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देशी शब्दकोश
दाणामा-प्रव्रज्या का एक प्रकार। इसमें भिक्षु चार पुट वाला लकड़ी का
पात्र लेकर भिक्षा के लिए जाता है। पहले पुट की भिक्षा पथिकों के लिए, दूसरे की कोए-कुत्तों के लिए, तीसरे की मच्छ-कच्छों के लिए और चौथे पुट की भिक्षा स्वयं के लिए होती है
(भ ३३१०२)। दादलि-अंगुली (दे ५।३८) । दामक-रुपया, मूल्य (व्यभा ४१३ टी प १०)। दामणि-स्त्री-पुरुष के शरीरगत बत्तीस शुभ लक्षणों में से एक-'दामणि त्ति
___ रूढिगम्यम्' (प्रटी प ८४) । दामणी-१ प्रसव । २ आंख, नयन (दे ५।५२) । दायणा-दिखाना (बृभा ६२६४) । दार--कटिसूत्र, कांची (दे ॥३८)। दारद्धंता-पेटी (दे ॥३८)। दारिआ–वेश्या (दे ५।३८)। दाल-दाल (प्रटी प १४१) । वालि-१ रेखा (ओनि ३२४) । २ दाल, दला हुआ चना आदि अन्न । दालिअ-नेत्र, नयन (दे ५।३८) । दालिमपूसिक-पात्र-विशेष (अंवि पृ ६५) । दावर-द्वितीय, दूसरा-'द्वापरः इति समयपरिभाषया द्वितीयः'
(बृटी पृ ३३६)। दासय-फल-विशेष (अंवि पृ २३८) । दासिनीले फूल वाली गुच्छ वनस्पति (प्रज्ञा ११३६।५) । दाहा-प्रहरण-विशेष (ज्ञा १११८।३५) । दाव (बंगला)। दिअ---दिवस (दे ५।३६)। दिअंड-प्रावरण-विशेष (अंवि पृ १६१) । दिअज्झ-स्वर्णकार, सुनार (दे ५।३९) । दिअधुत्त-कौआ (दे ५।४१ वृ)। दिअधुत्तअ- काक, कौआ (दे ५।४१)। दिअलिअ-मूर्ख (दे ५।३६)। दिअली--स्थूणा, खंभा (पा ३६०)। दिअसिअ-१ नित्य-भोजन (दे ५॥४०) । २ प्रतिदिन (वृ)।
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