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मेघरव-मेनका
जैन पुराणकोश : ३०७
(५) जम्बूद्वीप सम्बन्धी मंगला देश के भद्रिलपुर नगर के नृप । इनकी रानी सुभद्रा तथा पुत्र दृढ़रथ था। इन्होंने मन्दिरस्थविर मुनिराज से धर्म सुना था। इससे इन्हें संसार से विरक्ति हुई। इन्होंने पुत्र दृढ़रथ को राज्य सौंपकर संयम धारण कर लिया। पश्चात् विहार कर ये बनारस के प्रियंगुखण्ड वन में ध्यान द्वारा घातिया कर्मों को नाशकर केवली हुए तथा आयु के अन्त में राजगृह नगर के समीप इन्होंने सिद्धपद पाया । मपु० ७०.१८२-१९२
(६) हस्तिनापुर का राजा। पद्मावती इसकी रानी तथा विष्णु और पद्मरथ पुत्र थे। यह पद्मरथ को राज्य सौंपकर पुत्र विष्णुकुमार के साथ दीक्षित हो गया था। मपु० ७०.२७४-२७५, पापु०
७.३७-३८ मेघरव-(१) एक पर्वत । यहाँ एक स्वच्छ जल से भरी वापी थी।
दशानन और मन्दोदरी दोनों यहाँ आये थे। उन्होंने इस पर्वत की वापी में छः हजार कन्याओं को क्रीडारत देखा था । पपु० ८.९०-९५
(२) विंध्यवन का एक तीर्थ । इन्द्रजित् और मेघनाद के तप करने से यह इस नाम से विख्यात हुआ । पपु० ८०.१३६ मेघवती-नन्दन वन के मन्दर कूट की एक दिक्कुमारी देवी। हपु०
५.३२९, ३३२ मेघवाण-विद्यामय एक बाण । विद्याधर सुनमि द्वारा फेंके गये इस बाण
को जयकुमार ने पवन बाण से नष्ट किया था । मपु० ४४.२४२ मेघवाहन-(१) जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के अंग देश की चम्पा नगरी का
एक कुरुवंशी राजा । मपु० ७२.२२७, हपु० ६४.४, पापु० २३.७८७९
(२) विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी के सुरेन्द्रकान्तार नगर का राजा । मेघमालिनी इसकी रानी, विद्युत्प्रभ पुत्र तथा ज्योतिर्माला पुत्री थी । मपु० ६२.७१-७२ पापु० ४.२९-३०
भारत विजया पतकी उत्तरश्रेणी के व्योमवल्लभ नगर का नृप एक विद्याधर । राजा मेघनाद इसके पिता तथा रानी मेघमालिनी इसकी जननी थी। मपु० ६३.२९-३०. पाप० ५.५-६
(४) एक विद्याधर । यह भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनपुर नगर का राजा था। प्रीतिमती इसकी रानी तथा घनवाहन इसका पुत्र था। पापु० १५.४-८
(५) विजयाई पर्वत की उत्तरश्रेणी के शिवमन्दिर नगर का राजा । इसकी विमला रानी और इससे प्रसूता कनकमाला पुत्री थी। मपु० ६३.११६-११७
(६) भरतक्षेत्र के विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के चक्रवालनगर का राजा। यह पूर्णघन का पुत्र था। इसका अपरनाम तोयद- वाहन था। सहस्रनयन और पूर्णघन के बीच हुए युद्ध में पिता पूर्णघन के मारे जाने पर सहस्रनयन ने इसे चक्रवालनगर से निर्वा- सित कर दिया था। विद्याधरों के पीछा करने पर यह अजितनाथ तीर्थकर की शरण में गया वहाँ इसका शत्रु सहस्रनयन भी पहुंचा था। यहाँ अजित जिन का प्रभामण्डल देखकर दोनों वैरभाव भूल गये थे।
राक्षसों के इन्द्र भीम और सुभीम ने सन्तुष्ट होकर इसे लंका में रहने का परामर्श देते हुए देवाधिष्ठित हार और अलंकारोदय नगर तथा राक्षसी-विद्या प्रदान की थी। अन्त में इस विद्याधर ने महाराक्षस पुत्र को राज्य सौंपकर अजित जिन के पास दीक्षा ले ली थी। इसके साथ अन्य एक सौ दस विद्याधर भी वैराग्य प्राप्त कर संयमी हुए और मोक्ष गये । पपु० ५.७६-७७, ८५-९५, १६०-१६७,२३९-२४०
(७) दशानन और रानी मन्दोदरी का पुत्र । इसका जन्म नाना के यहाँ हुआ था। रावण पक्ष से युद्ध करते हुए रामपक्ष के योद्धा द्वारा बाँध लिये जाने पर इसने बन्धनों से मुक्त होने पर निर्ग्रन्थ साधु होकर पाणिपात्र से आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा की थी। रावण का दाह संस्कार कर पद्म सरोवर पर राम के द्वारा मुक्त किये जाने पर लक्ष्मण ने इसे पूर्ववत् रहने के लिए आग्रह किया था। इसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार निरभिलाषा प्रकट करके दीक्षा ले ली थी। अन्त में यह केवली होकर मुक्त हुआ। पपु० ८.१५८, ७८.८-९, १४-१५, २४-२६, ३०-३१, ८१-८२, ८०.१२८
(८) राम का सामन्त । यह रावण की सेना से युद्ध करने ससैन्य आया था । पपु० ५८.१८-१९ मेघविजय-जम्बूद्वीप में चक्रपुर नगर के राजा रत्नायुध का एक हाथी। वज्रदन्त मुनि से लोकानुयोग का वर्णन सुनकर इसे अपने पूर्वभव का स्मरण हो आया था । अतः इसने योग धारण कर हिंसा आदि पांच पापों और मद्य, मांस एवं मधु का त्याग कर अष्टमूलगुणों को धारण कर लिया था। इसका अपर नाम मेघनिनाद था। मप० ५९.२४६
२६७ दे० मेघनिनाद मेघवेग-त्रिकूटाचल का राजा । यह संध्याकार नगर के राजा सिंहघोष ___ की पुत्री हृदयसुन्दरी को चाहता था किन्तु उसे वह प्राप्त नहीं कर
सका था। हपु० ४५.११५ मेघधी-राजा विनमि विद्याधर के वंशज राजा पुलस्त्य की रानी।
रावण की यह जननी थी। मपु० ६८.११-१२ मेघसेन-पुण्डरीकिणी नगरो के राजा मेघरथ का पुत्र । दीक्षा लेते
समय इसके पिता ने राज्य इसे ही सौंपा था । मपु० ६३.३१० मेघस्वर-सुलोचना के स्वयंवर में सम्मिलित एक भूमिगोचरी नृप ___ जयकुमार । पापु० ३.३७ दे० मेघमुख मेघा-तीसरी बालुकाप्रभा-नरक पृथिवी का एक रूढ़ नाम । हपु०
४.२२० दे० बालकाप्रभा मेघानीक-विद्याधर विनमि के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । भद्रा और
सुभद्रा इसकी बहिनें थीं। हपु० २२.१०४ मेघेश्वर-वृषभदेव के इकहत्तरवें गणधर । पपु० ९.७५, हपु० १२.६७
दे० जयकुमार मेदार्य-तीर्थङ्कर महावीर के दसवें गणधर । हपु० ३.४३, दे० महावीर मेधावी-विजया की दक्षिणश्रेणी में असुरसंगीत नगर के दैत्यराज
मय का मंत्री । पपु० ८.४३, ४७ मेनका-देवांगना। इन्द्र की अप्सरा । यह पूर्वभव में एक मालिन की
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