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देशी शब्दकोश
२७१ पब्भारगय-अवनत, झुका हुआ-'ईसिं पब्भारगएणं कारणं'
(अंत ३८५)। पभोग-भोग, विलास (दे ६।१०)। पभवाल-तरु-विशेष (जंबूटी प ६८) । पम्हट्ठ-१ प्रस्मृत, विस्मृत-'अडवीए तण्हाए अभिभूए समाणे पम्हट्ठ
दिसाभाए' (ज्ञा १।१८।४७) । २ प्रभ्रष्ट, विलुप्त (से ४१४२) । ३ परिष्ठापित, प्रक्षिप्त-'पम्हट्ट ति परिठवियं ति एगलैं'
(व्यभा ८ टी प २६)। पम्हर-अपमत्यु, अकाल-मरण (दे ६।३) । पम्हल-कमल-केसर, किजल्क (दे ६।१३) । पम्हार-अपमृत्यु (दे ६॥३) । पम्हट्ट-१ विस्मृत-किंय तयं पम्हुळं, जंथ तया भो ! जयंतपवरम्मि ।
वुत्या समयणिबद्धा देवा तं संभ रह जाई ।' (ज्ञा १।८।१८०)। २ गिरा हुआ-पम्हुढें णाम पडियं वीसरियं वा'
(निचू २ पृ ४६१)। पम्हुसाविय-विस्मारित (उसुटी प १६)। पयंचुल-मछली पकड़ने का जाल-विशेष (विपा १।८।१६) । पयट्रिअ-प्रवर्तित (दे ६।२६) । पयडी-नारियल की छाल-पयडी-णालिएरिचोदय' (निचू २ पृ ३८) । पयडणी-१ प्रतिहारी, द्वाररक्षिका । २ आकृष्टि, आकर्षण । ३ चिरप्रसूता
महिषी (दे ६१७२)। पयय-प्रतिदिन, निरंतर (दे ६।६) । पयरग-पैरों का आभूषण-विशेष (जीवटी प १४७) । पयरण-प्रथम दी जाने वाली भिक्षा (बृभा ३५४८) । पयरीक्क–१ सुन्दर । २ अव्याबाध, एकान्त (उचू पृ ६६) । पयरेक्क-१ सुन्दर । २ अव्याबाध, एकान्त (उचू पृ ६९)। पयल-नीड, घोसला (दे ६७)। पयला–१ खड़े या बैठे हुए जो निद्रा आए वह (स्था १३१४) । २ निद्रा
(दे ६६) । ३ भुजपरिसर्प का एक प्रकार (अंवि पृ २२६) । पयलाअ-१ हर, महादेव । २ सांप (दे ६७२)। ३ भुजपरिसर्प की एक
जाति (जीवटी प ४०)। पयलाइय-हाथ से चलने वाले जन्तु की एक जाति (सू २।३।८०) ।
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