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गोत्रकर्म-गौतम
जैन पुराणकोश : ११५
कर मध्यम अवेयक के सुविशाल विमान में अहमिन्द्र हुआ तथा वहाँ से च्युत होकर अन्धकवृष्टि अन्धकवृष्णि नाम का राजा हुआ । मपु० ७०.१६०-१६२, १७३-१८१ अपरनाम गौतम । हपु० १८.१०३-११०
(३) लवणसमुद्र की पश्चिमोत्तर दिशा में बारह योजन दूर स्थित बारह योजन विस्तृत और चारों ओर से सम एक द्वीप । हपु०५. ४६९-४७०
(४) लवणसमुद्र के पश्चिमोत्तर दिशावर्ती इस नाम के द्वीप का अधिष्ठाता देव । यह परिवार आदि की दृष्टि से कौस्तुभ देव के समान था । हपु० ५.४६९-४७०
(५) सौधर्मेन्द्र का आज्ञाकारी एक देव । हपु० ४१.१७ गोत्रकर्म-उच्च और नीच कुल में पैदा करनेवाला और उच्च और नीच व्यवहार का कारण कर्म । इसकी उत्कृष्ट स्थिति बीस सागर
और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त होती है । हपु० ३.९८, ५८.२१८, वीवच० १६.१५७-१५९ गोदावरी-(१) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी। यह निरन्तर
प्रवाहित रहनेवाली और अनेक धाराओं से युक्त नदी है । मपु० २९. ६०,८५, ३०.६०-६१
(२) गोपेन्द्र और गोपधी की पुत्री। कालकूट भीलराज द्वारा गोपेन्द्र की गायें हरण किये जाने पर राजा काष्ठांगार ने घोषणा की थी कि जो गोपेन्द्र की गायों को छुड़ाकर लायेगा उसके साथ इस कन्या का विवाह करा दिया जायगा। जीवन्धर कुमार ने गन्धाय के पुत्र नन्दाढ्य को साथ लेकर कालकूट को पराजित किया और गायों का विमोचन करा दिया। यह सूचना राजा को दे दी गयी कि नन्दाय ने गायों का विमोचन कराया है। घोषणा के अनुसार राजा ने नन्दाढ्य के साथ इसका विवाह करा दिया। मपु० ७५.
२८७-३०० गोधा-ब्रज का एक वन । मपु०७०.४३१ गोधूम-गेहूँ । वृषभदेव के समय का एक धान्य । मपु० ३.१८६ ।। गोपालक-गो-पालन के द्वारा आजीविका चलानेवाले लोग । मपु०
४२.१३८-१५०,१७५ गोपेन्द्र-(१) विदेह देश के विदेह नगर का राजा। इसकी रानी का
नाम पृथिवीसुन्दरी और पुत्री का नाम रलवती था। मपु० ७५. ६४३-६४४
(२) राजपुर के गोपों का एक राजा । मपु०७५.२९१ (३) राजा काष्ठांगारिक के राज्य का एक गोपालक । मपु० ७५.२९१ गोप्ता-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७८ गोप्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९६ गोभूति-एक बटुक । पपु० ५५.५७-५९ दे० गिरि । गोमती-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी । भरतेश की सेना यहाँ ___ आयी थी । मपु० २९.४९ गोमुख-(१) राजा इन्द्र के पूर्वभव का जीव । यह रत्नपुर नगर का
निवासी था । इसकी स्त्री का नाम धरणी तथा पुत्र का नाम सहस्रभाग था । पपु० १३.६०
(२) चारुदत्त का मित्र । २१.१३ दे० चारुदत्त गोमुखमणि-गोमुख के आकार का नूपुर विशेष । इसमें मणियों की
जड़ाई भी होती थी। मपु० १४.१४ गोमेव-रत्नप्रभा नरक के खरभाग के सोलह पटलों में छठा पटल ।
हपु०४.५३ दे० खरभाग गोरति-एक महारथी विद्याधर । यह विद्याधरों का स्वामी और राम
का सहायक था। पपु० ५४.३४-३५ गोरथ-इस नाम का एक पर्वत । पूर्वी अभियान में यहां भरत की सेना
आयी थी । मपु० २९-४६ गोवर्धन-(१) एक धतकेवली । ये महावीर निर्वाण के बासठ वर्ष के
बाद सौ वर्ष की अवधि में हुए पाँच आचार्यों में चौथे आचार्य थे। इन्हें ग्यारह अंगों और चौदह पूर्वो का ज्ञान था। मपु० २. १४११४२, ७६.५१८-५२१, हपु० १.६१, वीवच० १.४१-४४
(२) मथुरा के निकट का एक ग्राम । पपु० २०.१३७
(३) मथुरा के निकट का एक पर्वत । एक बार बहुत वर्षा होने पर कृष्ण ने गोकुल की रक्षार्थ इस पर्वत को उठाया था। मपु०
७०.४३८, हपु० ३५.४८ गोशीर्ष-(१) एक पर्वत । भरत को सेना यहाँ आयी थी। मपु० २९.८९
(२) गोशीर्ष पर्वत से उत्पन्न चन्दन । मपु० ३२.९८, पपु० .७५.२ गोष्ठ-गोशाला । वास्तुविद्या का एक महत्त्वपूर्ण अंग । मपु० २८.३६ गौड-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का पूर्व में स्थित एक देश । मपु०
२९.४१ गौतम-(१) दे० गोतम
(२) कृष्ण का एक पुत्र । यह शस्त्र और शास्त्र में निपुण था। हपु० ४८.७०, ७२
(३) वृषभदेव का एक नाम । मपु० १६.२६५
(४) रमणीकमन्दिर नगर निवासी एक विप्र । इसको भार्या कौशिकी के गर्भ से ही मरीचि का जीव अग्निमित्र नाम से उत्पन्न हुआ था। मपु ७४.७७, वीवच० २.१२१-१२२
(५) ब्राह्मणों का एक गोत्र । गणधर इन्द्र भूति (गौतम) इसी गोत्र के थे । मपु० ७४.३५७
(६) तीर्थकर महावीर के प्रथम गणधर । इन्द्रभूति इनका नाम था । ये वेद और वेदांगों के ज्ञाता थे । इन्द्र ने अवधिज्ञान से यह जान लिया था कि गौतम के आने पर ही भगवान् महावीर की दिव्य-ध्वनि हो सकती है। इसलिए यह इनके पास गया और इन्हें किसी प्रकार तीर्थंकर महावीर के निकट ले आया। महावीर के सान्निध्य में आते ही इनको तत्त्वबोध हो गया और ये अपने ५०० शिष्यों सहित महावीर के शिष्य हो गये। शिष्य होने पर सौधर्मेन्द्र ने इनकी पूजा की । संयम धारण करते ही परिणामिक विशुद्धि के फलस्वरूप इन्हें
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