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देशी शब्दकोश
सरत्ति-सहसा, अभी (दे दा२)। सरभेम-स्मृत, याद किया हुआ (दे ८.१३) । सरल-वृक्ष-विशेष, चीड (प्रज्ञा ११४३)। सरली-चीरिका, झींगुर (दे ८।२)। सरलीमा-१ श्वावित् नाम का प्राणी, साही (दे ८।१५) । २ कीटविशेष
()। सरह- १ वेतसवृक्ष । २ सिंह (दे ८।४७) । सरा-माला (दे ८।२)। सराह-गर्व से उद्धत (दे ८।५)। सराहअ-सर्प (दे ८।१२) । सरिका-भाजन-विशेष-'करोडी कंसपत्ति ति पालिका सरिक त्ति का'
(अंवि पृ ७२)। सरिभरी--समानता-'तओ जाया दोण्ह वि सरिभरी' (उसुटी प १६१) । सरिया-मोतियों की माला-'वरमउड-सरिय-कुंडल' (प्र ४१४)। सरिवाअ-आसार, तेज वर्षा (दे ८.१२) । सरिसाहुल-सदृश (दे ८९) सरेवअ--१ हंस । २ घर का जले बहने का नाला, मोरी (दे ८।४८)। सरोडअ.--वह फल जिसमें अभी गुठली न पड़ी हो (आचू पृ ३४१)। सरोडग-काष्ठपात्र, दर्वी (आचू पृ ३४१) । सलली--सेवा (दे ८।३)। सलहत्य-कड़छी आदि का हत्था (हस्तक) (दे ८।११) । सलेटठग-समूल, मूल-सहित-'ततो गोपालेण असद्दहतेण ओसरिऊण
सलेठ्ठगो उप्पाडिओ एगते पडिओ' (आवहाटी १ पृ १४२) । सल्ल-सर्प की एक जाति (सू २।३।८०)। सल्लग--सर्प की जाति-विशेष (प्र ११८)। सल्लिका-साली-'रमा त सुण्ह सावत्ती सल्लिका मेधुण त्ति वा'
(अंवि पृ६८)। सल्ली-१ भुजपरिसर्पिणी (जीव २६) । २ साली (अवि पृ २१६)। सवडंमह--अभिमुख, सम्मुख-'सवइंमुहं वलंतो कालो व्व अकारणे कुद्धो'
(उसुटी प ८५; दे ८२१)। सवडहुत्त-सम्मुख-सी तस्स निवट्टमाणो दंडियस्सेव सवडहुत्तो गओ'
(उसुटी प ५५) ।
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