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मनुजोय-मनोरमा
नदियों के दक्षिण भरतक्षेत्र में उत्पन्न हुए थे । प्रथम कुलकर प्रतिश्रुति की ऊँचाई अठारह सौ धनुष, इसके पुत्र दूसरे कुलकर सन्मति की तेरह सौ धनुष और तीसरे कुलकर क्षेमंकर की आठ सौ धनुष थी । आगे प्रत्येक कुलकर की ऊँचाई पच्चीस-पच्चीस धनुष कम होती गयी । अन्तिम कुलकर नाभिराय की ऊँचाई पाँच सौ धनुष थी । सभी कुलकर समचतुरस्रसंस्थान और वज्रवृषभनाराचसंहनन से युक्त गम्भीर तथा उदार थे। इन्हें अपने पूर्वभव का स्मरण था। इनकी मनु संज्ञा थो। इनमें चक्षुष्मान यशस्वी और प्रसेनजित् ये तीन प्रियंगुपुष्प के समान श्याम कान्ति के धारी थे । चन्द्राभ चन्द्रमा के समान और शेष तप्त स्वर्णप्रभा से युक्त थे । मपु० ३.२११-२१५, २२९-२३२, हपु० ७.१२३ १२४, १७१-१७५, ८.१, पापु० २.१०३-१०७
(२) अदिति देवी द्वारा नमि और विनमि को दिये गये विद्याओं के आठ निकायों में प्रथम निकाय । हपु० २२.५७
(३) विजयार्ध को उत्तरश्रेणी का सत्ताईसव नगर । हपु० २२.८८ (४) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१७१ मनुजोदय - रत्नद्वीप का एक पर्वत । गगनवल्लभनगर का स्वामी गरुड़वेग अपने राज्य से यहाँ भाग आया था और रमणीय नामक नगर बसाकर रहने लगा था । मपु० ७५.३०१-३०३ मनुपुत्रक-मानस्तम्भ के निकट बैठनेवाले विद्याधर । ये अरुणाभ वस्त्रधारी और दैदीप्यमान आभूषणों से सुसज्जित होते हैं । हपु० २६.९ मनुष्यक्षेत्र जम्बूद्वीप, पातकीखण्ड द्वीप और पुष्करा ये हाई द्वीप तथा maणोदधि और कालोदधि ये दो समुद्र मनुष्य क्षेत्र कहलाते हैं। इसका विस्तार पैंतालीस लाख योजन है । पपु० १४.२३४, हपु० ५.५९० मनुष्यभव अशुभकमों की मन्दता से लभ्य मनुष्यपर्याय यहाँ जीव अनिच्छापूर्वक शारीरिक और मानसिक दुःख पाता है। दूसरों की सेवा करना, दरिद्रता, चिन्ता और शोक आदि से इस पर्याय में जो दुःख प्राप्त होते हैं वे प्रत्यक्ष नरक के समान जान पड़ते हैं । यहाँ इष्टवियोग और अनिष्ट संयोग से जीव दुखी होता है। इस पति के प्राणी गर्भ में चर्म के जाल से आच्छादित होकर पित्त, श्लेष्म आदि के मध्य स्थित रहते हैं । नालद्वार से च्युत माता द्वारा उपभुक्त आहार दुःखभार का आस्वादन करते हैं । उनके अंगोपांग संकुचित और पीड़ित रहते हैं । जीवों को यह पर्याय बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है । मपु० १७.२९ ३१, पपु० २.१६४-१६७, ५.३३३-३३८
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मनोगत - ( १ ) पश्चिम पुष्करार्ध के पश्चिम विदेहक्षेत्र में रूप्याचल की उत्तरश्रेणी के गण्यपुर नगर के स्वामी सूर्याभ और उसकी रानी धारिणी का दूसरा पुत्र, चिन्तागति का अनुज तथा चपलगति का अग्रज । ये तीनों भाई अरिजयपुर के राजा अरिंजय की पुत्री प्रीतिमति के साथ गतियुद्ध में पराजित हो जाने से दमवर मुनिराज के समीप दीक्षित हो गये थे । आयु के अन्त में तीनों भाई माहेन्द्र स्वर्ग के अन्तिम पटल में सात सागर की आयु प्राप्त कर सामानिक जाति के देव हुए। ० २४.१५.१८, २२-१३
