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परिशिष्ट २
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वंस (वर्शय)-दिखलाना-'काये अहे वि दंसंति' (सू १।४।३) । अपच (दृश्)-देखना (भ १८०)। बक्ख (दर्शय)- दिखलाना । रक्खव (दर्शय )-दिखलाना (प्रा ४।३२) । बच्छ (दृश्)-देखना। बड-दहाड़ना। वरमल (मर्दय )--१ विदारित करना । २ आहत करना। दल (वा)-देना-'भद्दा देवदिन्नं........पंथगस्स हत्थे दलाइ'
(ज्ञा १।२।३१) । बलय (वा)-देना-'भूमिचवेडयं द लयई' (भ ३।११२) । बलय (दापय)-दिलाना। बलवट्ट (निर्+वल)-दलन करना। बलवट्ट (मर्दय )-चूर्णित करना । बलाव (वापय)-दिलाना। दवाव (वापय )-दिलाना । वाम (वर्शय)-दिखलाना । वाक्खव (दर्शय)-दिखलाना । दाढ (निर्+स)-निकलना । वाव (दश)-देखना । वाव (वर्शय)-दिखलाना (प्रा ४।३२) । विसड (मुच्)–छोड़ना। बोस (दृश्)-देखना। दुउंछ (जुगुप्स्)--घृणा करना ।
उच्छ (जुगुप्स्)-घृणा करना। दुगुंछ (जुगुप्स्)-घृणा करना (प्रा ४।४) । दुगुच्छ (जुगुप्स्)-घृणा करना (प्रा ४।४) । दुम (धवलय)-सफेद करना (प्रा ४।२४) । दुरुढुल्ल (भ्रम्)-भ्रमण करना । दुरुह-आरोहण करना-'दुरुह, आरोहणे देशी' (निरटी पृ २२) ।
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