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११० : जैन पुराणकोश
गरडांक-गान्धारी
गरुडांक-आदित्यवंशी नृप वृषभध्वज का पुत्र । यह मृगांक का जनक गांगेय-यह कुरु वंशी राजा शान्तनु के पुत्र पाराशर तथा रत्नपुर नगर
था । संसार से ममत्व छोड़कर इसने निर्ग्रन्थ व्रत धारण कर लिया के राजा जहनु की पुत्री गंगा का पुत्र था। इसने आजीवन ब्रह्मचर्य लिया था । पपु० ५.४-१०, हपु० १३.११
की प्रतिज्ञा लेकर पिता के लिए इष्ट धीवर कन्या गुणवती प्राप्त की गरुडांकितध्वजा-ध्वजाओं के दस भेदों में एक भेद । इस ध्वजा पर थी। पापु० ७.७६-११४, १६.१४-१९ कौरव-पाण्डव युद्ध में अभिमन्यु गरुड की आकृति चित्रित की जाती थी। मपु० २२.२२९
ने इसका महाध्वज तोड़ डाला था। इसने भी अभिमन्यु का ध्वज गरुडास्त्र-नागास्त्र का विध्वंसक अस्त्र । पपु० १२.३३२-३३६
छिन्न किया था। युद्ध में शिखण्डो द्वारा हृदय विद्ध किये जाने पर गरुत्मान्–जरासन्ध का एक पुत्र । हपु० ५२.३९
पृथिवी पर पड़े हुए इन्होंने अपना जीवन गया हुआ समझकर गर्दतीय-आठ प्रकार के लौकान्तिक देवों में पांचवें प्रकार के लौकान्तिक संन्यास धारण कर लिया था। इसी समय इसने कौरव और पाण्डवों
देव । ये ब्रह्मलोक निवासी, पूर्वभव में सम्पूर्ण त्रु तज्ञान के अभ्यासी से मैत्रीभाव धारण करने तथा उत्तम क्षमा आदि दस धर्मों के पालन
और महाऋद्धिधारी होते हैं । मपु० १७.४७-५०, वीवच० १२.२-८ __करने का उपदेश दिया था। धर्मध्यान में रत होकर अनुप्रेक्षाओं का गर्भकल्याणक-तीर्थंकरों के माता के गर्भ में आने पर इन्द्र द्वारा मनाया
चिन्तन करते हुए इसने चतुर्विध आहार और देह के ममत्व का त्याग जानेवाला एक उत्सव । इसमें इन्द्र आकर तीर्थकर के माता-पिता को
किया था। सल्लेखनापूर्वक शरीर छोड़कर यह पाँचवें ब्रह्म स्वर्ग भक्तिपूर्वक सिंहासन पर बैठाकर सोत्साह उनका अभिषेक करते हैं,
में देव हुआ । पापु० १९.१७८-१८०, २४८-२७१ पूजते हैं और तीर्थंकरों का स्मरण कर तीन प्रदक्षिणा देते हैं । वीवच० ..गाडाव-एक धनुष । इस राजा द्रुपद ने अपना पुत्री द्रौपदी के वर को ७.१२०-१२२
परीक्षा का साधन निश्चित यिया था। यह घोषणा की थी कि जो गर्भवास-शिशु का जननी के उदर में वास करना । यहाँ अनेक कष्ट
भी इससे चन्द्रकवेध कर देगा वही द्रौपदी का पति होगा। अर्जुन ने होने पर भी यह मोहावृत जीव इस वास से भयभीत नहीं होता।
इससे चन्द्रकवेध करके द्रौपदी को वरा था । हपु० ४५.१२६-१३५ मपु० ४२.९०-९१, पपु० ३९.११५-११६
गान्धार-(१) विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी का एक देश । पपु० गर्भाधान मन्त्र-गर्भाधान क्रिया में सप्तविध पीठिका मन्त्रों की आहु
९४.७ हपु० ३०.६ तियों के पश्चात् बोले जानेवाले मन्त्र । वे ये हैं-सज्जातिभागी भव, (२) ऋषभदेव के समय में इन्द्र द्वारा निर्मित भरतक्षेत्र के उत्तर सदगृहिभागी भव, मुनीन्द्रभागी भव, सुरेन्द्रभागी भव, परमराज्य
