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३६२ : जैन पुराणकोश
विजयखेट-विजयपुर
जन-जन में चर्चित अपवाद को राम से विनयपूर्वक कहनेवाला प्रजा का एक मुखिया । पपु० ९६.३०, ३९, ४७, ४८
(१७) भरतक्षेत्र की उज्जयिनी नगरी का राजा। इसकी रानी अपराजिता थी । मपु० ७१,४४३
(१८) आगामी इक्कीसवें तीर्थङ्कर । मपु० ७६.४८० (१९) तीर्थकर नमिनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता। मपु० ७६.५३२- ५३३
(२०) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा वज्रसेन और रानी श्रीकान्ता का पुत्र । यह वजनाभ, वैजयन्त आदि का भाई था । मपु० ११.८-१०
(२१) एक नगर । महानन्द यहाँ का राजा था । मपु० ८.२२७
(२२) एक मुनि । अमिततेज और श्रीविजय के भय से अशनिघोष इन्हीं के समवसरण में पहुंचा था। यहाँ मानस्तम्भ देखकर ये सब वैर भूल गये थे । मपु० ६२.२८१-२८२
(२३) धातकीखण्ड द्वीप में ऐरावत क्षेत्र के तिलकनगर के राजा अभयघोष और रानी सुवर्णतिलका का पुत्र । जयन्त इसका भाई था। मपु० ६३.१६८-१६९
(२४) भरतक्षेत्र में मलय देश के रत्नपुर के मंत्री का पुत्र । यह राजकुमार चन्द्रचूल का मित्र था । राजा द्वारा प्राणदण्ड देने पर मंत्री ने इसे संयम दिला दिया था। मपु० ६७.९०-९२, १२१
(२५) वत्स देश की कौशाम्बी नगरी का राजा । यह चक्रवर्ती जयसेन का पिता था। मपु० ६९.७८-८०, पपु० २०.१८८-१८९
(२६) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । महावीर के दर्शन मात्र से इनका सन्देह दूर हो जाने के कारण इन्होंने महावीर को 'सन्मति' कहा था । मपु० ७४.२८२-२८३
(२७) जम्बूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश का नगर । जाम्बवती पूर्वभव में यहाँ वैश्य मधुषेण को बन्धुयशा नाम की पुत्री थी। मपु० ७१.३६३-३६९ दे० बन्धुयशा
(२८) राजगृह नगर का एक युवराज । तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ इसी युवराज को राज्य सौंपकर दीक्षित हुए थे। मपु० ६७.३९
(२९) सनत्कुमार स्वर्ग के कनकप्रभ विमान का निवासी एक देव । यह पूर्वभव में चन्द्रचूल राजकुमार था। मपु० ६७.१४६ दे० चन्द्रचूल
(३०) एक विद्याधर । राम ने अणुमान् को इसे सहायक के रूप में देकर लंका में विभीषण के पास सीता को मुक्त करने का सन्देश भेजा था। मपु० ६८.३९०-३९६
(३१) तीर्थकर नमिनाथ का पिता। यह जम्बूद्वीप के वंग देश में मिथिला नगरी का राजा था । मपु० ६९.१८-३१, पपु० २०.५७
(३२) पृथिवीपुर नगर का राजा। यह चक्रवर्ती सगर का जीव था । पपु० २०.१२७-१३०
(३३) अयोध्या का राजा। यह चक्रवर्ती सगर का पिता था । 'पपु० २०.१२७-१३०
(३४) सनत्कुमार चक्रवर्ती का पिता । पपु० २०.१५३
(३५) विनीता नगरी का राजा । इसकी पटरानी हेमचूला तथा पुत्र सुरेन्द्रमन्यु था । पपु० २१.७३-७५
(३६) राजा अतिवीर्य का पुत्र । यह राम का योद्धा था । यह युद्ध में रावण के योद्धा स्वयंभू के द्वारा यष्टि प्रहार से मारा गया था। पपु० ३८.१, ५८.१६-१७, ६०.१९
(३७) समवसरण के चाँदी से निर्मित चार गोपुरों में एक गोपुर । हपु०५७.२४ विजयखेट-एक नगर । क्षत्रिय गन्धर्वाचार्य सुग्रीव यहाँ रहता था।
वसुदेव ने इस आचार्य की सोमा और विजयसेना कन्याओं को गन्धर्व
कला में पराजित करके विवाहा था। मपु० १९.५३-५८ विजयगिरि-एक हाथी। यक्ष सुदर्शन जीवन्धर को इसी हाथी पर
बैठाकर अपने घर ले गया था। मपु० ७५.३८२ विजयगुप्त-तीर्थकर वृषभदेव के इकतीसवें गणधर । हपु० १२.६० विजयघोष-(१) चक्रवर्ती भरतेश और तीर्थकर अरनाथ के बारह नगाड़ेपटहवाद्य । मपु० ३७.१८३, पापु० ७.२४ .
(२) राजा अर्ककीर्ति का हाथी । अर्ककीर्ति इसो हाथी पर बैठकर राजा अकम्पन पर आक्रमण करने निकला था। मपु० ४४.८४-८५, पापु० ३.८५
(३) एक शंख । यह वराहवासिनो एक देवी के द्वारा प्रद्युम्न को दिया गया था । मपु० ७२.१०८-११० विजयच्छन्व-पांच सौ चार लड़ियोंवाला हार । इसे अर्ध चक्रवर्ती और - बलभद्र धारण करते हैं । मपु० १६.५७ विजयदेव-कृष्ण को पटरानी पद्मावती के पूर्वभव के जीव पद्म देवी
का पिता । इसकी देविला स्त्री थी। यह मगध देश के शाल्मलि ग्राम
का निवासी था। मपु० ७१.४४३-४५९ विजयनगर-एक नगर । यहाँ का राजा पृथिवीधर था । पपु० ३७.९ विजयनन्दन-विजयपुर नगर का राजा। इसने वीतशोकनगर के राजा
मेरुचन्द्र की पुत्री गौरी का विवाह कृष्ण के साथ किया था । मपु०
७१.४४० विजयपर्वत-(१) चक्रवर्ती भरतेश का हाथी । भरतेश ने इसी हाथी
पर बैठकर विजया पर्वत की तमिस्र गुफा में प्रवेश किया था । मपु० २८.४-६, हपु० ११.२५
(२) लक्ष्मण का हाथो । लक्ष्मण इसी पर बैठकर रावण से युद्ध करने गया था। मपु० ६८.५४२-५४६
(३) पद्मिनी नगरी का राजा । धारिणी इसकी रानी थी। आचार्य मतिवर्धन का उपदेश सुनकर यह मुनि हो गया था । पपु० ३९.८४, १२७
(४) कौरववंशी तीर्थकर अरनाथ का हाथी । पापु० ७.२३ विजयपुर-(१) अन्तिम सोलह द्वीपों में दूसरे जम्बूद्वीप की पूर्वदिशा में विद्यमान नगर । विजयदेव यहीं रहता है । यह नगर बारह योजन चौड़ा और चारों दिशाओं में चार तोरणों से विभूषित है। हपु. ५.३९७-३९८
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