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५. उपवासफलम् ३-४
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यदा स्वशिरसि दर्पणदृष्ट्या पलितं निरीक्ष्य तस्मै स्वपदं दत्त्वा विमलकीर्तिः सुव्रतान्ते दीक्षितः मोक्षमियाय । अर्ककीर्तिः सकलचक्रवर्ती बभूव । बहुकालं राज्यं विधाय स्वतनयं जितशत्रु राज्ये नियुज्य चतुःसहस्रभव्यैः शीलगुप्ताचार्य सकाशे दीक्षितो ऽच्युतेन्द्रो भूत्वा संप्रति वर्तते स्वर्गे । सोऽग्रे तस्मादागत्यास्मिन् हस्तिनापुरे वीतशोकनरेन्द्रात्मजोऽशोकः भविष्यति । त्वमत्र पुण्यमुपायं स्वर्गे अमरीभूत्वागत्य चम्पापुरे मघवतः पुत्री रोहिणी भूत्वा तस्याग्रवल्लभा भविष्यसीति श्रुत्वा पूतिगन्धा पिहितास्रवं नत्वा स्वगृहं विवेश । रोहिणी विधिमुद्यान्य सुगन्धदेहा जाता । तदार्जिकानिकटे तपो विधाय संन्यासेन तनुं विहायेशाने तदच्युतेन्द्र प्रतिबद्धविमाने सुवर्णचित्रा देवी वभूव । अच्युतेन्द्र आगत्य त्वं जातोऽसि । साप्येत्य रोहिणी जाता । रोहिणीविधानप्रभवपुण्येन शोकं न जानाति ।
इदानीं तवापत्यभवान् शृणु । उत्तरमथुरेशसूरसेनविमलयोः सुता पद्मावती । तत्रैव विप्रोऽग्निशर्मा भार्या सावित्री पुत्राः शिवशर्माग्निभूतिश्रोभूति-वायुभूतिविशाखभूति सोमभूतिसुभूतयश्चेति सप्त । एकदा पाटलिपुत्रं दानार्थ गतास्तत्पति सुप्रतिष्ठ-कनकप्रभयोः पुत्रः सिंह
किसी समय विमलकीर्ति राजा दर्पण में अपना मुख देख रहा था । उस समय उसे अपने शिरके ऊपर श्वेत बाल दिखा । उसे देखकर उसके हृदय में वैराग्यभाव जागृत हुआ । तब उसने अर्ककीर्तिके लिए राज्य देकर सुव्रत मुनिके निकटमें दीक्षा ग्रहण कर ली । अन्तमें वह तपको करके मुक्तिको प्राप्त हुआ। उधर अर्ककीर्ति सकलचक्रवर्ती ( छह खण्डों का अधिपति ) हो गया । उसने बहुत समय तक राज्य किया । तलश्चात् उसने अपने पुत्र जितशत्रुको राज्य देकर चार हजार भव्य जीवोंके साथ शीलगुप्ताचार्य मुनिके पासमें दीक्षा ले ली । अन्तमें वह शरीर को छोड़कर अच्युतेन्द्र हुआ है । वह इस समय स्वर्ग में ही है । भविष्य में वह वहाँसे आकरके इस हस्तिनापुरमें वीतशोक राजाका पुत्र अशोक होगा और तू यहाँ पुण्यका उपार्जन करके स्वर्ग में देवी होगी । फिर वहाँ से आ करके चम्पापुरमें मघवा राजाकी पुत्री रोहिणी होती हुई उस अशोककी पटरानी होगी । इस प्रकार वह पूतिगन्धा पिहितास्रव मुनिसे उपर्युक्त वृत्तान्तको सुनकर उन्हें नमस्कार करती हुई अपने घरको वापिस गई । वह रोहिणी उपवासविधिका उद्यापन करके सुगन्धित शरीरवाली हो गई। फिर उसने पूर्वोक्त आर्याके निकटमें दीक्षा ले ली । अन्तमें वह तपश्चरणपूर्वक संन्यासके साथ शरीरको छोड़कर ईशान स्वर्गके अन्तर्गत उस अच्युतेन्द्र से सम्बद्ध विमान में देवी हुई । वह अच्युतेन्द्र आकर तुम हुए ही और वह देवी आकर रोहिणी हुई है । रोहिणीत अनुष्ठान उपार्जित पुण्यके प्रभावसे यह शोकको नहीं जानती है ।
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अब मैं तुम्हारे पुत्रोंके भवों को कहता हूँ, सुनो। उत्तर मथुरा में सूरसेन नामका राजा राज्य करता था । रानीका नाम विमला था । इनके एक पद्मावती नामकी पुत्री थी। इसी नगर में एक अग्निशर्मा नामका ब्राह्मण रहता था उसकी पत्नीका नाम सावित्री था। इनके शिवशर्मा, अग्निभूति, श्रीभूति, वायुभूति, विशाखभूति, सोमभूति और सुभूति नामके सात पुत्र थे । वे एक समय भिक्षा माँगने के लिए पाटलीपुत्र गये थे । वहाँ उस समय सुनतिष्ठ नामका राजा राज्य करता था । उसकी पत्नीका नाव कनकप्रभा था । इनके एक सिंहस्थ नामका पुत्र था । इसको देने के लिए
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१. ज स्वर्गे तस्मादागत्यास्मिन् श स्वर्गे सो तस्मदाग त्यास्मिन्
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२. पफश पाटली० ।
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