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कालोवसागर - किमिच्छकवान
नदी में इस नाम का जल-देवता हुआ और नागी काली देवी हुई । काली देवी ने मगर का रूप धरकर जहाँ सरयू नदी गंगा में मिलती है वहाँ जयकुमार के तैरते हुए हाथी को पूर्व वैरवश पकड़ा था जिसे सुलोचना के त्याग से प्रसन्न हुई गंगादेवी ने इससे मुक्त कराया था । मपु० ४३.९२ ९५, ४५.१४४-१४९, पापु० ३.५-१३, १६०-१६८ (३) विद्याधरों की एक विद्या । हपु० २२.६६
कालोबसागर - मध्यलोक का द्वितीय सागर । यह कृष्ण वर्ण का है और घातकीखण्ड द्वीप को सब ओर से घेरे हुए है। इसकी परिधि इकानवें लाख सत्तर हजार छः सौ पाँच योजन से कुछ अधिक है तथा समस्त क्षेत्रफल पाँच लाख उनहत्तर हजार अस्सी योजन है । यहाँ के निवासी उदक, अश्व, पक्षी, शूकर, उंट, गौ, मार्जार और गज की मुलाकृतियों को लिये हुए होते हैं। इसमें चौबीस द्वीप आभ्यन्तर सीमा में और चौबीस बाह्य सीमा में इस तरह कुल अड़तालीस द्वीप हैं । हपु० ५.५६२-५७५, ६२८-६२९
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- काव्य –— कवि का भाव अथवा कर्म काव्य कहलाता है। धर्म-तत्व का प्रतिपादन ही काव्य का प्रयोजन है । काव्य में अनुकरण और मौलिकता का सुन्दर समन्वय होता है। विशाल शब्दराशि, स्वाधीन अर्थ, संवेद्य रस, उत्तमोत्तम छन्द और सहज प्रतिभा तथा उदारता काव्य रचना के सहायक तत्त्व हैं । प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास काव्य-सृजन के हेतु हैं । काव्यगत सौन्दर्य शैली पर निर्भर करता है । मपु०
१.६२-१११
• काव्यगोष्ठी — कवि-सभा । कविता-पाठ के द्वारा सहृदय समाज को काव्य के रसों का आस्वादन कराना ऐसी गोष्ठियों का लक्ष्य होता है । काव्य-गोष्ठियों का आयोजन प्राचीन काल से होता आ रहा है । मपु० १४.१९१ काशी- तीर्थंकर वृषभदेव के समय में इन्द्र द्वारा निर्मित वाराणसी का पार्श्ववर्ती एक देश | यह वृषभदेव एवं महावीर की विहारभूमि था । मपु० १६.१५१-१५२, २५.२८७, २९.४०, ४७, हपु० ३.३, ११. ६४, यह तीर्थंकर सुरावं की भी जन्मभूमि थी। वाराणसी नगरी इसी देश की राजधानी थी । अकम्पन भी यहाँ का राजा था । मपु० ४३.१२१, १२४, ४४.९०, पपु० २०.४३, पापु० ३.१९-२० -काश्मीर - वृषभदेव के समय में इन्द्र द्वारा निर्मित उत्तर दिशावर्ती एक प्रसिद्ध देश । लवणांकुश ने यहाँ के शासक को पराजित किया था । महावीर भी विहार करते हुए यहाँ आये थे । मपु० १६.१५३, २९. ४२, पपु० १०१.८१-८६, पापु० १.१३२
काश्य-तेज। इसके पालक होने से वृषभदेव काश्यप कहलाये । मपु०
१६.२६६
- काश्यप - (१) वृषभदेव का एक नाम। मपु० १६.२६६ दे० काश्य (२) वृषभदेव द्वारा राज्याभिषेक पूर्वक बनाया गया महामाण्डलि राजा । यह चार हजार अन्य छोटे-छोटे राजाओं का अधिपति तथा उग्रवंश का प्रमुख राजा था। वृषभदेव ने ही इसे मघवा की उपाधि दी थी । मपु० १६.२५५-२५७, २६१
