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(अथर्ववेद 6/131/6 )
[शेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-अस्स (अश्व)]
आडातीय [आडासेतीक] प्रश्नंव्या. 1/9 Black ibis-बाज, कालाबाज, करनकुल, आडासेतीक । आकार - सफेद आइविस से कुछ बड़ा । लक्षण - काले रंग का पक्षी । इसकी कर्फ्यू जैसी लम्बी दुम नीचे की ओर झुकी रहती है। कंधों के पास सफेद धब्बा और ईंट जैसी लाल टांगें होती हैं विवरण- -भारत, वर्मा, पाकिस्तान आदि में पाए जाने वाला यह पक्षी देखने में सुन्दर एवं मनोहर लगता है। इनकी टोलियां अनेक आकृतियां बनाती हुई उड़ती हैं। [विवरण के लिए द्रष्टव्य - K. N. Dave, पृ. 81, 124, भारतीय पक्षी ]
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आवत्त [आवर्त्त] ठाणं, 2/540, प्रश्नव्या. 1/6, 3/7 A horse with curly hair consided lucky- घुंघराले बालों वाला भाग्यशाली घोड़ा।
देखें- आइण्ण
[विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य - विलियम डिक्शनरी]
आवल्ल [आवल्ल] उ.शा.टी.प. 192 Bull-बैल |
F
आकार - लगभग 4-7 फीट तक ऊंचा । लक्षण - शरीर का रंग सफेद से लेकर हल्का भूरा तक । गर्दन के पास कुछ ऊंचा कूबड़ सा होता है। कुछ के सींग लम्बे एवं मुड़े हुए होते हैं ।
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विवरण - विश्व भर में इनकी सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती हैं। कुछ बैल अधिक काम करते हैं और कुछ जल्दी ही थक जाते हैं। इनमें गर्मी, सर्दी और सीलन को बर्दास्त करने की क्षमता अन्य पशुओं की अपेक्षा अधिक होती है।
जैन आगम प्राणी कोश
भारत में नागौरी एवं कच्छी कठियावाड़ी नस्लें मजबूती तथा श्रम के लिए प्रसिद्ध हैं ।
आस [अश्व] दसा. 6/3 Horse-T
देखें- अस्स (अश्व)
आसालिय [आशालिक, आसालिग] सू. 2/3/79 प्रज्ञा. 1/68 प्रश्नव्या 1/7
Very Large Snake- एक बहुत विशाल सांप। आकार - 12 योजन लम्बा ।
लक्षण - अन्तर्मुहूर्त्त की स्थिति वाला सम्मूर्च्छिम प्राणी ।
विवरण — पंद्रह कर्मभूमि में चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, मांडलिक और महामाण्डलिकों की सेना के नीचे पृथ्वी मैं उत्पन्न होने वाला यह सर्प 12 योजन की मिट्टी खा जाता है, जिससे भूमि में बहुत बड़ा गड्ढा हो जाता है 1 गड्ढे में सेना गिरकर विनाश को प्राप्त हो जाती है। चक्रवर्ती आदि की सेना के विनाश के समय में ही इस सर्प की उत्पत्ति होती है ।
आसीविस [आशीविष] ठाणं 2/336 प्रज्ञा. 1 /70 प्रश्नव्या. 6/6
A snake Having Poison in large Tooth - आशीविष [दाढ़ों में विष वाले]
आकार - 2 - 16 फुट तक लम्बा ।
★ लक्षण - इन सर्पों के ऊपरी जबड़ों में प्रायः दो विषैले दांतों के सिवाय दूसरे दांत नहीं होते। ये लम्बे दांत विष की ग्रंथि ( थैली) के नीचे एक चलनशील हड्डी में जुड़े रहते हैं और हर दांत के भीतर विष-प्रवेश करने के लिए एक नली बनी रहती है।
विवरण- विषदंत धारी सर्प दो प्रकार के होते हैं- (1)
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