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________________ जैन पुराणकोश विशल्या - राजा द्रोणमेघ की पुत्री। इसके गर्भ में आते ही इसकी माँ के रोग दूर हो गये थे । लक्ष्मण के पास इसके पहुँचते ही उसकी लगी हुई शक्ति वक्षःस्थल से शीघ्र बाहर निकल गयी थी । इससे प्रभावित होकर लक्ष्मण ने युद्ध क्षेत्र में ही इससे विवाह कर लिया था । लंकाविजय के पश्चात् अयोध्या आने पर लक्ष्मण ने इसे पटरानी बनाया था। श्रीधर इसी का पुत्र था। पूर्वभव में यह विदेहक्षेत्र के पुण्डरीक देश में चक्रधर नगर के राजा त्रिभुवनानन्द चक्रवर्ती की पुत्री अनंगशरा थी। इसने मरणकाल में सल्लेखना धारण की थी। अजगर द्वारा खाये जाने पर भी दया भाव से अजगर को थोड़ी भी पीड़ा नहीं होने दी थो । फलस्वरूप यह मरकर ईशान स्वर्ग में उत्पन्न हुई । वहाँ से चयकर इसने विशल्या के रूप में जन्म लिया । अनंगशरा की पर्याय में किये गये महा तप के प्रभाव से इसका स्नानजल महागुणों से युक्त हो गया था । पपु० ६४.४३ ४४, ५० ५१, ९१-९२, ९६-९८, ६५. ३७-३८, ८०, ९४.१८-२३, ३० विशाख -- (१) ग्यारह अंग और दशपूर्व के ज्ञाता ग्यारह मुनियों में प्रथम मुनि पु० २.१४३-१४५ १५० १.६२, पापु० १.१२, बीवच० १.४५-४७ (२) तीर्थङ्कर मल्लिनाथ के प्रथम गणधर । मपु० ६६.५० (३) साकेत का नृप । इसने अनन्तनाथ तीर्थंकर को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ६०.३३-३४ I विशालपणी तीर्थ मुनिसुव्रतनाथ के प्रथम गणधर ० १६.६८ विशाखनन्द — भरतक्षेत्र के मगधदेश में राजगृह नगर के राजा विश्वभूति के अनुज विशाखभूति का पुत्र । इसकी माँ लक्ष्मणा थी । वीवच० ३. ६ ९ दे० विशाखनन्दो विशाखनम्बी — प्रतिनारायण अश्वग्रीव के तीसरे पूर्वभव का जीव राजगृह नगर के राजा विश्वभूति के अनुज और उसकी पत्नी लक्ष्मणा का पुत्र । इसने नन्दनवन की प्राप्ति के लिए अपने ताऊ विश्वभूति के पुत्र विश्वनन्दी से युद्ध किया था। युद्ध में इसे युद्धक्षेत्र से भागते हुए देखकर विश्वनन्दी को वैराग्य उत्पन्न हुआ और वह विशाखभूति के साथ संभूत- गुरु के पास दीक्षित हो गया। दैवयोग से विहार करते हुए मुनि विश्वनन्दी मथुरा आये। किसी गाय के धक्के से गिर जाने पर इसने क्रोधपूर्वक उनका उपहास किया। इस पर विश्वनन्दी ने निदानपूर्वक मरण किया और वे महाशुक्र स्वर्ग में देव हुए। वहाँ से चयकर प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ हुए। यह मुनि के उपहास करने से अनेक योनियों में भ्रमण करने के बाद अलका नगरी के राजा मयूरग्रीव का अश्वग्रीव नामक प्रतिनारायण हुआ । इसका दूसरा नाम विशाखनन्द था । मपु० ५७.७०-८८, वीवच० ३.६-७० दे० अश्वग्रीव विशाल भूति-मगध देश में राजगृह नगर के राजा विभूति का छोटा भाई । इसकी पत्नी लक्ष्मणा और पुत्र विशाखनन्दी था । विश्वनन्दी इसके भाई का पुत्र था। इसने छलपूर्वक विश्वनन्दी का उद्यान अपने पुत्र विशाखनन्दी को दिया था। अन्त में अपने कुकृत्य पर पश्चात्ताप Jain Education International विशल्या विशुद्धयंग : ३७९ करते हुए इसने दीक्षा ले ली और घोर तप करके संन्यासपूर्वक मरण किया। मरकर यह महाशुक्र स्त्रर्ग में महर्द्धिक देव हुआ । स्वर्ग से चयकर यह पोदनपुर नगर में राजा प्रजापति और रानी जयावती का विजय नामक पुत्र ( प्रथम बलभद्र ) हुआ । मपु० ५७.७३, ७८, ८२, ८६, वीवच० ३.६ ९, १९-२६, ४२-४५, ६१-६२ विशाखा – एक नक्षत्र तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ और तीर्थकर पार्श्वनाथ इसी नक्षत्र में जन्मे थे । पपु० २०.४३, ५९ - विशारव कुण्डलपुर के राजा सिंहरण के पुरोहित सुरगुरु का शिष्य । यह अमोघजिह्व का गुरु था । पापु० ४.१०३-११२ विशाल - ( १ ) धान्यपुर नगर का राजा। विमलसेना इसकी पुत्री थी । मपु० ४७.१४६-१४७ दे० विमलसेना (२) एक राजकुमार । यह सीता स्वयंवर में सम्मिलित हुआ था । पपु० २८.२०६-२१५ (३) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५. १४० विशालद्युति - राम के पक्ष का वानरवंशी एक नृप। राम-रावण युद्ध में इसे रावण पक्ष के योद्धा शम्भु ने मार गिराया था। पपु० ६०. १४, १९ विशालपुर - विद्याधरों का एक नगर । यहाँ का राजा अपने मंत्रियों के साथ रावण की सहायतार्थ उसके समीप आया था । मपु० ५५. ८७-८८ विशाला - ( १ ) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी । दिग्विजय के समय भरतेश की सेना यहाँ आयी थी । मपु० २९.६१ (२) अवन्ति देश की नगरी उज्जयिनी । मपु० ७१.२०८ (३) सिन्धु नदी के तटवासी तपस्वी मृगायण की स्त्री । यह गौतम की जननी थी । मपु० ७०.१४२ - विशालाक्ष - ( १ ) राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का तिरेसठवाँ पुत्र । पापु० ८.२०० (२) कुण्डलगिरि के उत्तरदिशावर्ती स्फटिकप्रभकूट का निवासी एक देव । हपु० ५.६९४ विशिखाचार्य - एक धनुर्विद्या के आचार्य । इन्होंने कौशाम्बी नगरी के राजा कौशावत्स के पुत्र इन्द्रदत्त को धनुर्विद्या का अभ्यास कराया था । इन्हें अचल ने पराजित किया था । पपु० ९१.२९-३२ विशिष्ट - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५. १७२ विशुद्धकमल- विजया की दक्षिणश्रेणी में स्थित ज्योतिःप्रभ नगर का राजा । इसकी रानी नन्दनमाला तथा पुत्री राजीवसरसी थी । विभीषण इसका जामाता था। यह दैत्यराज मय का महामित्र था । पपु० ८.१५०-१५२ विशुद्धयंग आजीविका के पदकमों में हुई हिंसा की विशुद्धि के तीन अंग-पक्ष, चर्या और साधन । इनमें मंत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्वभाव से समस्त हिंसा का त्याग करना पक्ष है। किसी देवी-देवता के लिए मंत्र की सिद्धि के लिए औषधि और आहार के लिए हिंसा - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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