________________
३७६ : जैन पुराणकोश
विमलपुर-विमला का बन्ध कर समाधिमरणपूर्वक देह त्याग करके अनुत्तर विमान में देव हुआ। मपु० ४८.३-४, ११-१३, २५-२७, पपु० २०.१८-२४
(३) तीर्थङ्कर सुमतिनाथ के पूर्वभव का पिता । पपु० २०.२५-३० (४) आगामी ग्यारहवें चक्रवर्ती । मपु० ७६.४८४, हपु० ६०..
धारी मुनि, छत्तीस हजार पाँच सौ तीस शिक्षक मुनि, चार हजार आठ सौ अवधिज्ञानी मुनि, पाँच हजार पाँच सौ केवलज्ञानी मुनि, नौ हजार विक्रियाऋद्धिधारी मुनि, पाँच हजार पाँच सौ मनःपर्ययज्ञानी मुनि और तीन हजार छः सौ वादी मुनि कुल अड़सठ हजार मुनि तथा एक लाख तीन हजार आयिकाएँ, दो लाख श्रावक, चार लाख श्राविकाएं, असंख्यात देवी-देवता और संख्यात तिथंच थे । अन्त में ये सम्मेदशिखर आये । यहाँ इन्होंने एक माह का योग निरोध किया । आठ हजार छ: सौ मुनियों के साथ योग धारण करके आषाढ कृष्ण अष्टमी को उत्तराभाद्र पद नक्षत्र में प्रातः मोक्ष प्राप्त किया।
मपु० ५९.२-५६, पपु० २०.६१, वीवच० १८.१०६ विमलपुर-एक नगर । वरसेन श्रीपाल को इसी नगर के बाहर बैठाकर
उसे पानी लेने गया था और यहीं सुखावती ने श्रीपाल को कन्या
बनाया था। मपु० ४७.१०८-११० दे० श्रीपाल विमलप्रभ-(१) अनिन्दिता रानी का जीव इस नाम के विमान का एक देव । मपु० ६२.३७६
(२) एक विमान । सत्यभामा का जीव इसी विमान में शुक्लप्रभा नाम की देवी हुआ था। मपु० ६२.३७६
(३) निर्ग्रन्थ मुनि । ये राजा कनकशान्ति के दीक्षागुरू थे। मपु० ६३.१२०-१२३. ७२.४० दे० कनकशान्ति
(४) क्षीरवरसमुद्र का रक्षक एक देव । हपु० ५.६४२
(५) लक्ष्मण और उनकी महादेवी जितपद्मा का पुत्र । पपु० ९४.२२,३३ विमलप्रभा-(१) तीर्थकर श्रेयांस की दीक्षा-शिविका । मपु० ५७.४७-४८
(२) त्रिशृंगपुर नगर के नृप प्रचण्डवाहन की रानी । इसकी गुणप्रभा आदि दस पुत्रियाँ थीं। हपु० ४५.९५-९८, पापु० १३.१०३
दे० गुणप्रभा विमलमति-ऋद्धिधारी एक मुनि । मुनि विपुलमति इन्हीं के साथ
विहार करते थे । मपु० ६२.४०७ दे० विपुलमति-२ विमलमतो-एक गणनी । राजा कनकशान्ति की दोनों रानियाँ इन्ही से
दोक्षित हुई थीं। मपु० ६३.१२४ विमलमेघ-रावण का एक योद्धा । पपु० ७३.१७१ विमलवति–सुरम्य देश में पोदनपुर नगर के राजा विद्यु द्राज की
रानी । प्रसिद्ध विद्य च्चोर अपर नाम विद्य प्रभ की यह जननी थी।
मपु० ७६.५३-५५ दे० विद्य दाज विमलवाह-विदेहक्षेत्र के एक मुनि । चक्रवर्ती अभयघोष के ये दीक्षागुरु ।
थे। मपु० १०.१५४-१५५ विमलवाहन--(१) सातवें मनु-कुलकर । मपु० ३.११६-११९ दे० विपुलवाहन-४
(२) तीर्थकर अजितनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-पूर्वविदेह की सुसीमा नगरी का राजा । यह दीक्षा धारण कर और तीर्थकर-प्रकृति
