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________________ प्रसंग पंचवीसवा श्री वीतरागाय नमः नत्वा जिनं श्रीजगत् बंधुं । अरिहंतसिद्धज्ञानसिंधु । आचार्य उपाध्याय-साधू । पंचप्रसिधु नमोस्तु ते ॥१॥ वंदु सारदा ज्ञानदाता । कवित्व कळा वरदहस्ता । सावधान श्रोता वक्ता । धर्मकथा परिसा पै ॥२॥ स्वस्तिकावत्या नाम नगरी । राजा विश्वावसु राज्य करि ।। तद्राज्ञी श्रीमती सुंदरी । पुत्र उदरि वसुनामा ॥३॥ क्षीरकदंब उपाध्याय । क्षीरवत् निर्मलाशय । महाज्ञानी गंभीर । विप्रवंशा सिरोमणि ॥४॥ तो जैनधर्मी ब्राम्हण । जिनपूजा अध्ययन । होम-मंत्र-क्रिया-निपुण । अघनाशन शांतिकर्ता ॥५॥ तद्भार्या नाम स्वस्तिमति । पर्वनाम पुत्रोत्पत्ती । तत्पुत्र महादुर्मती । सुखोत्पत्ति न पुण्याविना ।।६।। तत्कवणे एके दिवसी । नारद ब्राम्हण परदेसी । जिनेंद्र-पद-पंकजासी । दिवानिसि निर्मदयुक्त ॥७॥ तो विद्यापठनार्थ तेथ । राजपुत्र वसु पर्वत । तीधे पढति जिनमत । उपाध्याय तयात सीकवि ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016054
Book TitleAradhana Kathakosha
Original Sutra AuthorBhattarak Chandrakirti
AuthorShantikumar Jaykumar Killedar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1978
Total Pages814
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other & Dictionary
File Size9 MB
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