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२०४ : जैन पुराणकोश
निष्परिग्रह-नोलवान्
निष्परिप्रह-परिग्रह-विहीनता । यह अहिंसा आदि पाँच सनातन धर्मों/
महाव्रतों में पांचवां धर्म महाव्रत है। इसमें शरीर से भी ममत्व
नहीं रहता। मपु० ५.२३, ३४, १६८-१७३ निष्पावक-मोठ । आदिपुराण में वर्णित एक अन्न । मपु० ३.१८७ निःसपत्न-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८६ निसर्ग-अजीवाधिकरण-आस्रव का एक भेद । इसके तीन भेद होते
है-वानिसर्ग, मनोनिसर्ग और कायनिसर्ग। इनमें वचन की स्वच्छन्द प्रवृत्ति वानिसर्ग, मन को स्वच्छन्द प्रवृत्ति मनोनिसर्ग
और काय की स्वच्छन्द प्रवृत्ति कायनिसर्ग है। हपु० ५८.८६, ९० निसर्गक्रिया-आस्रव बढ़ानेवाली पच्चीस क्रियाओं में सत्रहवीं किया ।
इस क्रिया से पापोत्पादक वृत्तियों को अच्छी तरह समझ लिया जाता
है। हपु० ५८.७५ निस्तारकमन्त्र-कष्ट निवारक मन्त्र । निम्न मन्त्र निस्तारक मन्त्र है
सत्यजाताय स्वाहा, अर्हज्जाताय स्वाहा, षट्कर्मणे स्वाहा, ग्रामपतये स्वाहा, अनादिश्रोत्रियाय स्वाहा, स्नातकाय स्वाहा, श्रावकाय स्वाहा, देवब्राह्मणाय स्वाहा, सुब्राह्मणाय स्वाहा, अनुपमाय स्वाहा, सम्यग्दृष्टेसम्यग्दष्टे, निधिपते-निधिपते, वैश्रवण-वैश्रवण स्वाहा, सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु, अपमृत्युविनाशनं भवतु, समाधिमरणं भवतु । मपु०
४०.३२-३७ निसृष्ट-चौथी पृथिवी के प्रथम प्रस्तार सम्बन्धी आर इन्द्रक बिल की
पूर्व दिशा में स्थित महानरक । हपु० ४.१५५ निसृष्टार्थ-सन्देशवाहक सर्वश्रेष्ठ दूत। यह स्वयं विचार करके राजा
का सन्देश यथोचित रूप से सम्बद्ध व्यक्ति तक पहुँचाता है। कार्य
में सफलता प्राप्त करना उसका उद्देश्य होता है । मपु० ४३.२०२ । निस्संगत्वात्मभावना-गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में तीसवीं क्रिया ।
इसमें अपना सम्पूर्ण भार किसी सुयोग्य शिष्य को सौंपकर साधु अकेले विहार करते हुए अपनी आत्मा को सब प्रकार के परिग्रह से रहित मानता है। ऐसा साधु प्रवचन आदि में भी राग छोड़कर निर्ममत्व की भावना से एकाग्रबुद्धि होता है और चारित्रिक शुद्धि
प्राप्त करता है। मपु० ३८.५९, १७५-१७७ निहतशत्रु-यदुवंशी एक राजा । यह शतधनु के बाद हुआ था। हपु०
१८.२१ निव-ज्ञानावरण और दर्शनावरण का एक आस्रव । इससे आत्मा के
ज्ञान और दर्शन पर आवरण छा जाता है । हपु० ५८.९२ नीरजस्क-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८५ नीरा-एक नदी । भरतेश की सेना यहाँ होकर विन्ध्याचल पर गयो
थी। मपु० ३०.५६ नील-(१) छठी पृथिवी के प्रथम प्रस्तार सम्बन्धी हिम इन्द्रक बिल की पूर्व दिशा में स्थित महानरक । हपु० ४.१५७ ।।
