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५. उपवासफलम् ३-४
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कस्मिन् शास्त्रे क्षपणकोऽपशकुन इति भणितम्, कथय कथयेति । तदा तूष्णीं स्थिते तस्मिन् विश्वदेवो वभाण - देव, दिगम्बरदर्शनं श्रेयोऽर्थ भवति । उक्तं च शकुनशास्त्रे -
श्रमणस्तुरगो राजा मयूरः कुञ्जरो वृषः । प्रस्थाने वा प्रवेशे वा सर्वे सिद्धिकराः स्मृताः ॥
देव, त्वमत्रैव तिष्ठ, पञ्चरात्रे स विशिष्टः कन्याकरिभ्यां नागच्छति चेदहं शाकुनिको न भवामि । ततो राजा तत्रैव शिबिरं विमुच्य तस्थौ । तथैव स आगतस्तदा राजा संतुष्टो विश्वदेवं पुरोहितं चकार, पुरं प्रविवेश । सोमशर्मा कुपितस्तं मुनिं रात्रौ मारयति स्म । मुनिः सर्वार्थसिद्धि ययौ । स राजा मुनिघातकं केनापि प्रकारेण विबुध्य गर्दभारोहणादिकं कृत्वा निर्धाटितवान्। स महादुःखेन मृत्वा सप्तमावनं जगाम ततो निःसृत्य स्वयंभूरमणे महामत्स्यो ऽभूदनन्तरं पष्ठ नरकं ययौ । ततो महाटव्यां सिंहो भूत्वा पञ्चमीं धरामवाप । ततो व्याघ्रोऽजनि मृत्वा चतुर्थनरकमियाय । ततो दृष्टिविषो जातः तृतीयनरकं प्राप्तः । ततो भेरुण्डो भूत्वा द्वितीयनरकं जगाम । ततोऽपि शुकरो जातो मृत्वा प्रथमावनो जातः । ततो मगधदेशे सिंहपुरेशसिंह सेन- हेमप्रभयोः पुत्रो बभूव । सोऽतिदुर्गन्धदेह इति दुर्गन्ध कुमार
पूछा कि हे पुरोहित ! दिगम्बर साधुका दर्शन अपशकुन कारक है, यह किस शास्त्र में कहा गया है; मुझे शीघ्र बतलाओ । इसपर जब वह सोमशर्मा चुप रहा तत्र विश्वदेवने राजासे कहा कि हे देव ! दिगम्बर साधुका दर्शन कल्याणकारी होता है । शकुनशास्त्र में भी ऐसा ही कहा गया हैदिगम्बर साधु, घोड़ा, राजा, मोर, हाथी और बैल; ये सब प्रस्थान और प्रवेशके समयमें कल्याणकारी माने गये हैं ।
फिर विश्वदेव बोला कि हे राजन् ! आप यहाँपर ही स्थित रहिए । यदि वह दूत पाँच दिनके भीतर मदनाचली और उस हाथीके साथ वापिस नहीं आता है तो मुझे शकुनका ज्ञाता ही नहीं समझना । तब राजा वहीं पर पड़ाव डालकर स्थित हो गया । तत्पश्चात् जैसा कि विश्व - देवने कहा था, तदनुसार ही वह दूत राजपुत्री और उस हाथीको साथ लेकर वहाँ आ पहुँचा । इससे राजा को बहुत सन्तोष हुआ । तब वह विश्वदेवको पुरोहित बनाकर नगर के भीतर प्रविष्ट हुआ | इस घटना से सोमशर्माको बहुत क्रोध आया । इससे उसने रातमें उन सोमदत्त मुनिको मार डाला । इस प्रकारसे शरीर को छोड़कर सोमदत्त मुनि सर्वार्थसिद्ध विमानको प्राप्त हुए । जब राजाको यह किसी प्रकारसे ज्ञात हुआ कि सोमशर्माने मुनिकी हत्या की है तब उसने गर्दभारोहण आदि कराकर उसे देशसे निकाल दिया । तब वह महान् कष्टके साथ मरकर सातवें नरकको प्राप्त हुआ । पश्चात् वहाँ से निकलकर वह स्वयंभूरमण समुद्र में महामत्स्य हुआ । वह भी मरकर छठे नरक में गया । तत्पश्चात् वह महावनमें सिंह हुआ और मरकर पाँचवें नरकमें गया । वहाँ से निकलकर वह व्याघ्र हुआ और फिर मरकर चौथे नरक में गया । तत्पश्चात् ह दृष्टिविष सर्प होकर तीसरे नरक में गया। फिर उसमेंसे निकलकर वह भेरुण्ड पक्षी हुआ और मरकर दूसरे नरकमें गया । तत्पश्चात् वह शूकर हुआ और मरकर पहिले नरक में गया । वहाँ से निकलकर वह मगधदेशमें सिंहपुर के राजा सिंहसेन और हेमप्रभाका पुत्र हुआ है । शरीर से
१. फ वृद्धिकराः ।
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