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देशी शब्दकोश
३६१ विहाडण--अनर्थ (दे ७७१)। विहाण-१ विधि, विधाता। २ प्रभात, प्रातःकाल (दे ७६०)। ३ पूजा,
अर्चा । विहुंडअ-राहु, ग्रह-विशेष (दे ७१६५) । विहोढ-अनादर करना, लज्जित करना (निभा ४७८२) । वोअ--१ विधुर-चंचल, अत्यंत व्याकुल । २ तत्काल (दे ७१६३)। वीअजमण-खलिहान (दे ६६३ वृ)। वीचि- संकरी गली, संकीर्ण मार्ग (दे ७७३)। वोडक-चावल आदि खाने का साधन (निचू ३ पृ ५२१) । वीणण-१ बीनना (आवदी प ११४) । २ प्रकट करना । ३ ज्ञापन । वीणिया-नाला, जल-प्रवाह-'जे भिक्खू दगवीणियं करेति' (नि १०१२)। वोय-राशि-वीयं रासी' (अंवि पृ २४१)। वीयरग-कूपिका, छोटा कूप (निभा ५०७४) । वीलण-पिच्छिल, फिसलन युक्त (दे ७७३)। वीलणी-पिच्छिल, फिसलन युक्त (अंवि पृ २४३) । वीलय-कर्णाभूषण, ताडंक (दे ६।६३ वृ)। वीली–१ तरंग, कल्लोल (दे ७७३) । २ वीथी, पंक्ति, श्रेणी। वीवाह-वधूपक्ष-संबंधी भोज (व्यभा ६ टी प८)। पीसंदण-अधजले घी में डाले हुए संदुल से बना खाद्य-विशेष-वीसंदणं
अनिद्दड्ढघयमज्झछूढतंदुलनिप्फन्न' (बभा १७१०) । वीसु-युतक, पृथग् (दे ७७३) । वीसुंभण-विष्वग्भाव, पृथग्भाव (स्थाटी प २६५) । वंफ-बातचीत-'फं करेंतो जाति' (आचू पृ ३५८) । वक्कड-विकट, भयंकर-'विसयमच्छकच्छवुक्कडं इंदियमहामयरसमाउलं....
. जोव्वणमहासागर' (कु पृ ७४) । वक्कस-१ मूंग, उड़द आदि की नखिका से निष्पन्न भोजन । २ अत्यन्त
नीरस भोजन (उशाटी प २६५) । वुक्कार-गर्जन (राज २८१ पा)। वुक्ख--वृक्ष (अंवि पृ २२२) । वखण-विशेष प्रकार का बाज पक्षी-'वुखणसेणे व्व हरणे व सण्णिरुद्ध वा'
(अंबि पृ २५५)।
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