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देशी शब्दकोश
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झंकक-हाथ का आभूषण-विशेष-तधेव झंकको व ति कडगं खडुगं ति वा'
(अंवि पृ ६४)। झंकारिअ-अबवयन, फूल आदि चुनना (दे ३।५६) । झंख – १ तुष्ट, तृप्त (दे ३।५३) । झंखणय-~-क्रोधी (अनुद्वाहाटी पृ २६) । झंखर-सूखा पेड़ (दे ३।५४) । झंखरिअ-फूलों को चुनना (दे ३।५६) । झंझ-कलह-'अज्झीणझंझे पुरिसे, महामोहं पकुब्वाइ' (सम ३०।१।६)। झंझडिय --डांट-फटकार-'रिणे अदिज्जते वणिएहि अणेगप्पगारेहिं दुव्वयणेहि
__ झडिया-झंझडिया' (निचू ३ पृ २७०) । झंझा-१ व्याकुलता (आ ३।६६) । २ कलह (स्था ८।१११) । ३ क्रोध ।
__४ माया (सूटी १ पृ २४०)। झंझिय-बुभुक्षित (ज्ञा ११२१६०) । झंटलिआ-चंक्रमण, भ्रमण (दे ३१५५) । झंटिय-प्रहत, जिस पर प्रहार किया गया हो वह (निच ३ पृ २६४;.
दे ३१५५)। झंटी-छोटे किन्तु खड़े केश (दे ३३५३) । झंडली-कुलटा, असती (दे ३३५४) । झंडुअ-पीलु का वृक्ष (दे ३।५३)। झंडली-१ असती, कुलटा । २ क्रीडा (दे ३।६१)। झंपक--बुझाने वाला-'झंपको णिवावको' (निचू १ पृ.७९) । झंपणा-स्थगन, आच्छादन (निमा २७०३) । झंपणी-~-पक्ष्म, आंख की बरौनी, आंख के बाल (दे ३।५४) । झंपि.---१ त्रुटित, टूटा हुआ । २ घट्टित, आहत (दे ३।६१) । झंपित-आहत (व्यभा ७ टी प ३०)। झंपुल्लिया-- ऊंची छलांग-'झंपुल्लिया खेल्लणई' (कु पृ ११२) । झक्किअ-लोकापवाद, लोक-निन्दा (दे ३.५५) ।
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