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जैन पुराणकोश : २७५
(२) वज्रदन्त चक्रवर्ती का एक विद्याधर दूत । यह गन्धर्वपुर के राजा मन्दरमाली और रानी सुन्दरी का पुत्र तथा चिन्तागति का भाई या यह स्नेही, चतुर, उच्चकुलोत्पन शास्त्र और कार्य पर था। यह और चिन्तागति दोनों भाई अश्वग्रीव के भी दूत रहे । मपु० ६२.१२४-१२६
(३) एक शिविका-यासकी तीर्थकर सुपावनाय इसी पालकी पर आरूढ़ होकर सहेतुक दीक्षावन गये थे । मपु० ५३.४१ मनोगुप्ति - त्रिविध गुप्तियों में प्रथम गुप्ति । यह अहिंसाव्रत की पाँच भावनाओं में प्रथम भावना है। इसमें मन को अपने आधीन रखा जाता है और रौप्यान, आतंध्यान, मैथुनसेवन, आहार की अभिलाषा, इस लोक और परलोक सम्बन्धी सुखों को चिन्ता इत्यादि विकल्पों का त्याग किया जाता है । मपु० २०.१६१, पापु० ९.८८ मनोजव-नाकार्धपुर का स्वामी। इसकी रानी का नाम वेगिनी और पुत्र का नाम महाबल था । पपु० ६.४१५-४१६ मनोज्ञ - राम का एक दुर्धर योद्धा । पपु० ५८.२२
मनोज्ञांग - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८२ मनोदया नागपुर (हस्तिनापुर) के राजा इवाहन और उसकी रानी
चूड़ामणि की पुत्री । इसका विवाह वज्रबाहु से हुआ था। भाई के दीक्षित होते ही इसने भी दीक्षा ले ली थी। इसके दीक्षित होने पर वज्रबाहु ने भी विषयों से विरक्त होकर मुनि निर्वाणघोष से दीक्षा ले की भी पु० २१.१२६-१२७, १३९ मनोनुगामिनी एक विद्या यह छः वर्ष से भी अधिक समय की कठिन • साधना के बाद सिद्ध होती है। विशिष्ट तप के द्वारा इसके पूर्व भी इसकी सिद्धि हो जाती है । दधिमुख नगर के राजा की तीन पुत्रियोंचतुर्लेखा, विद्य त्प्रभा और तरंगमाला ने इसे हनुमान की सहायता से सिद्ध किया था । पपु० ५१.२५-४० मनोभय- (१) मोल जानेवाला बागामी आठवां पु० ६०.५७१५७२
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(२) प्रद्युम्न । मपु० ७५.५६९
मनोयोग-मन के निमित्त से आत्म-प्रदेशों में उत्पन्न क्रिया-परिस्पन्दन । यह चार प्रकार का होता है— सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग, सत्यमृषा-उभय मनोयोग और अनुभय मनोयोग । मपु० ६२.३०९-३१० मनोयोग - दुष्प्रणिधान - सामायिक शिक्षाव्रत का एक अतिचार मन को अन्यथा चलायमान करना । हपु० ५८.१८०
मनोरथ नकुल का जीव प्रभाकर विमान में उत्पन्न एक देव । मपु० ९. १९२
मनोरम — एक विशाल उद्यान । चक्रपुर नगर का राजा रत्नायुध इसी उद्यान में वज्रदन्त महामुनि से मेघविजय हाथी का पूर्वभव सुनकर संयमी हुआ था । मपु० ५९.२४१ - २७१ मनोरमा - ( १ ) विजयार्धं पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित राजा पवनवेग और उसकी रानी मनोहरी की पुत्री राजा सुमुख की रानी वनमाला थी। इसका विवाह
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मेघपुर नगर के यह पूर्वभय में पूर्वभव के पति
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