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________________ ८८ : जैन पुराणकोश चार हजार छियानवे योजन है । शिरोमार्ग पर पूर्व आदि दिशाओं में चार चार कट हैं । मपु० ५.२९१, हपु० ५.६८६-६९४ कुण्डलपुर-विदर्भ देश का एक नगर, रुक्मिणी की जन्मभूमि । यहाँ सिंहरथ राज्य करता था। मपु० ६२.१७८, ७१.३४१, पापु० ४. १०३ अपरनाम कुण्डिनपुर । कुण्डलमण्डित-विदग्धनगर के राजा प्रकाशसिंह और उसकी रानी प्रवरावली का पुत्र । इसने राजा अनरण्य के राज्य पर कई बार आक्रमण किया। इससे खिन्न होकर अनरण्य ने अपने सेनापति बालचन्द्र के द्वारा इसे अपने राज्य से बाहर निकलवा दिया । एक मुनि से इसने धर्मोपदेश सुना। सम्यक्त्वी होकर यह मरा और जनक की रानी विदेहा के गर्भ में आया। यही जनक का पुत्र भामण्डल हुआ । पपु० २६.१३-१५, ४६-११२, १४८ कुण्डलवर-मध्यलोक का ग्यारहवाँ द्वीप एवं सागर । यह सागर इस द्वीप को घेरे हुए है। इस द्वीप के मध्य में कुण्डलगिरि पर्वत है। हपु० ५.६१८, ६८६ दे० कुण्डलगिरि कुण्डला-पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी और निषध पर्वत के मध्य स्थित सुवत्सा देश की राजधानी। मपु० ६३.२०९, २१४, हपु० ५.२४७ २४८, २५९-२६०, कुण्डलाद्रि-एक पर्वत । यहाँ ललितांग देव स्वयंप्रभा के साथ क्रीडार्थ आया करता था। मपु० ५.२९१ कुण्डली-छोटे आकार का कुण्डल । इसे बच्चे पहनते थे । मपु० ३.७८ कुण्डशायी-राजा धृतराष्ट्र और उसकी रानी गान्धारी का बासठवाँ __पुत्र । पापु० ८.२०० कुण्डिनपुर-विदर्भ देश में वरदा नदी के किनारे राजा ऐलेय के पुत्र कुणिम द्वारा बसाया गया नगर । यह रुक्मिणी की जन्मभूमि था। हपु० १७.२१-२३, ४२.३३-३४, ६०.३९, पापु० १२.३-४ अपरनाम कुण्डलपुर । दे० कुण्डलपुर कुणाल–भारतवर्ष का एक देश । श्रावस्ती नगरी इसी देश में रही है। यहाँ सुकेतु राजा का राज्य था । मपु० ५९.७२ कुणिक-(१) मगध का राजा । खदिरसार भील का जीव दो सागर तक स्वर्गसुख भोगकर इसी राजा की रानी श्रीमती का श्रेणिक नाम का पुत्र हुआ था । मपु० ७४.४१७-४१८, वीवच० १९.१३४-१३५ (२) राजा श्रेणिक और उसकी रानी चेलिनी का पुत्र । मपु० कुतपन्यास-वाद्यों का समुचित प्रयोग । इन्द्र ने अपने नृत्य में यह प्रयोग किया था। मपु०१४.१०० कुदृष्टि-मिथ्यादृष्ट जीव । ये मिथ्यादर्शन से युक्त होने के कारण सद् __ धर्म का स्वरूप नहीं समझ पाते । फलतः इन्हें कुयोनियाँ मिलती हैं । पपु० ५.२०२-२०३ कुधर्म-मिथ्यादृष्टियों द्वारा सेव्य धर्म । इससे जीवों को नीची योनियों में जन्म लेना पड़ता है । पपु० ५.२०२-२०३ कुनाल-एक राजा। यह तीर्थकर शान्तिनाथ का प्रमुख प्रश्नकर्ता था। मपु०७६,५३१, ५३३ कुन्त-भाला-सैन्य शस्त्र । मपु० ३७.१६४, ४४.१८० कुन्तल-भरतक्षेत्र के दक्षिण आर्यखण्ड का एक देश । भरतेश के छोटे __भाई ने अपने अधीन इस देश को छोड़ कर दीक्षा ले ली थी । हपु० ११.७०-७१ कुन्तली-कलगी। इसे किरीट पर लगाया जाता था। इसे स्त्री और पुरुष दोनों अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने के लिए लगाते थे। मपु० ३.७८ कुन्ती-शौर्यपुर नगर के राजा अन्धकवृष्टि/अन्धकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा की पुत्री। वसुदेव आदि इसके दस भाई तथा माद्री इसकी बहिन थी। राजा पाण्डु ने अदृश्य रूप से कन्या अवस्था में इसके साथ सहवास किया था। कन्या अवस्था में इसके कर्ण तथा विवाहित होने पर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन पुत्र हुए थे । मपु. ७०.९५-९७, १०९-११०, ११५-११६, पु० १८.१५, ४५.३७, पापु० ७.१३१-१३६, २५७-२५९, २६५, ८.१४१, १४२, १६७, १७० कौरवों ने इसे लाक्षागृह में जला देना चाहा था किन्तु यह पुत्रों सहित सुरंग से लाक्षागृह के बाहर निकल गयी थी। वनवास के समय इसके पुत्रों ने इसे विदुर के यहाँ छोड़ दिया था। अन्त में दीक्षा धारण कर और संन्यासपूर्वक प्राण त्यागकर यह सोलहवें स्वर्ग में सामानिक देव हुई। यहाँ से च्युत होकर यह मोक्ष प्राप्त करेगी। मपु० ७२.२६४-२६६, पापु० १२.१६५-१६६, १६.१४०, २५.१४१-१४४ पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के धनदत्त सेठ की स्त्री नन्दयशा की प्रियदर्शना नाम की पुत्री थी। इसके नौ भाई थे और एक बहिन थी। माता-पिता तथा भाई-बहिन के साथ इसने विधिपूर्वक संन्यास धारण किया । मरकर आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुई और वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय को प्राप्त हुई। मपु० ७०.१८२-- १९८, हपु० १८.११२-१२४ कुन्थु-(१) अवसर्पिणी काल के दुःषमा सुषमा नामक चतुर्थ काल में उत्पन्न शलाकापुरुष, छठे चक्रवर्ती एवं सत्रहवें तीर्थकर । ये सोलह स्वप्नपूर्वक कृत्तिका नक्षत्र में श्रावणकृष्णा दशमी की रात्रि के पिछले प्रहर में हस्तिनापुर के कौरववंशी एवं काश्यपगोत्री महाराज शूरसेन की रानी श्रीकान्ता के गर्भ में आये । वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन आग्नेय योग में इनका जन्म हुआ। क्षीरसागर के जल से अभिषेक करने के पश्चात् इन्द्र ने इनका नाम कुन्थु रखा । इनका जन्म तीर्थकर कुणिम-(१) माहिष्मती नगरी के राजा ऐलेय का पुत्र । इसने विदर्भ देश में वरदा नदी के तट पर कुण्डिनपुर नगर बसाया था। हपु. १७.२१-२३ (२) दक्ष की वंश परम्परा में उत्पन्न राजा संजयन्त का उत्तराधिकारी पुत्र, महारथ का जनक । पपु० २१.४८-५१ कुणीयान्-भरतक्षेत्र के मध्य का एक देश । हपु० ११.६५ कुतप-(१) गायन, वादन और नृत्य आदि के प्रयोग दिखानेवाले नट । हपु० २२.१३-१४ (२) भवन की देहली । मपु० २९.५७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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