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जैन पुराणकोश : १४९
ज्ञानोपयोग-जीव के स्वरूप का एक अंग । यह वस्तु को भेदपूर्वक ग्रहण
करता है । इसके मतिज्ञान आदि आठ भेद होते हैं । मपु० २४.१०१,
पपु० १०५.१४७-१४८ ज्येष्ठ-(१) सौधर्मेन्द्र एवं भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२२, २४.४३
(२) समवसरण के तीसरे दक्षिणी गोपुर के आठ नामों में तीसरा नाम । हपु० ५७.५८ ज्येष्ठा-(१) भद्रिलपुर नगर निवासी सेठ धनदत्त और सेठानी नन्दयशा की पुत्री । यह प्रियदर्शना की बहिन थी। मपु० ७०.१८६
(२) सिन्थु देश को वैशाली नगरी के राजा चेटक की छठी पुत्री । चन्दना इसकी छोटी बहिन तथा प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी बड़ी बहिनें थीं। श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार ने इसे और चेलिनी को क्षेणिक का पट्ट पर अंकित चित्र दिखाकर उसके प्रति आकृष्ट कर लिया था। चेलिनी के साथ यह भी अभयकुमार का अनुगमन कर रही थी किन्तु चेलिनी द्वारा छले जाने से इसने संसार से विरक्त होकर दीक्षा ले ली थी। मपु० ७५.३, ६-७,
मातृधर्मकयांग-ज्योतिमूति ज्ञातृधर्मकांग-द्वादशांगपत का छठा अंग। इसमें पांच लाख छप्पन
हजार पद हैं । मपु० ३४.१४०, हपु० २.९३, १०.२६ ज्ञान-जीव का अबाधित गुण । इससे स्व और पर का बोध होता है । यह धर्म-अधर्म, हित-अहित, बन्ध-मोक्ष का बोधक तथा देव, गरु और धर्म की परीक्षा का साधन है । यह मतिज्ञान आदि के भेद से पाँच प्रकार का होता है । प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से इसके दो भेद है। इनमें मतिज्ञान और श्रुतज्ञान-परोक्ष तथा अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञान प्रत्यक्ष है। मपु० २४.९२, ६२.७, पपु० ९७.३८, हपु० २.१०६,
पापु० २२.७१, बीवच० १८.१५ ज्ञानकल्याणक-तीर्थकरों के पाँच कल्याणकों में चौथा कल्याणक। यह
तीर्थकरों को केवलज्ञान प्राप्त होने पर देवों द्वारा सम्पादित उत्सव
विशेष होता है । हपु० २.६० ज्ञानगर्भ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८१ ज्ञानचक्षु-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०४ ज्ञानदान-चतुर्विध दान में एक दान-ज्ञान के साधनों का दान करना।
इससे जीव प्रतिष्ठा आदि प्राप्त करता है तथा नाना कलाओं का पारंगत होता है । पपु० १४.७६, ३२.१५६ ज्ञानधर्मदमप्रभु--सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१३२ ज्ञाननिग्राह्य-सौधर्मेन्द्र द्वार स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
१७३ ज्ञानप्रवाद-पूर्व श्रुत का पांचवां भेद । हपु० २.९८ शानभावना-मुनि के ध्यान में सहायक पाँच भावनाएँ। वाचना,
पृच्छना, अनुप्रेक्षण, परिवर्तन (आवृत्ति) और धर्मदेशन पाँच भावनाएँ हैं। मपु० २१.९५-९६ ज्ञानसर्वग-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६४ शानाग्नि–शरीर में ही सदा विद्यमान ज्ञानाग्नि, दर्शनाग्नि, तथा जठ
राग्नि इन तीन अग्नियों में प्रथम अग्नि । पपु० ११.२४८ ज्ञानाचार-पंचविध चारित्र का एक भेद । इसमें आठ दोषों (शब्द, अर्थ
आदि की भूलों) से रहित सम्यक्ज्ञान प्राप्त किया जाता है। मपु० २०.१७३, पापु० २३.५५-५६ ज्ञानात्मन्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११३ ज्ञानाब्धि-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । २५.२०५ ज्ञानाराधना-चतुर्विध आराधनाओं में दूसरी आराधना । इसमें जिनागम
में प्रतिपादित जीव आदि तत्त्वों को निश्चय नय से जाना जाता है। पापु० १९.२६५ शानावरणकर्म-आत्मा के ज्ञानगुण का आवरक एक कर्म । यह सम्यग्ज्ञान
को ढक लेता है और आत्महितकारक ज्ञान में बाधाएँ उपस्थित करता है। इसकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोड़ी सागर, जघन्य स्थिति अन्तर्महतं और मध्यम स्थिति विविध प्रकार की होती है। पपु०
१४.२१, हपु० ३.९५, ५८.२१५, १६.१५६-१६० ज्ञानोद्योत-दीपदान के समय व्यवहृत मंत्र का एक पद-ज्ञानोद्योताय
नमः । मपु० ४०.९
ज्योतिः प्रभ-(१) जम्बदीप सम्बन्धी भरतक्षेत्र के विजयाद्ध पर्वत की
दक्षिणश्रेणी का एक नगर। मपु० ६२.२४१, पपु० ८.१५०, पापु० ४.१५२
(२) एक विमान । कुम्भकर्ण इसी विमान पर आरूढ़ होकर राम से युद्ध के लिए लंका से निकला था। पपु० ५७.६३ स्तोतिः सुर-ज्योतिषी देव । पपु० ६.३२५ ज्योति-प्रथम नरक के खरभाग का आठवां पटल । हपु० ४.५३ दे०
खरभाग ज्योतिप्रभा-त्रिपृष्ठ नारायण की पुत्री। इसका विवाह स्वयंवर विधि __ से अमिततेज के साथ हुआ था । मपु० ६२.१५३, १६२, पापु० ४.८७ ज्योतिरंग-भोगभूमि में विद्यमान दस प्रकार के कल्पवृक्षों में प्रकाश
देनेवाले रत्ल-निर्मित कल्पवृक्ष । ये प्रकाशमान कान्ति के धारक होते है तथा सदैव प्रकाश फैलाते रहते हैं। मपु० ३.३९, ५६, ८०, ९.
३५-३६, ४३, हपु० ७.८०-८१, वीवच० १८.९१-९२ ज्योतिर्वण्डपुर-विद्याधरों का एक बड़ा नगर । यहाँ के राजा ने राम के
विरुद्ध रावण की सहायता की थी । पपु० ५५.८७-८८ ज्योतिर्माला-(१) विजयार्घ पर्वत की अलका नगरी के विद्याधर महाबल की पत्नी । हपु० ६०.१७-१८
(२) विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी के सुरेन्द्रकान्तार नगर के मेघवाहन और उसकी रानी मेघमालिनी की पुत्री। यह विद्याधर विद्युत्प्रभ को बहिन थी । इसका विवाह ज्वलनजटी के पुत्र अर्ककीर्ति से हुआ था। यह अमिततेज और उसकी बहिन सुतारा की जननी थी। मपु० ६२.७१-७२, ८०, १५१-१५२, पापु० ४.८५-८६
(३) अलका नगरी के राजा पुरुबल की रानी। यह हरिबल को जननी थी। मपु० ७१.३११ ज्योतिम ति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
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