(५) विदेह के एक तीर्थङ्कर (मुनि)। ये जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में सिंहपुर नगर के राजा अहंदास के दीक्षागुरु थे। ये दोनों गुरुशिष्य गन्धमादन पर्वत से निर्वाण को प्राप्त हुए। मपु. ७०.१२, १८, हपु० ३४.३-१०, दे० अर्हद्दास-३
(६) एक मुनिराज । राजा मधु अपने छोटे भाई कैटभ के साथ इन्हीं से दीक्षित हुआ था। मपु० ७२.४३, हपु० ४३.२००-२०२, दे० मधु-६
(७) विदेहक्षेत्र के एक मुनि । इन्होंने तीर्थङ्कर अभिनन्दननाथ के दूसरे पूर्वभव के जीव रत्नसंचय नगर के राजा महाबल को दीक्षा दी थी। मपु० ५०.२-३, ११
(८) तेरहवें तीर्थङ्कर विमलनाथ का अपर नाम । मपु० ५९.२२
(९) अंग देश की चम्पा नगरी के राजा श्वेतवाहन का पुत्र । यह उनका उत्तराधिकारी राजा हुआ । मपु०७६.७-९
(१०) तीर्थङ्कर सम्भवनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-विदेहक्षेत्र में कच्छ देश के क्षेमपुर नगर का राजा। यह विमलकीर्ति को राज्य देकर स्वयंप्रभ मुनि से दीक्षित हुआ। पश्चात् इसने तीर्थङ्करप्रकृति का बन्ध किया । अन्त में देह त्याग कर अवेयक के सुदर्शन
विमान में अहमिन्द्र हुआ । मपु० ४९.२, ६-९ विमलधी-(१) भरतक्षेत्र में जयन्त नगर के राजा श्रीधर और रानी
श्रीमती की पुत्री । भद्रिलपुर के राजा मेघनाद की यह रानी थी। मेघघोष इसका पुत्र था। पति के मर जाने पर इसने पद्मावती आर्यिका के समीप दीक्षा लेकर आचाम्लवर्धन-तप किया था । अन्त में इस तप के प्रभाव से यह सहस्रार स्वर्ग के इन्द्र की प्रधान देवी हुई । मपु० ७१.४५२-४५७, हपु० ६०.११७-१२० दे० पद्मावती-२
(२) मृणालवती नगरी के सेठ श्रीदत्त की वल्लभा । सती रतिवेगा की यह जननी थी। मपु० ४६.१०१-१०५ विमलसुन्दरी-छठे नारायण पुण्डरीक की पटरानी । पपु० २०.२२७ विमलसेन–एक राजा। इसकी कमलावती पुत्री तथा वरसेन पुत्र था।
मपु० ४७.११४-११७ ६० वरसेन-२ विमलसेना-धान्यपुर नगर के राजा विशाल की पुत्री। निमित्तज्ञानियों
के अनुसार इसका विवाह श्रीपाल से हुआ था। मपु० ४७.१३९,
१४६-१४७ विमला-(१) विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में किन्नरोद्गीत नगर
के राजा अचिमाली की पुत्रवधू और ज्वलनवेग विद्याधर की रानी। इसके पुत्र का नाम अंगारक था। हपु० १९.८०-८३
(२) उज्जयिनी के सेठ विमलचन्द्र की स्त्री। इसकी पुत्री मंगी राजा वृषभध्वज के योद्धा दृढ़मुष्टि के पुत्र वचमुष्टि से विवाही गयी थी । मपु० ७१.२०९-२११, हपु० ३३.१०३-१०४
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org