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gora auratशम्
[ २-६, १७ :
तमवलोकयितुं नागच्छामीति । ततस्तद्गृहं जगाम मन्मित्रं क तिष्ठतीति चाप्राक्षीत् । साकथयदुपरिभूमौ तिष्ठति । त्वमेवैकाकी गच्छ तदन्तिकमिति । ततो मित्रादिकं तलभूमावेव व्यवस्थाप्य स्वयमेकाको तत्र जगाम । तत्र सा पल्यङ्कस्योपरि हंसतूले सुप्ता स्थिता । तद्वृत्तमजानन् सुदर्शनस्तत्तूलिकातले उपविश्योक्तवान् 'हे मित्र, तव किमनिष्टं प्रवर्तते' इति । सातस्तं धृत्वा स्वकुचयोर्व्यवस्थाप्य वभाण मां तव संगाप्राप्त्या म्रियमाणां दयालुस्त्वं रक्षेति । स जजल्प षण्डकोऽहं बहीं रम्य इति निशम्य सा तं विरज्य मुमोच । ततः स्वगृहे सुखेनातिष्ठत् ।
वद
एकदा वसन्तोत्सवे राजादय उद्यानं जग्मुरभयमती सकलान्तःपुरपरिवृता स्वसखीकपिलया पुष्पकमारुह्य गच्छन्ती रथारूढां सुकान्तं पुत्रं स्वोत्सङ्गे उपवेश्य गच्छन्तीं मनोरमां लुलोके अवदच्च कस्येयं सुपुत्री' कृतार्थेति । कयाचिदुक्तं सुदर्शनस्य प्रिया मनोरमा सुकान्तपुत्र मातेति । श्रुत्वाभयमत्याऽवादि धन्येयमीदृग्विधपुत्रमातेति । कपिलयोच्यते केनचिन्मम निरूपितं सुदर्शनो नपुंसक इति तस्य कथं पुत्रोऽभवदिति । देव्युवाचैवंविधः पुण्याधिकः स किं षण्डो भवति । दुष्टेन केनचित्तन्निरूपितमिति । पुनस्तया यथावन्निरूपिते देव्योक्तं
यह ज्ञात नहीं है, अन्यथा मैं उसे देखनेके लिए अवश्य आता । तत्पश्चात् वह उसके घर गया । वहाँ पहुँचकर उसने पूछा कि मेरा मित्र कहाँ है ? सखीने कहा कि वह ऊपर है । आप अकेले ही उसके पास चले जाइए । तब वह मित्रादिकों को नीचे ही बैठाकर स्वयं अकेला ऊपर गया । वहाँ कपिला पलंग के ऊपर श्रेष्ठ गादीपर पड़ी हुई थी । उसकी कुटिलताका ज्ञान सुदर्शनको नहीं था । इसीलिए उसने उस गादीके ऊपर बैठते हुए पूछा कि हे मित्र ! तुम्हारा क्या अनिष्ट हो रहा है ? तब कपिलाने उसके हाथको खींचकर अपने स्तनोंके ऊपर रखते हुए कहा कि मैं तुम्हारे संयोगविना मर रही हूँ। तुम दयालु हो, अतः मुझे बचाओ । यह सुनकर सुदर्शनने उससे कहा कि मैं केवल बाहर देखने में ही सुन्दर दिखता हूँ, परन्तु पुरुषार्थसे रहित ( नपुंसक ) हूँ । अतएव तुम्हारे साथ रमण करनेके योग्य नहीं हूँ। यह सुनकर सुदर्शन की ओरसे विरक्त होते हुए उसने उसे छोड़ दिया । तब वह अपने घर आकर सुखपूर्वक स्थित हो गया ।
एक बार वसन्तोत्सव के समय राजा आदि नगरके अभयमती भी समस्त अन्तःपुरसे वेष्टित होकर अपनी सखी (थ) बैठकर गई । जब वह जा रही थी तब उसे मार्गमें रथसे जाती हुई मनोरमा दिखी। उसने पूछा कि यह सुन्दर पुत्रवाली किसकी सुपुत्री है ? इसका जीवन सफल है । तब किसी स्त्रीने कहा कि यह सुदर्शन सेठकी वल्लभा मनोरमा है और वह उसका पुत्र सुकान्त है । यह सुनकर अभयमती बोली कि यह धन्य है जो ऐसे उत्तम पुत्रकी माता है । तब कपिला बोली कि 'मुझसे तो किसीने कहा है कि सुदर्शन नपुंसक है, उसके पुत्र कैसे उत्पन्न हुआ है ? उत्तर में अभयमतीने कहा कि इस प्रकारका पुण्यशाली पुरुष कैसे नपुंसक हो सकता है ? किसीने दुष्ट अभिप्रायसे वैसा कहा होगा । तब उसने उससे अपना पूर्वका यथार्थ वृत्तान्त कह दिया । यह सुनकर अभयमतीने कहा कि तुम्हें उसने धोखा दिया है । इसपर
बाहर उद्यानमें गये । साथमें रानी कपिलाके साथ पालकी में (अथवा अपने सुकान्त पुत्रको गोद में लेकर
१. ब - प्रतिपाठोऽयम् । पफश तद्वस्त्रं । २. फश न हि । ३. ब पंडको बही रम्येति । ४. फ बश गच्छती । ५. बसपुत्रा ।
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