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________________ वनमित्रा धरण गोध हुए । मपु० ६३.२६१-२६४ (७) तीसरे नारायण स्वयंभू के पूर्वभव का जीव । पपु० २०.२०९ धनमित्रा - ( १ ) उज्ययिनीनगर के सेठ धनदेव की स्त्री । महाबल का जीव इसका नागदत्त नामक पुत्र हुआ। इसकी बहिन अर्थस्वामिनी थी। पति द्वारा त्याग दिये जाने से देशान्तर में इसने शीलदत्त गुरु के पास श्रावक के व्रत ग्रहण किये और शास्त्राभ्यास के लिए अपना पुत्र उन्हें ही सौंप दिया। नागदत्त ने अपनी बहिन का विवाह मामा के पुत्र कुलवाणिज के साथ कर दिया। मपु० ७५.९५-१०५ (२) मगध देश में सुष्ठिनगर के निवासी सेठ सागरदत्त के पुत्र कुवेरदत्त की स्त्री, प्रीतिकर की जननी मपु० ७६.२१६-२१८, २४०-२४१ धनवती (१) हस्तिनापुर के निवासी वैश्य सामरदत्त की पत्नी तथा उग्रसेन की जननी । मपु० ८.२२३ (२) पुण्डरी किणी नगरी के कुवंरकान्त की जननी और समुद्र ३१, ४१ - राजश्रेष्ठी कुबेरमिव की पत्नी, की बहिन म० ४६.१९, २१, (२) एक व्यन्तरी। यह पूर्व जन्म में पुण्डरीको नगरी के राजा सुरदेव की रानी पारिणी का विमला नाम को दासी थी। मपु० ४६. ३५१-३५५ घनवाहिक - वृषभदेव के गणधर । हपु० १२.६५ धनश्री - ( १ ) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा धनंजय और रानी सर्वश्री की पुत्री । स्वयंवर में इसने अपने पिता के भानजे हरिवाहन को वरा था । मपु० ७१.२५२-२५६, हपु० ३३.१३५ १३६ (२) भरतक्षेत्र में चम्पानगरी के अग्निभूति ब्राह्मण और अग्निला ब्राह्मणी की पुत्री । यह सोमश्री और नागश्री की बड़ी बहिन थी । सामदेव ब्राह्मण के पुत्र सोमदत्त से विवाहित इसके पति ने वरुण गुरु के पास और इसने अपनी बहिन मित्रश्री के साथ गुणवती आर्यिका के समीप दीक्षा धारण कर ली थी । हपु० ६४.४-६, १२-१३ मरकर यह अच्युत स्वर्ग में सामानिक देव हुई। वहाँ से च्युत होकर यह पाण्डु पुत्र नकुल हुई । मपु० ७२.२२८- २३७, २६२, हपु० ६४.१११-११२, पापु० २३.७८-८२, १०८-११२, २४.७७ (३) विदेहक्षेत्र के गन्धिल देश में पलालपर्वत -ग्राम के निवासी देवलिग्राम की पुत्री । यह राजा वज्रजंघ की रानी श्रीमती के पूर्वभव का जीव थी । मपु० ६.१२१-१३५ (४) अंग देश में चम्पानगरी के राजा श्रीषेण की रानी और कान्तपुरनगर के राजा सुवर्णवर्मा की बहिन । मपु० ७५.८१-८२ (५) धनदत्त की पत्नी । यह रूपश्री की जननी थी । इसने रूपश्री का विवाह जम्बू कुमार के साथ किया था। मपु० ७६.४८, ५० (६) विदेहक्षेत्र की पुण्डरी किणीनगरी के निवासी सर्वसमृद्ध नामक वैश्य की स्त्री, धनंजय को अनुजा । मपु० ४७.१९१-१९२ Jain Education International जैन पुराणकोश: १७९ (७) पुष्करद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र के नन्दनपुर नगर के राजा अमितविक्रम और उसकी रानी आनन्दमती की पुत्री । इसने संन्यासमरण कर सौधर्म स्वर्ग पाया था । मपु० ६३.१२-१९ (८) एक अन्वरी । यह पूर्व जन्म में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा सुरदेव की रानी पृथ्वी की सतनाम की दासी थी मपु० ४६.३५१-३५६ धनश्रुति — अरिंजय और जयावती का दूसरा पुत्र । यह क्रूरामर का अनुज तथा राजा सहस्रशीर्ष का विश्वासपात्र सेवक था । इसने अपने भाई और स्वामी के साथ केवली से दीक्षा धारण कर ली थी । इसके फलस्वरूप ये दोनों भाई मरकर शतार स्वर्ग में देव हुए । पपु० ५.१२८-१३२ धनाधीश – कुबेर । इन्द्र की आज्ञा से यह तीर्थकरों के गर्भस्थ होने के छः मास पूर्व से जन्म के समय तक तीर्थंकर के माता-पिता के घर रत्नपुष्टि करता है। म० १२.८५ ९५ पु० ३.१५५ धनुर्धर - ( १ ) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३० (२) धृतराष्ट्र और गान्धारी का छिहत्तरवाँ पुत्र । पापु० ८.२०२ धनुष - दो किष्कु - ( चार हाथ ) प्रमाण माप । अपरनाम दण्ड, नाड़ी । मपु० १०.९४, ४८.२८, हपु० ७.४६ (१) गुल्मसेटपुर का राजा इसने तीर्थंकर पार्श्वनाथ को आहार दिया था । मपु० ७३.१३२-१३३ (२) रत्नपुर नगर का एक गाड़ीवान । मपु० ६३.१५७ धन्यषेण - पाटलिपुत्रनगर राजा । इसने तीर्थंकर धर्मनाथ को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ६१.४०-४१ धनवन्तरि मेरुदत्त सेठ का आयुर्वेदिक परामर्शदाता मपु० ४६. - ११३ धम्मिलल्ल --- ( १ ) स्त्रियों की केशरचना । मपु० ६.८० (२) एक ब्राह्मण । यह सिंहपुरनगर के राजा सिंहसेन का पुरोहित था । हपु० २७.२०-२३, ४३ घर - (१) राजा उग्रसेन का ज्येष्ठ पुष, गुगधर, बुक्तिक दुर्घर, सागर और चन्द्र का अग्रज । हपु० ४८.३९, ५०.८३ (२) एक राजा । राम को सीता के अवर्णवाद की सूचना देनेवाले विजय नृप का सहगामी नृप । पपु० ९६.२९ ३० धरण (१) जम्बूद्वीप की कौशाम्बी नगरी का राजा, तीर्थकर पद्मप्रभ का जनक । मपु० ५२.१८-२१, पपु० २०.४२ (२) लक्ष्मण का पुत्र । पपु० ९४.२७-२८ (१) विदेह की पूर्वदिशा में स्थित एक द्वीप पपु० ३.४६ (४) विदेहक्षेत्र में गन्यमालिनी देश की नगरी के राजा वैजयन्त के पुत्र जयन्त मुनि का जीव अपने पिता के केवलज्ञानमहोत्सव में आये घरगेन्द्र को देखकर इसने धरणेन्द्र होने का निदान किया था और उसके फलस्वरूप मरकर यह धरणेन्द्र हुआ था । पु० २७.५-९ इसके भाई संजयन्त मुनि को पूर्व वैर के कारण विद्यष्ट्र विद्याधर उठा ले गया और उन्हें विद्याधरों को भड़का For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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