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१. पूजाफलम् ।
४७ पयामास किमिति व्याघुटसे इति । सोऽवोचत् जैनेन सह न युयुधे इति व्याघुटे । इतरस्तज्जैनत्वमवबुध्यान्तः प्रवेश्य पुत्रीमदत्त। एकदा चण्डप्रद्योतनः स्ववनितान्तिके ऽवदत्तव पितरं यदि तदा जैनं न जानाम्यनर्थ करिष्ये । तयावादि मम पितुर्जिनपालभट्टारकैरभयप्रदानं दत्तमित्यनर्थो न स्यात् । एवं तर्हि तान् वन्दामहे इति तया वन्दितुमगात् । वन्दित्वा जगाद-समपरिणामयतीनां कस्यचिदभयप्रदानं कस्यचिदविनाशचिन्तनं किमचितम । ते मौनेन स्थिताः। वसुंकान्तयोक्तं मे पितुः पुण्येन दिव्यध्वनिनिसृत इत्यमीषां दोषो नास्ति । एहीति भवनं नीतः, तया सुखेन स्थितः। तेऽमी वयम् । तदा वाग्गुप्तिनष्टेति न स्थिता इति ।
ततो हृष्टो भूपः मणिमालिनं पृष्टवान् । स आह- मणिव देशे मणिवतनगरे राजा मणिमाली भार्या गुणमाला पुत्रो मणिशेखरः। राज्ञः केशान् विरुलयन्त्या . देव्या पलितमालोक्योदितम् 'यमदूतः समागतः' इति । राक्षा क्वेत्युक्त सा तं प्रदर्शयामास । ततो मणिशेखरं राज्ये नियुज्य बहुभिरदीक्षत । सोऽपि सकलागमधरो भूत्वोजयिन्याः पितृवने करने के लिए उसके पास अपने विशिष्ट पुरुषोंको भेजा । उनसे चण्डप्रद्योतनने कहा कि मैं जैनके साथ युद्ध नहीं करता हूँ, इसीलिए वापिस आ गया हूँ । तब प्रजापाल राजा जैन जानकर उसे भीतर ले गया और फिर उसने उसे अपनी पुत्री दे दी। एक समय चण्डपद्योतनने अपनी पत्नीके समीपमें स्थित होकर उससे कहा कि यदि मैंने तुम्हारे पिताको उस समय जैन न जाना होता तो अनर्थ कर डालता । इसपर पत्नीने कहा कि मेरे पिताको जिनपालि भट्टारकने अभयदान दिया था, इसलिए अनर्थ नहीं हो सकता था। तब चण्डपद्योतन बोला कि यदि ऐसा है तो चलो उनकी वन्दना करें । इस प्रकार वह पत्नीके साथ उनकी वन्दना करनेके लिए गया । वन्दना करनेके पश्चात् वह बोला कि जब साधुजन शत्रु और मित्र दोनोंमें समताभाव धारण करते हैं तब उनको किसीके लिए अभय प्रदान करना और किसीके विनाशकी चिन्ता करना उचित है क्या ? उसके इस प्रकार पूछनेपर वे मौन-से स्थित रहे । तब वसुकान्ताने कहा कि मेरे पिताके पुण्योदयसे दिव्य ध्वनि निकली थी, इसमें इनका कोई दोष नहीं है। चलो, इस प्रकार कहकर वह चण्डप्रद्योतनको घर ले गई । फिर वह उसके साथ सुखपूर्वक रहने लगा। वे ये हम ही हैं । हे राजन् ! उस समय हमारी वचनगुप्ति नष्ट हो चुकी थी, इसीलिए हम आहारार्थ आपके घर नहीं रुके ।
तत्पश्चात् राजा श्रेणिकने हर्षित होकर मणिमाली मुनिसे पूछा । वे बोले- मणिवत देशके भीतर मणिवत नगरमें मणिमाली नामका राजा राज्य करता था। उसकी पत्नीका नाम गुणमाला और पुत्रका नाम मणिशेखर था। किसी समय रानी गुणमाला राजाके बालोंको सँभाल रही थी। तब उसे उनमें एक श्वेत बाल दीख पड़ा। उसे देखकर उसने राजासे कहा कि यमका दृत आ गया है। वह कहाँ है, ऐसा राजाके पूछनेपर उसने उसे दिखला दिया। इससे राजाको विरक्ति हुई। तब उसने मणिशेखरको राज्य देकर बहुत-से राजाओंके साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। एक समय वह समस्त आगमका ज्ञाता होकर उज्जयिनीके श्मशानमें मृतकशय्यासे स्थित था। इतनेमें
१. ब व्याघोटसे। २. फ युधे इति व्याघोटो, ब युद्धे इति व्याघोटे। ३. ब मदत्ता । ४. ब यदि न जैनं तदा जानाम्यनर्थ । ५. प श मौनेनास्तुर्वसु० । ६. प श वाग्गुप्तिन तिष्ठतीति फ वागुप्तिनष्टेति । ७. ब 'मणिवतदेशे' नास्ति । ८. श
। ९. फ. राज्ञोक्तेति सा।
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