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________________ अग्निकुला-अग्निबाण मित्रधी भी महाव्रतों को धारण कर इसी स्वर्ग में सामानिक देव हुई थीं । नागश्री मुनि को विष मिश्रित आहार देने के फलस्वरूप धूमप्रभा नरक को प्राप्त हुई। हपु० ६४.४-११, ११३, पापु० २३. १११-११४ (८) इन्द्र की प्रेरणा से इन्द्रभूति और वायुभूति के साथ महावीर के समवसरण में आया एक पण्डित । इसने वस्त्र आदि त्याग कर समवसरण में संयम धारण किया था । हपु० २.६८-६९ अग्निमित्र-(१) वृषभदेव के सोलहवें गणधर । हपु० १२. ५५-५८ (२) महावीर के निर्वाण के दो सौ पचासी वर्ष निकल जाने पर बसु और इसने साठ वर्ष तक राज्य किया था। हप०६०.४८७ (३) भगवान् महावीर के पूर्वभव का जीव । मपु० ७६.५३३ ६:मेन पुराणकोश अग्निकुण्डा-नागनगर निवासी विश्वांग ब्राह्मण को भार्या, श्रुतिरत नामक विद्वान की जननी । पपु० ८५.५०-५१ अग्निकुमार-दस प्रकार के भवनवासी देवों में नौवें प्रकार के देव । ये सदैव जाज्वल्यमान होकर पाताल में रहते हैं। ये देव समवसरण के सातवें कक्ष में बैठते हैं । मपु० ६२.४५५, हपु० २.८२, ४.६४-६५. अग्निकेतु-गन्धवती नगरी के राजपुरोहित का पुत्र, सुकेतु का भाई । सुकेतु के विवाहित हो जाने पर दोनों भाइयों को पृथक-पृथक् की गयी शयन-व्यवस्था से दुःखी होकर सुकेतु ने मुनि अनन्तवीर्य से दीक्षा धारण कर ली तथा भाई के वियोग से दुःखी होकर यह तापस बन गया । अन्त में सुकेतु ने अपने गुरु से उपाय जानकर इसे भी दिगम्बर मुनि बना लिया। पपु० ४१.११५-१३६ अग्निगति-समस्त विद्या-निकायों और नाना प्रकार की शक्तियों से युक्त पर्वत-वासिनी एक औषधि-विद्या । हपु० २२.६८ अग्निज्वाल-विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी का अड़तालीसवाँ नगर । ___मपु० १९.८३, ८७ हपु० २२.९० अग्निदेव-वृषभदेव के तेरहवें गणधर । हपु० १२.५५-५७ अग्निभूति-(१) मगध देश में शालिग्राम के निवासी सोमदेव ब्राह्मण और उसकी पत्नी अग्निला का पुत्र, वायुभूति का सहोदर । नन्दिवर्द्धन मुनि-संघ के सत्यक मुनि से वाद-विवाद में पराजित होने तथा उनके द्वारा पूर्वभव में शृगाल होना बताये जाने के कारण लज्जा एवं द्वेष से इसने सत्यक मुनि को मारने का उद्यम किया था जिसके फलस्वरूप यक्ष द्वारा इसे स्तम्भित कर दिये जाने पर इसके माता-पिता के विशेष निवेदन से इसे उत्कीलित किया गया था। इसके पश्चात् यह मुनि हो गया और आयु का अन्त होने पर सौधर्म स्वर्ग में पारिषद् जाति का देव हुआ। मपु०७२.३-२४, पपु० १०९.३५-६१, ९२-१३०, हपु० ४३.१००, १३६-१४६ (२) वृषभदेव के चौदहवें गणधर । हपु० १२.५५-५७ (३) तीर्थकर महावीर के तीसरे गणधर । मपु० ७४.३७३, वीवच० १९.