(२) शटकामुख नगर के अधिपति विद्याधर नीलवान् का पुत्र । यह नीलांजना का भाई था। इसके एक पुत्र हुआ था जिसका नाम नीलकंठ था । हपु० २३.१-७
(३) जम्बूद्वीप का चौथा कुलाचल। मपु० ५.१०९, ३६.४८, ___६३.१९३, पपु० १०५.१५७-१५८, हपु० ५.१५
(४) नील पर्वत । यह वैडूर्यमणिमय है। विदेहक्षेत्र के आगे स्थित है। इसके नौ कूट हैं। इनके नाम हैं-१. सिद्धायतनकूट, २. नीलकूट, ३. पूर्वविदेहकूट, ४. सीताकूट, ५. कीतिकूट, ६. नरकान्तककूट, ७. अपरविदेहकूट, ८. रम्यककूट, और ९. अपदर्शनकूट । इनकी ऊँचाई और मूल को चौड़ाई सौ योजन, बीच की चौड़ाई पचहत्तर योजन और ऊध्वं भाग की चौड़ाई पचास योजन है। मपु० ४.५१-५२, हपु० ५.९९-१०१
(५) एक वन । यह तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ की दीक्षाभूमि थी। मपु० ६७.४१
(६) राम का पक्षधर एक विद्याधर । यह सुग्रीव के चाचा किष्कुपुर के राजा ऋक्षराज और उसकी रानी हरिकान्ता का पुत्र तथा नल का भाई था। लंका-विजय के बाद राम ने इसे किष्किन्ध नगर का राजा बनाया था । अन्त में इसने राज्य का परित्याग कर दीक्षा धारण कर लो थी । मपु० ६८.६२१-६२२, पपु० ९.१३, ८८.
४०, ११९.३९-४० नीलक-रुचकगिरि की पश्चिम दिशा में स्थित श्रीवृक्षकूट का निवासी
देव । हपु० ५.७०२ नीलकंठ-(१) शकटामुख नगर के राजा नीलवान् का पौत्र और नील का पुत्र । हपु० २३.३ (२) आगामी तीसरा प्रतिनारायण । हपु०६०.५७०
(३) एक विद्याधर राजा। यह त्रिशिखर विद्याधर का सहायक था । त्रिशिखर ने वसुदेव के श्वसुर विद्युद्वेग को कारागृह में डाल दिया था । वसुदेव ने त्रिशिखर के साथ युद्ध करके अपने श्वसुर को छुड़ा लिया था। इस युद्ध में नीलकंठ भी हारा था। इस युद्ध में हारे हुए नीलकंठ ने एक बार अपनो विद्या से वसुदेव का हरण किया पर
वह उसे नहीं ले जा सका । उसने उसको आकाश में छोड़ दिया था। ___ हपु० २५.६३, ३१.४ नीलकूट-नोल कुलाचल के नौ कूटों में दूसरा कूट । हपु० ५.९९ नीलगुहा-राजगृह के समीप स्थित एक गुफा । हपु० ६०.३७ नोलयशा-(१) सिंहद्वंष्ट्र और नीलांजना को पुत्री। इसका विवाह वसुदेव के साथ हुआ था । हपु० २२.११३, १५२
(२) चारुदत्त की स्त्री। हपु० १.८२ नीलरथ-अलकानगरी के राजा मयूरग्रीव का पुत्र। मपु० ६२.५९,
दे० नीलकंठ-४ नोललेश्या-दूसरी लेश्या । यह तीसरे नरक के अधोभाग में रहनेवाले
नारकियों के होती है । हपु० ४, ३४३ मोलवान्-(१) शकटामुख नगर का विद्याधर । इसका नील पुत्र और नीलांजना पुत्री थी । हपु० २३.३-४
(२) नील कुलाचल से साढ़े पांच सौ योजन दूर नदी के मध्य में स्थित एक सरोवर । मपु० ६३.१९९, हपु० ५.१९४
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