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देशी शब्दकोश
लवइत-अंकुरित (आवचू १ पृ ४७७)। लवइय-पल्लवित (भ १३५०) । लवली-लता-विशेष (कु पृ १६७) । लसइ-कंदर्प, काम (दे ७।१८) । लसक-तरु-क्षीर, पेड़ का दूध (दे ७११८)। लसिया-पीब, रसी (अंवि पृ १७७)। लसुअ-तेल (दे ७११८) । लहअवड-न्यग्रोध, बरगद का वृक्ष (दे ७।२०) । लहुइय-तोला हुआ (पा ५३६) । लाइम-१ लाजा के योग्य, खोई के योग्य । २ रोपणयोग्य, बोने लायक
(आचूला ४।३३)। लाइय-१ भूमी को गोबर आदि से लीपना (प्रज्ञा २१४१) । २ गृहीत
(बृटी पृ १०७; दे ७।२७) । ३ आभूषण। ४ चौधं, आधी चमड़ी
(दे ७।२७) । घृष्ट (से २।२६) । लाइल्ल-वृषभ (दे ८।१६)। लाउल्लोइय-गोमय आदि से भूमि का लेपन और खड़ी आदि से भींत
आदि का पोतना (दश्रु ८।६२) । लाउल्लोपिक-लिपाई-पुताई (अंवि पृ १८३)। लाउल्लोयिक-लिपाई-पुताई (अंवि पृ २१०) । लागतरण-भूने हुए चावलों से बनाया गया पेय-विशेष (जीभा ६०५) । लाजिका–वेश्या (अंवि १६८) । लाढ-१ आत्मनिग्रही मुनि-'लाढे त्ति साधुणो अक्खा' (निचू ४ पृ १२५) ।
२ निर्दोष आहार से संयम-यात्रा का निर्वाह करने वाला मुनि । ३ प्रशस्य-'लाढयति प्रासुकैषणीयाहारेण साधुगुणैर्वा आत्मानं यापया तीति लाढः, प्रंशसाभिधायि वा देशीपदमेतत्' (उशाटी प १०७)।
४ प्रधान (उशाटी प ४१४) । ५ एक जैन आचार्य । लाढय-साधु-गुणों से जीवन-यापन करने वाला (उचू पृ ६६) । लाणी-पुष्प-विशेष (संवि पृ १०४) । लातुल्लोइय-गोबर से भूमी का लेपन करना तथा खड़ी आदि से भींत कों
पोतना (आवचू १ पृ २२६) । लाम-सुन्दर (जंबू ३३१७८)।
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