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१२४ पुण्यास्रवकथाकोशम्
[३-४, २१-२२: राज्ञो भणितमत्र भुक्त्वा गन्तव्यमभ्युपगतं तेन । भुक्त्यूर्व राजा तामपृच्छदस्य व्याधित्रयं किमित्युपेक्षितम् । तयोक्तं कः को व्याधिः। सोऽभाषत चलासनत्वं प्रकाशे लोचनस्रवणं भोजन एकैकसित्थु[क्थ] गिल नमुगिलनं च । तयोच्यते-नेमे व्याधयः, किंत्वयं दिव्यशय्यायां दिव्यगहिकायां शेते उपविशते चाद्य युष्माभिः सहोपविष्टस्य मस्तके क्षिप्तसिद्धार्थेषु सुखासने पतितसिद्धार्थकार्कश्येन चलासनोऽभूत् । रत्नप्रभां विहायान्या प्रभा कदाचिदनेन न दृष्टा । अद्य युष्माकमारत्युद्धरणे दीपप्रभादर्शनेन लोचनस्रवर्णमस्याभूत् । दिनास्तसमये शालितण्डुलान् प्रक्षाल्य सरसि कमलकर्णिकायां निक्षिप्य ध्रियन्ते । द्वितीयदिने तेषामोदनं भुङ्क्ते। अद्य तदोदनमुभयोर्न पूर्यत इति तन्मध्येऽन्येऽपि तण्डुला निक्षिप्ता इति कृत्वा तथा भुक्तवानिति निरूपिते साश्चर्योऽभूद्राजा। तयोपायनीकृतवस्त्राभरणरत्नस्तं पूजयित्वावन्तिसुकुमार इति तस्यापरं नाम कृत्वा स्वावासं जगाम नृपः । सोऽवन्तिकुमारो दिव्यभोगान् चिक्रीड।
___ एकदा तन्मातुलो महामुनियशोभद्रनामावधिज्ञानी तमल्पायुष विवेद, तत्संबोधनार्थ प्रार्थना की कि आप भोजन करके यहाँसे वापिस जावें। राजाने उसकी प्रार्थनाको स्वाकार कर लिया। भोजनके पश्चात् राजाने यशोभद्रासे पूछा कि कुमारको जो तीन व्याधियाँ हैं उनकी तुम उपेक्षा क्यों कर रही हो ? उत्तरमें सुभद्राने पूछा कि इसे वे कौन कौन-सी व्याधियाँ हैं ? तब राजाने कहा कि प्रथम तो यह कि वह अपने आसनपर स्थिरतासे नहीं बैठता है, दूसरे प्रकाशके समय इसकी आँखोंसे पानी बहने लगता है, तीसरे भोजनमें वह चावलके एक-एक कणको निगलता है
और थूकता है। यह सुनकर यशोभद्रा बोली कि ये व्याधियाँ नहीं हैं। किन्तु यह दिव्य शय्या ( पलंग ) के ऊपर दिव्य गादीपर सोता व बैठता है। आज जब यह आपके साथ बैठा था तब मंगलके निमित्त मस्तकपर फेंके हुए सरसोंके दानोंमेंसे कुछ दाने सिंहासनके ऊपर गिर गये थे। उनकी कठोरताको न सह सकनेके कारण वह आसनके ऊपर स्थिरतासे नहीं बैठ सका था । इसके अतिरिक्त इसने अब तक रत्नोंकी प्रभाको छोड़कर अन्य दीपक आदिकी प्रभाको कभी भी नहीं देखा है। परन्तु आज आपकी आरती उतारते समय दीपककी प्रभाको देखनेसे इसकी आँखों मेंसे पानी निकल पड़ा। तीसरी बात यह है कि सूर्यास्तके समय शालि धान्यके चावलोंको धोकर तालाबके भीतर कमलकी कर्णिकामें रख दिया जाता है। तब दूसरे दिन वह इनके भातको खाया करता है। आज चूंकि उतने चावलोंका भात आप दोनोंके लिये पूरा नहीं हो सकता था इसीलिये उनमें कुछ थोड़े-से दूसरे चावल भी मिला दिये गये थे। इसी कारण उसने अरुचिपूर्वक उन चावलोंको चुन-चुनकर खाया है। इस प्रकार यशोभद्राके द्वारा निरूपित वस्तुस्थितिको जान करके राजाको बहुत आश्चर्य हुआ। उस समय यशोभद्राके द्वारा राजाके लिये जो वस्त्र और आभूषण भेंट किये गये थे उनसे राजाने उसके पुत्रका सम्मान किया, अन्तमें वह कुमारका 'अवन्तिसुकुमार' यह दूसरा नाम रखकर अपने राजभवनको वापिस चला गया। वह अवन्तिसुकुमार दिव्य भोगोंका अनुभव करता हुआ क्रीड़ामें निरत हो गया।
एक दिन सुकुमारके मामा यशोभद्र नामक महामुनिराजको अवधिज्ञानसे विदित हुआ कि अब सुकुमारकी आयु बहुत ही थोड़ी शेष रही है। इसलिये वह सुकुमारको प्रबुद्ध करनेके
१. ब सित्थू । २. ब उपविशति । ३. प विहायन्या। ४. प श श्रमण । ५. प श तयोपानीयकृत
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