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परिशिष्ट २
५१५. उल्लुङ (वि+रेचय)-विरेचन करना । उल्लुह (निस्+सु)-निकलना। उल्लुहंड-१ उन्नत होना । २ उन्नत करना । उल्लूढ (आ+रह.)-१ चढ़ना । २ अंकुरित होना । उल्लूर (तुड)-१ तोड़ना । २ नाश करना (प्रा ४।११६) । उल्हव (वि+मापय)-गीला करना, बुझाना (प्रा ४।४१६) । उल्हा (वि+मा)-१ बुझना । २ तमतमाना । उल्हाव (निर्धापय)-बुझाना। उवग्ध-अवगाहन करना, परीक्षा करना (निचू ३ पृ ३७३) । उववुत्थ-उपाय करना (कु पृ १५०) । उवसंखड (उपसं+कृ)-राधना, पकाना (आचूला ११४४) । उवहट्ट (समा+रभ)--आरम्भ करना । उवहत्य (समा+रच)-१ रचना, बनाना । २ उत्तेजित करना
(प्रा ४१६५) । उवेल्ल (प्रस)-पसरना (प्रा ४७७)। उव्वक्क-उबाक आना, वमन करना। उव्वर-उबरना, शेष रहना । उव्वाल (कम्)-कहना। उव्वाल (छादय) आच्छादित करना। उबिल्ल (प्र+स)–फैलना । उन्वेल (प्र+स)–फैलना। .. उन्बेल्ल-उद्घाटित करना, परतें उारवर-'कयलीखंभो व जहा, उव्वेल्लेउं
सुदुक्करं होति' (बृभा ४१२८) । उब्वेल्ल (उद+नमय)-ऊँचा करना। , उस्सर-१ बोना (बृभा ४०३५) । २ चढ़ना-उतरना (बृभा ४२२२) । उस्सिक्क (मुच्)-छोड़ना (प्रा ४१६१) । उस्सिक्क (उत्+क्षिप्)-ऊंचा फेंकना (प्रा ४।१४४) ।
कट-आच्छादित करना । ऊमिण-पोंछना।
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