२०६-२०७ दे० महावीर (४) भरतक्षेत्र के श्वेतिका नगर का निवासी एक ब्राह्मण । इसकी पत्नी का नाम गौतमी था। महावीर के पूर्वभव के जीव अग्निसह के ये दोनों माता-पिता थे। मपु० ७४.७४ वीवच० २.११७-११८ (५) वत्सापुरी का ब्राह्मण । इसका अपरनाम अग्निमित्र था। मपु०७५.७१-७४ (६) मगधदेश के अचलग्राम के निवासी धरणीजट ब्राह्मण और अग्निला ब्राह्मणी का पुत्र, इन्द्रभूति का सहोदर । मपु० ६२.३२५३२६ (७) चम्पापुर के सोमदेव ब्राह्मण का साला, सोमिला का भाई, अग्निला का पति और धनश्री, मित्रश्री तथा नागश्री का पिता। मपृ० ७२.२२८-२८० सोमदत्त, सोमिल और सोमभूति इसके भानेज थे। इसने अपनी तोनों पुत्रियों का क्रमशः इन्हीं भानेजों के साथ विवाह कर दिया था। सोमदत्त आदि तीनों भाई मुनि हो गये और संन्यास पूर्वक मरकर आरणाच्युत स्वर्ग में देव हुए। धनश्री और (४) भारतवर्ष के रमणीकम न्दर नगर के ब्राह्मण गौतम और उसकी पत्नी कौशिकी का पुत्र, मरीचि का पूर्वभव का जीव । यह मिथ्यात्व पूर्वक मरकर माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर पुरातनमन्दिर में भरद्वाज नामक ब्राह्मण हुआ। मपु०७४. ७६-७९, वीवच० २.१२१-१२६ (५) मगध देश की वत्सा नगरी का एक ब्राह्मण। इसकी दो पत्नियाँ थीं। उनमें एक ब्राह्मणो थी और दूसरी वैश्या । ब्राह्मणो से शिवभूति नामक पुत्र तथा वैश्या से चित्रसेना नाम की पुत्री हुई थी। मपु० ७५.७१-७२ अग्निमुख-पोदनपुर नगर का एक ब्राह्मण । इसकी शकुना नाम को पत्नी और मृदुमति नाम का पुत्र था । पपु० ८५.११८-११९ अग्निराज-मेधकूट नगर के राजा कालसंवर का शत्रु । इसे प्रद्युम्न ने __ पराजित किया था । मपु० ७५.५४-५५, ७२-७३ अग्निल-पंचम काल के अन्त में होनेवाला अन्तिम श्रावक । यह अयोध्या का निवासी होगा और इस काल के साढ़े आठ मास शेष रहने पर कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन प्रातः वेला में स्वाति नक्षत्र के उदयकाल में शरीर त्याग कर स्वर्ग में देव होगा । मपु० ७६.४३२ अग्निला-(१) मगध देश के शालिग्रामवासी सोमदेव ब्राह्मण को भार्या । इसके दो पुत्र थे-अग्निभूति और वायुभूति । शालिग्राम में आये मनि नन्दिवर्धन पर उपसर्ग करने की चेष्टा के फलस्वरूप यक्ष द्वारा कीलित अपने पुत्रों को इसने मुक्त कराया था। मपु० ७२.३-४, ३०-३२, पपु० १०९.९८-१२६, हपु० ४३.१०० (२) मगध देश में स्थित अचल ग्राम के धरणीजट ब्राह्मण की गहिणी । इन्द्रभूति और अग्निभूति इसके पुत्र थे। म५० ६२.३२५३२६, पपु० ४.१९४ (३) चम्पापुर नगर के अग्निभूति की पत्नी । इसकी धनश्री, सोमश्री और नागश्री तीन पुत्रियाँ थीं । मपु० ७२.२२८-२३० अग्निबाण-विद्याधर सुन मि द्वारा प्रयुक्त एक विद्यामय बाण । मपु० ३७.१६२, ४४.२४२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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