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महाभवाब्धिसंतारो-महारक्ष
जैन पुराणकोश : २८७ महाभवाब्धिसंतारी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० __ द्रव्य दान में देते हुए ऐसी पूजा करने की भावना की थी और जीवन्धर २५.१६१
ने ऐसी पूजा आयोजित की थी । मपु० ३८.६, ७५.४७७ महाभाग-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५३ ।। महामहपति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० महाभानु-कृष्ण का पुत्र । हपु० ४८.६९
२५.१५५ महाभिषेक-तीर्थंकरों का जन्माभिषेक । इन्द्राणी प्रसूतिगृह में जाकर महामहा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५४ मायामय शिशु तीर्थंकर की माता के पास सुला देती है और तीर्थकर महामाली-(१) रावण का व्याघ्ररथ पर आसीन एक योद्धा । पपु० को वहाँ से बाहर लाकर इन्द्र को सौंपती है। इन्द्र जिन-शिशु को ५७.५० ऐरावत हाथी पर बैठाकर सुमेरु पर्वत ले जाता है और वहां पाण्डुक (२) जरासन्ध का पुत्र। हपु० ५२.४० शिला पर विराजमान करता है तथा हाथों हाथ लाये गये क्षीरसागर महागुख-रावण का पक्षधर एक विद्याधर । यह राम के दूत अणुमान् के के जल से जिनशिशु का अभिषेक करता है । हपु० ३८.३९-४८ साथ लंका गथा था । मपु० ६८.४३१
महामुनि-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० महाभीम-(१) किन्नर आदि व्यन्तर देवों का बारहवाँ इन्द्र और
२५.१५६ प्रतीन्द्र । वीवच० १४.६१
महामेघरथ-तीर्थङ्कर कुन्थुनाथ के पूर्वभव का नाम । पपु० २०.२२ (२) राक्षसों का स्वामी । इसने मेघवाहन से लंका में रहने तथा
महामेरु-सुमेरु पर्वत । यह जम्बूद्वीप के मध्यभाग में अवस्थित तथा परचक्र द्वारा आक्रान्त होने पर दण्डक पर्वत के नीचे स्थित अलंकारो
एक लाख योजन विस्तारवाला है। यह कभी नष्ट नहीं होता । इसका दय नगर में आश्रय लेने के लिए कहा था । पपु० ४३.१९-२८
मूलभाग वज्रमय है । ऊपर का भाग स्वर्ण तथा मणियों एवं रत्नों से (३) नौ नारदों में दूसरा नारद । हपु० ६०.५४८ दे० नारद
निर्मित है । सौधर्म स्वर्ग की भूमि और इस पर्वत के शिखर में केवल महाभुज-कुण्डलगिरि के कनकप्रभ कूट का निवासी एक देव । हपु०
बाल के अग्रभाग बराबर ही अन्तर रह जाता है। समतल पृथिवी से
यह निन्यानवें हजार नीचे पृथिवी के भीतर है। पृथिवी पर दश महाभूतपति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० हजार योजन और शिखर पर एक हजार योजन चौड़ा है। इसके
मध्यभाग के नीचे भद्रशाल महावन, कटिभाग में नन्दनवन, इसके ऊपर महाभूति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५२
सौमनस. वन और सबसे ऊपर मुकुट के समान पाण्डुकवन है। इस महाभैरव-सिंहरथ पर सवार राम का एक सामन्त । पपु० ५८.१०- पाण्डुकवनमें तीर्थकरों के अभिषेक हेतु एक पाण्डुक शिला भी है ।
मपु० १३.६८-७१,७८, ८२, पपु० ३.३२-३६, हपु० ५.१-३ महामंडप-तीर्थकर के जन्माभिषेक के समय इन्द्र द्वारा रचित मण्डप । महामंत्री-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५७ इसके नीचे समस्त प्राणी निराबाध बैठ सकते है। मपु० १३.१०४- महामोहानिसूचन--सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१६१ महामंडलिक-चार हजार छोटे-छोटे राजाओं का अधिपति । यह दण्डधर महामौनी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० (प्रजा को दण्ड देनेवाले) होता था । वृषभदेव ने अपने समय में हरि,
२५.१५६ अकम्पन, काश्यप और सौमप्रभ को उनका राजाभिषेक कर महा
महायज्ञ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५६ मण्डलिक नप बनाया था। इसके ऊपर केवल दो चमर ढोरे जाते हैं।
महायति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५८ मपु० १६.२५५-२५७
महायश-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५१ महामख-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५६
महायोग-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० महामति-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा वृषभदेव का एक माम । मपु० २५.१५३ २५.१५४
(२) विजयाध पर्वत की अलकापुरी के राजा के जन्मोत्पव पर महायोगीश्वर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० भतवादी चार्वाक मत का आवलम्बन लेकर मन्त्री स्वयंबुद्ध द्वारा २५.१६१ कथित जीव-तत्त्व की सिद्धि में दोष लगाये थे। अन्त में यह मरकर महारक्ष-लंका के राजा मेघवाहन और रानी सुप्रभा का पुत्र । पिता के निगोद में उत्पन्न हुआ था। मपु० ४.१९१, ५.२८-३५, १०.७ दीक्षित होने पर इसे राज्य प्राप्त हुआ था। रानी विमलाभा से उत्पन्न महामन्त्र-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५८ अमररक्ष, उदधिरक्ष और भानुरक्ष इसके तीन पुत्र थे। प्रमदवन में महामंत्री-राज्य का एक अधिकारी । यह सामन्त और पुरोहित के कमलसंपुट के भीतर एक मृत भ्रमर देखकर यह विषयों से विरक्त समान राजा का परम हितैषी होता है । हपु० २.१४९
हुआ। इसने ज्येष्ठ पुत्र अमररक्ष को राज्य दिया और भानुरक्ष को - महामह-एक पूजा । चक्रवर्ती भरतेश ने संसार को संतुष्ट करने के लिए युवराज बनाया था तथा स्वयं संयमी हो गया था। अन्त में समाधि
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