आर्यखण्ड का एक का एक देश । महावीर की विहारभूमि। मपु० भागी भव, आहन्त्यभागी भव, परमनिर्वाणभागी भव । मपु० ४०. १६.१५५, हपु० ३.५, ११.१७ ९२-९५
(३) जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र का एक देश । मपु०६३.९९, हपु० गर्भाधानोत्सव-गर्भावतरण-उत्सव । तीर्थंकरों के गर्भावतार के समय आयोजित इस उत्सव में देव हर्षित हो जाते हैं । जन्म के छः माह पूर्व
(४) गान्धार देश का एक नगर । मपु० ६३.३८४ से तीर्थंकरों के पितृगेह में कुवेर रत्नवृष्टि करता है। जल से पृथिवी
(५) सात स्वरों में एक स्वर । पपु० १७.२७७, हपु०१९.१५३ का सिंचन किया जाता है । मपु० १२.८४, ९८-१००
(६) अदिति देवी के द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त विद्याओं के गर्भान्वयक्रिया-उपासक की त्रिविध क्रियाओं में प्रथम क्रिया। इसके आठ निकायों में पांचवां निकाय । हपु० २२.५७ अन्तर्गत परमागम में गर्भ से लेकर निर्वाण पर्यन्त ये श्रेपन क्रियाएँ
(७) गान्धार देश के घोड़े । मपु० ३०.१०७ बतायी गयी है-आधान, प्रीति, सुप्रीति, धृति, मोद, प्रियोद्भव,
गान्धार-विद्याधर-एक विद्याधर निकाय । ये विद्याधर लाल मालाएं
और लाल वस्त्र धारण करते हैं। ये गान्धार-विद्या-स्तम्भ का सहारा नामकर्म, बहिर्यान, निषद्या, प्राशन, व्युष्टि, केशवाप, लिपिसंख्यान
लेकर बैठते हैं। हपु० २६.७ संग्रह, उपनीति, व्रतचर्या, व्रतावतरण, विवाह, वर्णलाभ, कुलचर्या,
गान्धारी-(१) स्वर सम्बन्धी मध्यम ग्रामाश्रित ग्यारह जातियों में प्रथम गृहीशिता, प्रशान्ति, गृहत्याग, दीक्षाद्य, जिनरूपता, मौनाध्ययनवृत्तत्व,
जाति । हपु० १९.१७६ तीर्थकृत्भावना, गुरुस्थानाभ्युपगम्, गणोपग्रहण, स्वगुरुस्थानसंक्रान्ति,
(२) दिति द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त विद्याधरों की एक निःसंगत्वात्मभावना, योगनिर्वाणसंप्राप्ति, योगनिर्वाणसाधन, इन्द्रोप
विद्या । हपु० २२.६५ पाद, अभिषेक, विधिदान, सुखोदय, इन्द्रत्याग, अवतार, हिरण्यो
(३) गान्धार देश की पुष्कलावती नगरी के राजा इन्द्रगिरि और त्कृष्टजन्मता, मन्दरेन्द्राभिषेक, गुरुपूजोपलम्भन, यौवनराज्य, स्वराज्य,
उसकी पत्नी मेरुसती की गन्धर्व आदि कलाओं में निपुण पुत्री। यह चक्रलाभ, दिग्विजय, चक्राभिषेक, साभ्राज्य, निष्क्रान्ति, योगसन्मह,
हिमगिरि की बहिन थी। कृष्ण ने हिमगिरि को मारकर इसका हरण आर्हन्त्य, तद्विहार, योगत्याग और अग्रनिवृति । मपु० ३८.५१-६३
किया था तथा बाद में उसके साथ विवाह कर उन्होंने इसे अपनी आठ गवीधुमत्-एक देश । यहाँ का राजा सीता के स्वयंवर में आया था।
पटरानियों में एक पटरानी बनाया। हपु० ४४.४५-४९ पूर्वभवों में पपु० २८.२१९
यह कौशल देश की अयोध्या नगरी के राजा रुद्रदत्त की विनयश्री गहन-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४९
नाम की रानी थी । आहारदान के प्रभाव से यह उत्तरकुरु में आर्या
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