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१०४ : जैन पुराणकोश
कम-खड्गा
मपु० ३.९०-१००, पपु० ३.७८, हपु० ७.१५०-१५२, पापु० २. १०४-१०५
(२) देशभूषण और कुलभूषण का पिता । यह सिद्धार्थ पगर का राजा था। कमलोत्सवा इसी की पुत्री थी। जब इसके दोनों पुत्र विरक्त होकर दीक्षित हो गये तो इसने शोकाकुल होकर अनशन व्रत ले लिया और मरकर भवनवासी देवों में सुवर्ण कुमार जाति के देवों का अधिपति महालोचन नाम का देव हुआ । पपु० ३९.१५८-१७८
(३) विजया की दक्षिण श्रेणी का एक नगर । मपु० १९.
निवृति की पुत्री । यह पिता द्वारा जीवन्धर-कुमार को दी गयी थी ।
मपु०७५.४१०-४१५ क्षेमांजलि-एक नगर । यहाँ वनवास के समय राम, सोता और लक्ष्मण
ने विश्राम किया था । पपु० ३८.५६-५९, ८०.१०१-११२ क्षेमा-पूर्व विदेहस्थ कच्छ देश की राजधानी। तीर्थकर सुपावं,
चन्द्रप्रभ, सुविधिनाथ और अरनाथ के पूर्वभव में यहाँ शासन किया था। बलभद्र राम भी पूर्वभव में यहीं जन्मे थे। मपु० ६३.२०८,
२१३, पपु० २०.११-१३, २३१, १०६.७५, हपु० ५.२५७-२५८ क्षेमी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७३ क्षोभण-रावण का ध्याघ्ररथासीन एक योद्धा। इसने राम के क्षुब्ध
नामक योद्धा के साथ युद्ध किया था। पपु० ५७.५१, ६२.३८ क्षोभ्या-रावण को प्राप्त एक विद्या । पपु० ७.३२६ क्षोम-सुन्दर और महीन रेशमी दुकूल । मपु० १२.१७३ श्वेल-एक ऋद्धि । इसके प्रभाव से वायु समस्त रोगों को हरनेवाली हो
जाती है । मपु० २.७१
(४) जम्बद्वीपस्थ पूर्वविदेह क्षेत्र के रत्नसंचय नगर के राजा और वायुध के पिता। जब इन्हें वैराग्य हुआ तो लौकान्तिक देव इनकी स्तुति के लिए आये। वायुध को राज्य देकर ये दीक्षित हुए और इन्होंने तप करके केवलज्ञान प्राप्त किया। इन्हें भट्टारक भी कहा गया है । ये पुण्डरीकिणी नगरी के राजा प्रियमित्र चक्रवर्ती के धर्मोपदेशक और दीक्षागुरु थे। मपु० ६३.३७-३९, ११२, ७३.३४-३५, ७४. २३६-२४०, पापु० ५.१२-१६, ३०-३१, वीवच० ५.७४-१०७
(५) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
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क्षेम-(१) एक देश और इसी नाम का एक नगर। यहाँ जीवन्धर ने
हजार शिखरों के जैन मन्दिर को देखा था। मपु०७५.४०२-४०३, पपु० ६.६८
(२) प्राप्त वस्तु की रक्षा । मपु० ६२.३५ क्षेमकृत्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६५ ।। क्षेमधर्मपति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
क्षेमधूर्त-कृष्ण-जरासन्ध युद्ध में यादवों का पक्षधर एक समरथ राजा ।
हपु० ५०.८२ क्षेमन्धर-चौथे मनु । इनकी आयु तुटिकाब्द प्रमाण थी। शारीरिक
अवगाहना सात सौ पचहत्तर धनुष थी । दुष्ट जीवों से रक्षा करने के उपायों का उपदेश देकर प्रजा का कल्याण करने से ये इस नाम से प्रसिद्ध हुए । मपु० ३.१०३-१०७, पपु० ३.७८, हपु० ७.१५२-१५३, पापु० २.१०३-१०६ क्षेमपुर-(१) धातकीखण्ड के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के उत्तरतटवर्ती सुकच्छ देश का नगर । मपु० ५३.२
(२) जम्बद्वीप में स्थित विदेह क्षेत्र के कच्छ देश का नगर । मपु० ४९.२,५७.२ क्षेमपुरी-(१) विजया, पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित चौबीसवीं नगरी मपु० १९.४८, ५३
(२) विदेह क्षेत्र के बत्तीस देशों में सुकच्छ देश की राजधानी। मपु० ६३.२०८-२१८, हपु० ५.२४५, २५७-२५८ क्षेमशासन-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
खंगपुर-एक नगर । यहाँ राजा सोमप्रभ राज्य करता था। मपु० ६७..
१४१-१४२ खग-(१) विद्याधर । हपु० १.१०४, ४४.४
(२) बाण । मपु० ४४.१२१
(३) पक्षी । मपु० ४४.१२१ खग-खग-विद्याधरों का पर्वत-विजयार्ध । मपु० ७१.३७६ खगपुर-एक नगर । सुदर्शन बलभद्र की जन्मभूमि । मपु० ६१.७० खगामिनी-एक विद्या । इससे आकाश में गमन किया जाता है । पपु०
७.३३४ खचर-तिर्यंच जीवों के तीन भेदों में एक भेद-आकाशगामी जीव । मपु०
९८.८१ खचराचल-विजयाध पर्वत । मपु० ५.२९१, ६२.२४१ खड-चौथे नरक पंकप्रभा के छठे प्रस्तार का इन्द्रक बिल । इसकी
चारों दिशाओं में चवालीस और विदिशाओं में चालीस श्रेणिबद्ध बिल हैं । हपु० ४.८२, १३४ खडखड-चौथे नरक पंकप्रभा के सातवें प्रस्तार का इन्द्रक बिल । इसकी
चारों महादिशाओं में चालीस और विदिशाओं में छत्तीस श्रेणिबद्ध बिल है । हपु० ४.८२, १३५ खड़ग-(१) एक देश । यह भरत चक्रवर्ती के समय में उनके राज्य को पूर्व दिशा में स्थित था। मपु० ६३.२१३, हपु० ११.६८-६९
(२) सैन्य शस्त्र । पपु० ९.३० खड्गपुरी-पश्चिम विदेहस्थ सुगन्धा देश की राजधानी। मपु० ६३.
२१२, २१७ खड्गा-(१) पश्चिम विदेहस्थ आवर्ता देश की राजधानी। मपु० ६३. २०८, २१३, हपु० ५.२४५, २५७, २६३
(२) पश्चिम-विदेहस्थ सुगन्ध देश की राजधानी । हपु० ५.२५१२५२, २६३
क्षेमसुन्दरी-क्षेमपुर नगर के निवासी सुभद्र श्रेष्ठी और उसकी पत्नी
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