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३-७, २४ ] ३. श्रुतोपयोगफलम् ७
१३३ मुनि च पृच्छतः स्म तयोरुपरिमोहहेतुम् । अकथयत् मुनिनाथः । सथाह्यत्रैवार्यखण्डे मगधदेशे शालिग्रामे विप्रसोमदेवाग्निज्वालयोरपत्ये अग्निभूतिवायुभूती । तावेकदा राजगृहं प्रविशन्तौ यात्रां ददृशतुः। किमर्थं यात्रेति पृष्टे केनचिदुक्तम् 'नन्दिवर्धनदिगम्बरवन्दनार्थम्' इति । किमावाभ्याम् अपि कोऽपि वन्द्योऽस्तीति गर्वितौ तत्र गती। मुनिना जानतापि कस्मादागतावित्युक्तम् । शालिग्रामादागतो, सत्यमसत्यं वा यूयं जानीथ । पूर्वजन्मनः कस्मादागतौ । आवां न विद्वः, भवन्तः कथयन्तु । कथ्यते, शृणुथः । शालिग्रामस्यैव सीमान्ते शृगालौ जातौ। तदैकः कुटुम्बी प्रमादकः स्ववरत्रादिकं तत्रैव वटतले बिलस्याभ्यन्तरे निधार्य गृहं गतः । तद्वर्षास्वातिं ताभ्यां भक्षितम् । ततः समुद्भतशूलेन मृतौ युवां जाती। श्रुत्वा तो जातिस्मरौ बभूवतुः । प्रमादकोऽपि मृत्वा स्वसुतस्यैव सुतो जातः, भवस्मरणेन मूकीभूय तिष्ठतोति निरूपिते तमाहूय जनाः पृष्ठा साश्चर्या बभूवुः। ततो मूकः स्पष्टालापो भूत्वा दीक्षितः, अन्येऽपि । तत्सामर्थ्यदर्शनात्तौ मिथ्यात्वोदयात् कुपितौ रात्रौ तं मारयितुमार्गमें उन्हें एक चाण्डाल और एक कुत्ती दिखायी दी। उन दोनोंको देखकर उनके हृदयमें मोहका प्रादुर्भाव हुआ। जिनालयमें जाकर उन दोनोंने जिनेन्द्रकी पूजा की। तत्पश्चात् उन्होंने मुनिको नमस्कार करके उनसे उपर्युक्त चाण्डाल और कुत्तीके ऊपर प्रेम उत्पन्न होनेका कारण पूछा । मुनिराज बोले- इसी आर्यखण्डके भीतर मगध देशके अन्तर्गत शालिग्राममें ब्राह्मण सोमदेव
और अग्निज्वालाके अग्निभूति और वायुभूति नामके दो पुत्र थे। एक दिन उन दोनोंने राजभवनके भीतर प्रवेश करते हुए लोकयात्राको देखकर पूछा कि यह जनसमूह कहाँ जा रहा है ? तब किसीने उत्तर दिया कि ये सब नन्दिवर्धन दिगम्बर मुनिकी वंदनाके लिये जा रहे हैं। यह सुनकर उनके हृदयमें अभिमान उत्पन्न हुआ। वे सोचने लगे कि क्या हमसे भी कोई अधिक वंदनीय है । इस प्रकार अभिमानके वशीभूत होकर वे दोनों उक्त मुनिराजके पास गये । मुनिराजने जानते हुए भी उनसे पूछा कि तुम दोनों कहाँ से आये हो ? उन्होंने उत्तर दिया कि हम शालिग्रामसे आये हैं। यह सत्य है या असत्य, इसे आप ही जानें। फिर मुनिराजने उनसे पूछा कि पूर्व जन्मकी अपेक्षा तुम कहाँ से आये हो ? इसके उत्तरमें उन्होंने कहा कि यह सब हम नहीं जानते हैं, आप ही बतलाइए । तब मुनि बोले कि अच्छा हम बतलाते हैं, सुनो। तुम दोनों पूर्व भवमें इसी शालिग्रामकी सीमाके अन्तमें शृगाल हुए थे। उस समय एक प्रमादक नामका किसान अपनी चाबुक आदि वहाँ एक वट वृक्षके नीचे बिलके भीतर रखकर घरको चला गया था। उस समय वर्षा बहुत हुई। ऐसे समयमें भूखसे व्याकुल होकर उन दोनोंने वर्षासे भीगी हुई उस गीली चाबुकको खा लिया। इससे उन्हें शूलकी बाधा उत्पन्न हुई। तब वे दोनों मरणको प्राप्त हुए व तुम दोनों उत्पन्न हुए हो। यह सुनकर उन दोनोंको जातिस्मरण हो गया। वह प्रमादक मी मरकर अपने पुत्रका ही पुत्र हुआ है, जो जातिस्मरण हो जानेसे मूक ( गूंगा ) होकर स्थित है। इस प्रकार मुनिके द्वारा निरूपण करनेपर समीपस्थ जनोंने जब उसे बुलाकर पूछा तब उसने यथार्थ स्वरूप कह दिया। इससे उन सबको बहुत आश्चर्य हुआ । तत्पश्चात् उस मूकने स्पष्टभाषी होकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली। उसके साथ कुछ दूसरे भी भव्य जीवोंने दीक्षा ले ली। मुनिकी इस आश्चर्यजनक शक्तिको देखकर मिथ्यात्वके वशीभूत हुए उन अग्निभूति और वायुभूतिको बहुत
१.ब पृच्छति स्म तयोरुपरिमोहहेतुं कथय स कथयन् मुनि । २. फ श तदेकः । ३. ब विधाय । ४. ५ गतः मृवर्षास्वाद्रितं श ततद्धर्षास्वाद्रितं । ५. प पृष्टा श पृष्टाः । ६. ५ श मूकस्य ।
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