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पुण्यात्रवकथाकोशम्
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श्रीजानकी रामनृपस्य देवी दग्धा न 'संधुक्षितवह्निना च । देवेशपूज्या भवति स्म शीलाच्छीलं ततोऽहं खेल पालयामि ||४||
स्य कथा - अत्रैवायोध्यायां राजानौ बलनारायणौ रामलक्ष्मणनामानौ । रामस्याष्ट्रसहस्रान्तः पुरमध्ये सीता-प्रभावती - रतिनिभा श्रीदामाश्चेति चतस्रः पट्टराश्यः । सीता चतुर्थस्नानान्तरं पत्या सह सुप्ता रात्रिपश्चिमयामे स्वप्नमद्राक्षीत् - स्वमुखे प्रविशन्तं शरभद्वयं गगनयाने विमानात्स्वस्य पतनं च । रामाय निरूपिते तवोत्तमं पुत्रयुग्मं भविष्यति किंचिद् दुःखं चेति । तदनु सीता श्रेयोऽर्थ जिनपूजां कर्तु लग्ना । गर्भसंभूतौ तीर्थस्थानवन्दनादोहलकोऽभूत् । तदा रामो नभोयानेन तन्मनोरथान् पूरितवान् । ततस्तत्र कुलटत्वमुद्दिश्य स्वभर्तृभिः पुनः पुनस्ताडयमाना बन्धक्यः स्व-स्वभर्तारं प्रत्युत्तरं दत्तवत्यः तद्वनप्रवेशकाले सीता रावणेन चोरयित्वा वर्षमेकं तत्र स्थिता पुनस्तं हत्वानीयं तथैव गृहे स्थापिता इति । कियत्सु दिनेषु पर्यालोच्य मेलापकेन राघवद्वारे' प्रजागमनं जातम् । प्रतिहारैर्विशप्ते रामेणाहूताः अन्तः प्रविश्य बलनारायणाववलोक्य रामेणागमनकारणे पृष्ठे वक्तुमशक्यत्वा
[ ४-४, २६ :
राजा रामचन्द्रकी पत्नी व जनककी पुत्री सीता सती शीलके प्रभावसे भड़की हुई अग्नि में न जलकर इन्द्रोंके द्वारा पूजित हुई । इसीलिये मैं उस शीलका परिपालन करता हूँ ||३||
इसकी कथा इस प्रकार है- इसी भरत क्षेत्र के भीतर अयोध्या पुरीमें राजा राम और लक्ष्मण राज्य करते थे । इनमें रामचन्द्र तो बलभद्र और लक्ष्मण नारायण थे । रामचन्द्रके आठ हजार स्त्रियाँ थीं। उनमें सीता, प्रभावती, रतिनिभा और श्रीदामा ये चार पट्टरानियाँ थीं । सीता चतुर्थ स्नान के पश्चात् पतिके साथ सो रही थी । उस समय उसने रात्रिके अन्तिम पहर में स्वप्न में अपने मुखमें प्रवेश करते हुए दो सिंहोंको तथा आकाश मार्ग से गमन करते हुए विमानसे अपने अधःपतनको देखा । तब उसने इन स्वप्नोंका वृत्तान्त रामचन्द्र से कहा । उन्हें सुनकर रामचन्द्रने कहा कि तुम्हारे उत्तम दो पुत्र होंगे। साथ ही कुछ कष्ट भी होगा । तत्पश्चात् सीता कल्याणके निमित्त जिनपूजा में तत्पर हो गई । गर्भकी अवस्थामें उसके तीर्थ-स्थानोंकी वन्दनाका दोहल हुआ । तब रामचन्द्र ने उसके इन मनोरथोंको आकाशमार्गसे जाकर पूर्ण किया । पश्चात् अयोध्या में कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं कि जिनमें किन्हीं पतियोंने दुराचार के कारण अपनी पत्नियोंको बार-बार ताड़ना की । परन्तु उन दुश्चरित्र स्त्रियोंने उसके उत्तर में अपने पतियोंको यही कहा कि जब राजा रामचन्द्र वनमें गये थे तब रावण सीताको हरकर ले गया था । वह रावण के यहाँ एक वर्ष रही। फिर भी रामचन्द्र रावणको मारकर उसे वापिस ले आये और अपने घरमें रक्खा है । तब उत्तरोत्तर ऐसी ही अनेक घटनाओं के घटने पर कुछ दिनों में प्रजाके प्रमुखोंने इसका विचार किया । तत्पश्चात् वे मिलकर रामचन्द्र के द्वारपर उपस्थित हुए । द्वारपालोंके निवेदन करनेपर रामचन्द्रने उन सबको भीतर बुलाया । भीतर जाकर उन्होंने बलभद्र और नारायणको देखा । तब रामचन्द्र ने उनसे आनेका कारण पूछा। परन्तु उन्हें कुछ कहने का साहस नहीं हुआ। इस प्रकार वे मौनका आलम्बन करके
१. ब प्रतिपाठोऽयम् । श सिंधुक्षित। २ क परि° ३ ब प्रतिपाठोऽयम् । श तीर्थस्नानवंदन | ४. ब ' ततस्तत्र कुलटत्व प्रत्युत्तरं दत्तवत्यः' एतावान् पाठो नोपलभ्यते । ५. ब चोरयित्वा नीता तं हत्वानीय । ६. श राज्यवहारे । ७. ब दिवसेषु मेलापकेन प्रजागमनं ।
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