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देशो शब्दकोश
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ववण-कपास, रूई-‘ववणसरिसाओ महिलियाओ त्ति' (कु पृ २४१) । ववणी-कपास (दे ७.३२) । ववत्थंभ-बल, पराक्रम (दे ७१४६)। ववसिअ-बलात्कार (दे ७४२) । ववहिअ-मत्त, उन्मत्त (दे ७।४१) । वव्वय-आतोद्य-विशेष (आवचू १ पृ १८७) । वव्वाड-अर्थ, प्रयोजन (दे ७।३६) । वव्वीसक-लोकवाद्य-विशेष (कु पृ २६) । वसभद्ध-काक, कौआ (दे ७४६) । वसल--दीर्घ (दे ७।३३)। वसिम-वसतिवाला स्थान-'अंतराले य दिळं वसिम' (उसुटी प ६३) । वसुआअ-शुष्क-'वसुआअशब्दः शुष्कवाची' (से ११२० टी)। वसुआइय-शुष्क किया गया (से ६२५)। वसुग-मधुर और स्ने हिल आमंत्रण-'गोलवसुगावि महुरं सप्पिवासं आमंतणं'
(दजिचू पृ २५०)। वसूल-१ युवा का प्रिय संबोधन-शब्द-वसुल जुकाण प्रियवयणं'
(दअचू पृ १६६)। २ अवज्ञा सूचक तुच्छ संबोधन-वसुलो सुद्दपरिभववयणं' (दअचू पृ १६८)। ३ निष्ठुर आमंत्रण-शब्द .
(दहाटी प २१५). वसुला-स्त्री के लिए प्रिय संबोधन (द ७.१६)। वस्सासण--एक प्रकार का आसन (दर्भासन ?) (ति १०५१)। वह–१ वृष-स्कन्ध (विपा १।२।२४)। २ स्कन्ध-व्रण, कन्धे पर होने वाला
व्रण (दे ७.३१) । ३ व्रण, घाव-'सामान्येन व्रण इत्यन्ये' (व)। . वहड-दम्य वत्स, दमनीय बछड़ा (दे ७.३७) । वहढोल-चक्राकार वायु, आंधी (दे ७।४२)।। वहिल्ल-शीघ्र (प्रा ४१४२२)। वह-चिविड़ा, गन्ध द्रव्य-विशेष (दे ७।३१) । वहधारिणी-नववधू (दे ७।५०)। वहण्णी-जेठानी, पति के बडे भाई की पत्नी (दे ७४१) । वहमास-वह मास जिसमें पति नवोढा के साथ रमण करता हुआ उसके घर
से बाहर नहीं निकलता-प्रथमोढायाः सदनाद्यत्र पति पयाति बहिः । स स्याद् रमणविशेषो वहुमासो ॥ (दे ७१४६ वृ)।
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