________________
३८४ : : जैन पुराणकोश
पूर्वक समझाया । फलस्वरूप वशिष्ठ ने उनसे दीक्षा लेकर उपवास सहित तप करना आरम्भ कर दिया था। मपु० ७०.३२२-३२८ दे० वशिष्ठ
वीरमती- जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में छत्रपुर नगर के राजा नन्दिवर्द्धन की रानी । महावीर के पूर्वभव के जीव नन्द की यह जननी थी । मपु० ७४.२४३, वीवच० ५.१३४- १३६, दे० नन्द - ९ वीरवित लोहाचार्य के पश्चात् हुए अनेक आचायों में एक आचार्य । सिंह के शिष्य तथा पद्मसेन के गुरू थे। ० ६६.२६-२७ वीरसेन - महावीर का अपर नाम । मपु० ७४.३
(२) महापुराग के कर्ता जिनसेनाचार्य के गुरु धान्य में सेनसंघ के एक आचार्यं । ये कविवृन्दावन, लोकविद्, काव्य के ज्ञाता और भट्टारक थे। इन्होंने षट्खण्डागम तथा कसायपाहुड इन सिद्धान्त ग्रन्थों की घवला, जयधव ला टीकाएँ लिखी थीं । सिद्धपद्धति ग्रन्थ की टीका का कर्ता भी इन्हें कहा गया है । मपु० १.५५-५८, ७६.५२७-५२८, प्रशस्ति २-८ हपु० १.३९
(३) राजा मान्धाता का पुत्र और प्रतिमन्यु का पिता । पपु० २२.१५५
( ४ ) वटपुर नगर का राजा। अपने यहां अयोध्या के राजा मधु के आने पर इसने उसका यथेष्ट सम्मान किया था। राजा मधु इसकी पत्नी चन्द्राभा पर आसक्त हो गया था । फलस्वरूप उसने छल-बल से चन्द्राभा को अपनी स्त्री बना ली थी। मधु द्वारा अपनी स्त्री का अपहरण किये जाने से यह विछिप्त होकर आतंध्यान से मरा और चिरकाल तक संसार में भ्रमण करता रहा । अन्त में मनुष्य पर्याय प्राप्त कर इसने तप किया। इस तप के प्रभाव से आयु के अन्त में मरकर यह धूमकेतु देव हुआ । पपु० १०९.१३५-१४८, पु० ४३.१५९-१६५, १७१-१७७, २२०-२२१
वीरांगज — पंचम काल के अन्तिम मुनि । ये चन्द्राचार्य के शिष्य होंगे । मपु० ७६.४३२
वीरांगद - भरतेश चक्रवर्ती के कराभूषण का नाम । मपु० ३७.१८५ वीराख्य- राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३३ वीर्य - ( १ ) कुरुवंश का एक राजा । इसे राजा विचित्र से राज्य मिला था । पु० ४५.२७
(२) शक्ति । इससे भयभीत प्राणियों की रक्षा की जाती है। पपु० ९७.३७
वीर्य वंष्ट्र- एक महापुरुष । रावण ने बार-बार स्तुति की थी । पपु० १३.१०३
बोपुर यादवों का एक नगर पु० ४१.४४ वीर्यप्रवपूर्वअंग प्रविष्टज्ञान के चौदह पूर्वो में तीसरा पूर्व इसमें सत्तर लाख पदों में अतिशय पराक्रमी सत्पुरुषों के पराक्रम का वर्णन है । पु० २.९८, १०.८८
वीर्यवान् राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का इकानवे पुष पापु
८.२०४
Jain Education International
वीरमती - वृद्धार्थ
वीर्याचार-मुनियों के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, रूप और वीर्य इन पांच आचारों में पाँचवाँ आचार । सामर्थ्य के अनुसार आचार का पालन करना वीर्याचार कहलाता है । हपु० २०.१७३, पापु० २३.५९ वृत्तिपरिसंख्या बाह्य तप का तीसरा भेद भोजन विषयक सुष्णा दूर करने के लिए मुनियों का आहार-वृत्ति में घरों की सीमा का नियम लेकर चर्चा के लिए जाना वृत्तिपरिसंस्थान तर कहलाता है मपु० २०. १७६, पपु० १४.११४-११५, हपु० ६४.२३, वीवच० १३.४२ वृत्रवती — जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की एक नदी । भरतेश की सेना उनकी दिग्विजय के समय इस नदी को पार करके चित्रवती नदी पर पहुँची थी । मपु० २९.५८
वृत्रसूदन – राजा सहस्रार का पुत्र इन्द्र । आत्मरक्षा के लिए विद्याधरों द्वारा सहस्रार से निवेदन किये जाने पर उसने उन्हें इसी के पास भेजा था । पपु० ७.६१-६३, दे० इन्द्र - ६ बुटिकम - चित्रकला के तीन भेदों में प्रथम भेद । सुई अथवा दन्त आदि के द्वारा चित्र बनाना वुष्किम चित्रकला कहलाती है । पपु० २४.४१ कार्यक— भरतक्षेत्र के मध्य आर्यलण्ड का एक देश तीर्थदूर महावीर विहार करते हुए यहाँ आये थे। हपु० ३.४, ११.६४ वृकोवर - पाण्डव भीम का अपर नाम । हपु० ५४.६६
वृक्षमूल - एक विद्या निकाय । धरणेन्द्र की देवी दिति ने यह विद्या-निकाय नमि और विनमि को दिया था । हपु० २२.६० वृक्षमूलयोग - वर्षा काल में वृक्ष के नीचे ध्यान करना वृक्षमूलयोग कहलाता है । मपु० ३४.१५५-१५६
वृतरथ - कुरुवंश का एक राजा । इसे राज्य शासन राजा महारथ से मिला था। हपु० ४५.२८
वृत्त - (१) पापारम्भ के कार्यों से विरक्त होने में सहायक कर्म । ये देव- पूजा आदि छः होते हैं। इनका आचरण करना वृत्त कहलाता है। मपु० ३९.२४, ५५
(२) पदगत गान्धर्व की एक विधि । हपु० १९.१४९ वृत्तलाभ-दीक्षान्वय क्रियाओं में दूसरी किया। गुरु के चरणों में नमस्कार करते हुए विधिपूर्वक व्रतों को ग्रहण करना वृत्तलाभ-क्रिया कहलाती है । मपु० ३९.३६
वृत्तायामिगिरि पर्वत पु० ५.५८८ वृत्ति - (१) वैण स्वर का एक भेद । हपु० १९.१४७
(२) वायुदेव ने प्रजा को उपदेश देते हुए उसकी आजीविका के छः साधन बताये थे । वे हैं—असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प । मपु० १६.१८०-१८१, २४२ - २४५ वृद्ध - (१) कोशल देश का एक ग्राम ब्राह्मण मृगायण इसी ग्राम का निवासी था। मपु० ५९.२०७
(२) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध देश का एक ग्राम । संयमी भगदत्त और भवदेव इसी ग्राम के थे । मपु० ७६.१५२ वृद्धार्थ - राजा वसुदेव और रानी पद्मावती का पुत्र । हपु० ४८.५६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org