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देशी शब्दकोश भंडी-१ शिरीष वृक्ष (ज्ञा २१८।५; दे ६।१०६) । २ गुच्छवनस्पति-विशेष
(प्रज्ञा ११३७) । ३ कुलटा (आचू पृ ३३५; दे ६।१०६)। ४ गाड़ी-'आभीरो भंडीए उवरिं ठितो घयगकुंडं पणामेति' (आवचू १ पृ १२४; दे ६।१०६) । ५ अटवी (आवचू २ पृ २७६;
दे ६।१०६)। भंडु-१ मुंडन-'भंडुत्ति मुण्डनम्' (आवहाटी २ पृ ६१; दे ६।१००) ।
२ क्षुर, उस्तरा- भंडुत्ति खुरो, तेण सो मुंडिज्जति' (निचू ३ पृ २५१)। भंतिय- तृण-विशेष (भ २१।१६) । भंभन्भय- दुःख में निकलने वाली भाँ भाँ की आवाज (भ ७११७) । भंभल-१ अप्रिय । २ मूर्ख (दे ६।११०)। भंभा-वाद्य-विशेष (भ ५।६४; दे ६।१००)। भंभाभूय-दुःख में निकलने काली मां-भां की ध्वनि (भ ७।११७ पा)। भंभी-१ रसायन शास्त्र (व्यभा ३ टी प १३२) । २ असती, कुलटा
(दे ६।६६) । ३ नीति-विशेष । भंसला-कलह-'विसयप्पसिद्धासु भंसलासु' (आवहाटी २ पृ १६६) । भंसरुला--म्लेच्छ जाति का उत्सव-विशेष जहां अनेक संन्यासी एकत्रित होते
हों (निचू ३ पृ ३५०) । भंसुल-क्रीडा के समय उछलने वाले रजकण-'भंसुला क्रीडोक्षिप्तरेण्वादि
निकरा इति' (आवटि प १०६) । भगव-गोत्र-विशेष (अंवि पृ १५०)। भग्ग-लिप्त (दे ६।६६)। मच्चय-भानजा (बृभा ५११५) । मज्जि-विशेष भोजन-सामग्री (बृभा ३६१८) । भट्ट-१ आदरसूचक संबोधन (द ७१६) । २ गारुडिक, मंत्र-तंत्र से विष
उतारने वाला (उसुटी प १७४) । भट्टि-आदरसूचक संबोधन (दअचू पृ १६६) । भट्टिम-विष्णु (दे ६।१००) । भट्टे-१ पुत्र-रहित स्त्री के लिए प्रयुक्त संबोधन-'भट्टेति अब्भरहितवयणं . पायो लाडेसु' (दअचू पृ १६८)। २ ननद-भट्टेति लाडाणं पति
भगिणी भण्णइ' (दजिचू पृ २५०)। भट्ठि-धूलरहित मार्ग (भ ७।११७) । भत्तिजग-भतीजा (निचू ४ पृ ६७) ।
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