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________________ INTRODUCTION .Nos. Bhagavati Arādhanã HK.SK. PK. NK. Others. मू- अत्र कथयार्थप्रतिपत्तिर्यथा-चन्द्रनामा सूपकारः परिवारहितो राशा निम्सारितोऽन्यः कृतः। परिवारेण च राशा सह भोजनं परिहृतम् । एवमेकदा समायाते तस्मिन् राजनि भोक्तुमुपविष्टे गगने चन्द्रस्य परिवेषमालोक्योक्तं लोकरद्य चन्द्रस्य परिवेषो जात इति । एतच्छुत्वा परिवारः सूपकारस्य राजकुले प्रवेशो जात इति मत्वा भोक्तुं गतवान्न च कूरं प्राप्तवान् इति । 732 अच्छीणि संघसिरिणो मिच्छत्तणिकाचणण पडिदाणि। 46 39 19 also 17 कालगदो वि य संतो जादो सो दीहसंसारे॥ 90*22 737 भावाणुराग पेमाणुराग मज्जाणुराग रत्तो वा। 47-50 42-3 90*23-6 101-4 Bh. 64 धम्माणुराग रत्तो य होहि जिणसासणे णिचं ॥* [एक्का वि जिणे भत्ती णिहिट्ठा दुक्खलक्षणासयरी। 51 4322 also 20 सोक्खाणमणंताणं होदि ह सा कारणं परमं ॥*] 90*27 739 दंसणभट्ठो भट्ठोण हु भट्ठो होदि चरणभट्ठो हु। 52-4 43-44 20 also 18, 105-6 Bh. 65 90*28, दसणममुयंतस्स हु परिवडणं णस्थि संसारे ॥ -29,-30 740 सुद्धे सम्मत्ते अविरदो वि अजेदि तित्थयरणामकम्म। 55 46 21 also 19, 107 Bh. 67 जादो खु सेणिगो आगमसिं अरुहो अविरदो वि॥ . 90*31 746 एया वि सा समत्था जिणभत्ती दुग्गई णिवारदं। 5658 90*32 113 पुण्णाणि य पूरे, आसिद्धिपरंपरसुहाणं ॥* [747] तह सिद्धचेदिए पवयणे य आइरियसव्वसाधूसुं। 57 68 भत्ती होदि समत्था संसारुच्छेदणे तिब्वा ॥* 748 विजा वि भत्तिवंतस्स सिद्धिमुवयादि होदि सफला य। 58 किध पुण णिव्वुदिबीजं सिज्झहिदि अभत्तिमंतस्स ॥ [752] वंदणभत्तीमित्तेण मिहिलाहिओ य पउमरहो। 1977 देविंदपाडिहरं पत्तो जादो गणधरो य॥ 759 अण्णाणी वि य गोवो आराधित्ता मदो णमोकारं। 6078 Bh. 81 चंपाए सेटिकुले जादो पत्तो य सामण्णं ॥ 772 जइ दा खंडसिलोगेण जमो मरणादो फेडिदो राया। 61 81 24 - Bh. 87 पत्तो य सुसामण्णं किं पुण जिणउत्तसुत्तेणं ॥ वि- वाच्यमत्राख्यानकं च । 773 दढसुप्पो सूलहदो पंचणमोकारमेत्तसुदणाणे। 62also 82 25 उवजुत्तो कालगदो देवो जादो 63-70 83-97 794 जीववहो अप्पवहो जीवदया होदि अप्पणो हु दया। 7lalso 97 विसकंटओ व्व हिंसा परिहरियव्वा तदो होदि॥ 7398 799 मारेदि एगमवि जो जीवं सो बहुसु जम्मकोडीसु। 731 99 (१) अवसो मारिजंतो मरदि विधाणेहिं बहुगेहिं ॥ 822 पाणो वि पाडिहरं पत्तो छुढो वि सुसुमारहदे। 7499 26 4 -S. 96 एफेण अप्पकालकदेण ऽहिंसावदगुणेण ॥ 837 सच्चं वदंति रिसओ रिसीहिं विहिदाओ सम्वविजाओ। 75 100 मिच्छस्स वि सिज्झंति य विजाओ सच्चवादिस्स। 1 Compare verse No. 305 of this story, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016060
Book TitleBruhat Katha kosha
Original Sutra AuthorHarishen Acharya
Author
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1943
Total Pages566
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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