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१३६ पुराणको
विनयश्री और रुपश्री कन्याओं के साथ विवाह किया था। विवाह करके भी ये अपनी पत्नियों से आकृष्ट नहीं हुए । विद्युच्चोर की इनकी माँ से भेंट हुई। इन्हें विरक्ति से राग में लाने हेतु इनकी माँ ने मनचाहा धन देने का आश्वासन दिया। चोर ने इन्हें राग में फँसाना चाहा किन्तु ये उसे ही अपनी ओर आकृष्ट करते रहे स्वयं रानी नहीं बने। माता, पत्नियों और वि चोर सभी शरीर और सांसारिक भोगों से विरक्त हो गये और विपुलापल पर पहुँच कर सुधर्माचार्य गणधर से संयमी हुए। महावीर का निर्वाण होने के बाद ये श्रुतकेवली तथा सुधर्माचार्य के मोक्ष चले जाने पर केवली हुए । इनका भव नाम का एक शिष्य था । वह इनके साथ रहा। ये भिन्नभिन्न स्थानों में बिहार करते हुए चालीस वर्ष तक धर्मोपदेश देते रहे। म० ७६.३१-१२१, ५१८५१९ ० १.६० जम्बूद्वीप- (१) दो सूर्यो से विभूषित आद्य द्वीप । हपु० २.१, यह मध्यलोक के मध्यभाग में स्थित चक्राकार, लवणसमुद्र से आवृत, एक लाख योजन विस्तृत, मेद पवंत और पोतोस क्षेत्रों (विदेह के बत्तीस एक भरत, एक ऐरावत) से युक्त है । मपु० ४.४८-४९, ५.१८७, पपु० ३.३२-३३, ३७-३९ ० २.१, ५.४०७, १०.१७७ इसमें छः भोगभूमियाँ, आठ जिनालय, बड़गड भवन (चौतीसों क्षेत्रों में दोदो और चौतीस सिंहासन है। भरत और ऐरावत क्षेत्र में रजतमय दो विजयार्ध पर्वत हैं । इन भोगभूमियों में ही देवकुरु और उत्तरकुरु हैं । इस द्वीप में स्थित भरतक्षेत्र की दक्षिणदिशा में जिनालयों से युक्त राक्षसीय महाविदेहक्षेत्र की पश्चिम दिशा में किन्नरद्वीप ऐरावत क्षेत्र की उत्तर दिशा में गन्धर्व द्वीप स्थित है । पपु० ३.४०४५ इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल प्रमाण तथा घनाकार क्षेत्र सात सौ नव्वे करोड़ छप्पन लाख चौरानवे हजार एक सौ पचास योजस माना गया है। इसमें कुल सात क्षेत्र, एक मेद, दो कुरु, जम्बू और शाल्मालि नामक दो वृक्ष, छ: कुलाचल, कुलाचलों पर स्थित छ: महासरोवर, चौदह महानदियाँ, बारह विनंगा नदियाँ, बीस वक्षारगिरि, चौतीस राजधानी, चौतीस रूप्याचल, चौतीस वृषभाचल, अड़सठ गुहाएँ, चार गोलाकार नाभिगिरि और तीन हजार सात सौ चालीस विद्याधर राजाओं के नगर विद्यमान हैं । भरतक्षेत्र इसके दक्षिण में और ऐरावत क्षेत्र उत्तर में है । हपु० ५.२-१३.
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(२) संख्यात द्वीप समुद्रों के आगे एक दूसरा जम्बूद्वीप । यहाँ भी देवों के नगर हैं । हपु० ५.१६६
जम्मूद्रीय प्रज्ञप्ति परिकर्म दृष्टिवाद भूत का एक भेद
इसमें तीन लाख पच्चीस हजार पदों के द्वारा जम्बूद्वीप का सम्पूर्ण वर्णन है । १०.६२,६५
जब म जम्बूद्वीप के मध्य स्थित (अनादि निधन ) वृक्ष ( यह पृथिवी कायिक है वनस्पतिकाविक नहीं) । मपू० ५.१८४, २२.१८६ जम्बूपुर - विजयार्ध - दक्षिण का एक नगर । यह जाम्बव विद्याधर की
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जम्बूद्वीप-जयका
निवासभूमि था । हपु० ४४.४ अपरनाम जाम्बव । मपु० ७१.३६८, हपु० ६०.५२
जम्बूमती (१) दे० जम्बूद्वीप मपु० ७०.६२, पपु० २.१
(२) भरक्षेत्रखण्ड की एक नदी यहां भरतेश की सेना आयी थी । मपु० २९.६२
जम्बूमाली - रावण का सामन्त एवं पुत्र । यह संसार से विरक्त होकर मुनि हो गया । तूणीगति नामक महाशैल (पर्वत) पर इसने तपस्या की । मरकर यह अहमिन्द्र हुआ । पपु० ५७.४७-४८, ६०.३२-४०, ८०.१३७-१३८
जम्बूवृक्ष जम्बद्वीप का एक जिनालयों से युक्त महावृक्ष इसके उपर निर्मित भवनों में किल्विषक जाति के देवों से आवृत अनावृत नाम का देव रहता है। पपु० १.१८-३९, ४८ ३० जम्बूद्रुम
जम्बू शंकपुर - विजयार्धं - दक्षिणश्रेणी के पचास नगरों में पचासवां नगर । हपु० २२.१००
जम्मूस्थल मे पर्वत को ऐशान दिशा में सीता नदी के पूर्वी तट पर नील कुलाचल का निकटवर्ती प्रदेश । हपु० ५.१७२
जय - ( १ ) भगवान् वृषभदेव के एक गणधर । मपु० ४३.६५ (२) ग्यारह अंग और दश पूर्व के ज्ञाता ग्यारह मुनियों में चौथे मुनि । ये महावीर के मोक्ष जाने के एक सौ बासठ वर्ष पश्चात् एक सौ तेरासी वर्ष के मध्य में हुए थे। मपु० २.१४३, ७६.५२२, पु० १.६२, वीवच० १.४५-४७
(३) शलाका-पुरुष एवं ग्यारहवां चक्रवर्ती । हपु० ६०.२८७, वीवच० १८.१०९, ११०
(४) एक नृप । यह राम के पक्ष का अत्यन्त बलवान् योद्धा था । पपु० ६०.५८-५९
(५) राजा धृतराष्ट्र और गान्धारी का चौसठवाँ पुत्र । मपु० ८.२००
(६) विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का इकतालीसवाँ नगर । मपु०
१९.८४
(७) नन्दनपुर का राजा । इसने विमलवाहन तीर्थंकर को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ५९.४२-४३
(८) कृष्ण का एक योद्धा एवं भाई । मपु० ७१.७३, हपु० ५०.११५
(९) सोमप्रभ राजा का पुत्र जयकुमार अकम्पन की पुत्री सुलो-चना ने इसे पति के रूप में वरण किया था । पापु० ३.५५ ६७
(१०) विद्याधर नमि का कान्तिमान् पुत्र । इसका संक्षिप्त नाम जय था । इसके दस से अधिक भाई थे और दो बहिने थीं । मपु० ४३.५०, हपु० २२.१०८
(११) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । हपु० ६०.५६१
(१२) तीर्थंकर अनन्तनाथ के प्रथम गणधर । ये सात ऋद्धियों से युक्त तथा शास्त्रों के पारगामी थे । हपु० ६०.३४८ जयकान्त-- रावण के आगामी भव का नाम । तब यह कुमारकोति और लक्ष्मी का पुत्र होगा । पपु० १२३, ११२-११९
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