यह भी निष्प्राण हो गया और मरकर असुरकुमार देव हुआ। पपु०
४३.४१-६१, ७३, १२३.४ शंभव-(१) भरतेश एवं सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३६, २५.७४, १००
(२) कृष्ण और उनकी पटरानी जाम्बवती का पुत्र । मपु० ७२.१७४ दे० शंब
(३) अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों में तीसरे तीर्थंकर । जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र को श्रावस्ती नगरी क राजा दृढ़राज इनके पिता और रानो सुषेणा माँ थी। ये सोलह स्वप्नपूर्वक फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन प्रातः वेला और मृगशिर नक्षत्र में गर्भ में आये थे। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पौर्णमासो के दिन मृगशिर नक्षत्र और सौम्ययोग में इन्होंने जन्म लिया था। जन्मोत्सव के समय इन्द्र ने इनका नाम शम्भव रखा था। ये दूसरे तीर्थकर अजितनाथ के बाद तीस लाख करोड़ सागर समय व्यतीत हो जाने पर उत्पन्न हुए थे। इनकी आयु साठ लाख पूर्व काल की थी। शरीर चार सौ धनुष
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ऊँचा था। आयु का चौथाई काल बीत जाने पर इन्हें राज्य मिला था। चवालीस लाख पूर्व और चार पूर्वाङ्ग काल तक राज्यशासन करने के उपरान्त एक दिन ये मेघों का विलय देखकर संसार से विरक्त हुए और इन्होंने पुत्र को अपना राज्य सौंप दिया। इसके पश्चात् सिद्धार्थ नाम को पालकी में बैठकर ये सहेतुक बन गये । वहाँ इन्होंने एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया। दीक्षा लेते ही इन्हें मनःपर्ययज्ञान हो गया। श्रावस्ती के राजा सुरेन्द्रदत्त ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये । ये चौदह वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में मौन रहे । शाल्मलि वृक्ष के नीचे कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन मृगशिर नक्षत्र में शाम के समय इन्हें केवलज्ञान हुआ । इसी दिन इन्होंने अनन्त चतुष्टयों को प्राप्त किया। इनके साथ चारुषेण आदि एक सौ पाँच गणधर, दो हजार एक सौ पचास मन पर्ययज्ञानी और बारह हजार वादी मुनि थे। संघ में धर्मा आर्यिका सहित तीन लाख बीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक और श्राविकाएँ भी थीं। ये चौंतोस अतिशय और अष्ट प्रातिहार्यों के स्वामी थे । अन्त में एक माह की आयु शेष रह जाने पर विहार करते हुए ये सम्मेदाचल आये। यहाँ इन्होंने एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण किया । चैत्र शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्यास्त वेला में ये मुक्त हुए। दूसरे पूर्वभव में ये राजा विमलवाहन और प्रथम पूर्वभव में अहमिन्द्र थे । मपु० ४९.२-५६, पपु० १.४, हपु० १.५, ६०.१३८, १५६.१८४, ३४१-३४९, वीवच० १.१३, १८.१०५ शंभु-(१) भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम ।
मपु० २४.३६, २५.१००। ' (२) रावण का एक सामन्त राजा। इसने राम के पक्ष के विशालद्यु ति योद्धा को मारा था। पपु० ५७.४५-४८, ६०.१९
(३) मृणालकुण्ड नगर के राजा वज्रकम्बु और उसकी स्त्री हेमवती का पुत्र । यह अपने पुरोहित श्रीभूति की पुत्री वेदवती में आसक्त था। वेदवती को पाने के लिए इसने रात्रि में श्रीभूति को मार डाला था तथा बलात् वेदवतो का शील भंग किया था। इसके इस कुकृत्य से रुष्ट होकर वेदवती ने आगामी पर्याय में इसके वध के लिए उत्पन्न होने का निदान किया । उसने आर्यिका होकर तप किया
और अन्त में देह त्याग कर ब्रह्म स्वर्ग में उत्पन्न हुई । वेदवती के अभाव में यह उन्मत्त हो गया। मुनियों की निन्दा करने लगा। पाप के फलस्वरूप नरक और तिर्यंचगति में भटकता रहा। अनेक पर्यायों में भ्रमण करने के पश्चात् रावण हुआ। पपु०१०६.१३३-१५७,
१७५-१७८ शंयु–भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३६ शंवद-भरतेश तथा सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु.
२४.३६, २५.१८९ शंवान्–सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०६ शक-भरतक्षेत्र का एक देश । कर्मभूमि के आरम्भ में इन्द्र ने इसका निर्माण किया था। लवणांकुश ने इस देश के राजा को पराजित किया था। मपु० १६.१५६, पपु० १०१.७९-८६
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