(३) राम के समय काएक नृप । पपु० ९६.३०
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जैन पुराणकोश : ८५
काश्यपा – जम्बूद्वीप के कुरुजांगल देश में स्थित हस्तिनापुर नगर के राजा अर्हदास की रानी मधु और क्रीडव की जननी । मपु० ७२.३८-४० कांगारिक - हेमांगद देश में राजपुर नगर के राजा सत्यंधर का मंत्री । इसने राजा सत्यंधर के पुत्र को अपना हन्ता जानकर तथा पुरोहित पर विश्वास कर अनेक नृपों के साथ सत्यंधर पर आक्रमण किया था किन्तु पराजित हो गया था। इसने अपने पुत्र कालांगारिक के सहयोग से पुनः आक्रमण किया। इस बार वह विजयी हुआ और सत्यंधर को मारकर स्वयं राजा बन गया। अन्त में जीवन्धरकुमार द्वारा चलाये गये चक्र से यह भी मरण को प्राप्त हुआ । मपु० ७५.१८८-२२२, ६५९-६६७
काहल - महानादकारी एक वाद्य तुरही । मपु० १७.११३, पपु० ५८. २७-२८
किपुरुष - इस जाति के व्यन्तर देव ०५.१५३, १२.५९, ० वीवच १४.५९
किसूर्य -- लोकपाल विद्याधर कुबेर का पिता । इसकी रानी का नाम कनकावली था । पपु० ७.११२-११३
किन्नर - इस जाति के व्यन्तर देव । ये समतल भूमि से बीस योजन ऊपर विजयार्ध पर्वत के इसी नाम के नगर में रहते हैं । तीर्थंकरों के कल्याणोत्सवों में मांगलिक गीत गाते हुए ये देवसेना के आगे-आगे चलते हैं । मपु० १७.७९-८८, २२.२१, पपु० ३.३०९-३१०, ७.११८, हपु० ८.१५८, वीवच० १४.५९-६३
(२) एक नगर । किन्नर जाति के व्यन्तर देवों की निवास भूमि । नमकुमार का मामा यक्ष माली इसी नगर का राजा था । मपु० ७१. ३७२, पपु० ७.११८
किन्नरगोत - विजयार्ध पर्वत को दक्षिणश्रेणी का एक नगर । अपरनाम ०५.१७९, पापु० ११.२१,
किन्नरोद्गीत। म ०१९.३३, ५३,
६३.९३ । पु० २२.९८ किन्नरद्वीप - महाविदेहक्षेत्र की पश्चिम दिशा में जिनबिम्बों से दोप्यमान एक विशाल द्वीप । पपु० ३.४४ किन्नरमित्र - सुजन देश के नगरशोभ नगर के राजा के भाई सुमित्र का पुत्र और यक्षमित्र का सहोदर । इसकी श्रीचन्द्रा नाम की एक बहन थी जो श्रीषेण और लोहजंघ के द्वारा एक वनराज के लिए हरी गई थी । इसने और इसके भाई दोनों ने श्रीषेण और लोहजंघ से युद्ध किया था किन्तु ये दोनों पराजित हो गये थे । मपु० ७५, ४३८-४३९, ४७८-४९३
किन्नरी - किन्नर जाति के देवों की देवियों का सामान्य नाम । मपु० १७.११०
किन्नरोड़गीत - विजया की दक्षिणी का एक नगर ह० १९.८०, २२.९८, पपु० ९४.५ अपरनाम किन्नरगीत ।
किनामित गगनचुम्बी राजमहलों से शोभित और विजयापर्यंत को दक्षिणश्रेणी का विधाघरों का नगर । मपु० १९.३१-३३ किमिच्छक दान – इच्छानुसार ( मुँह माँगा ) दान यह दान कल्पद्रुम नामक यज्ञ में चक्रवर्तियों द्वारा दिया जाता है । मपु० ३८.३१, पपु० ९६. १८-२३, हपु० २१.१७७
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