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देशी शब्दकोश
चवला-अन्न-विशेष (बृटी पृ १०)। चवला (राज) ।। चवलिका-धान्य-विशेष, चवला (भटी प २७४) । चवलिय--भाजन-विशेष-'थाल-मल्लग-चवलिय-दगवारक' (जीव ३१५८७)। चवेडी-१ श्लिष्ट करसंपुट, बद्धांजलि (दे ३॥३) । २ संपुट (वृ) । चवेण-निन्दा (दे ॥३)। चसणिका -बहुपाद-प्राणी-विशेष (अंवि पृ २२७) । चहित-१ दृष्ट, वांछित । २ चन्दन आदि से चचित-'चहिता मनोरथ
दृष्टिदृष्टा अथवा गोशीर्षचन्दनादिचिता' (नंदीचू पृ ४६)। चहिय-अभिलषित, वांछित, चाहा हुआ-सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्क
चहिय-महिय-पूइए' (उपा ७.१०)। चहुट्ट-१ निमग्न, लीन-'चहुट्टणक्खो वि कुणइ चंडिक्क' (दे ३।२) ।
२ चिपका हुआ। चाउरंतय-लग्न-मंडप, चंवरी-'तत्य कयं धवलहरस्स बहुमज्झदेसभाए
सव्वधण्णविरूढंकुरा चाउरंतयं' (कु पृ १८१) । चाउल-१ चावल (स्था ३१३७६; दे ३।८) । २ चावल का, चावल से
संबंधित-'तहेव चाउलं पिट्ठ" (द ५।२।२२)। चाउलय-चावल (दे ३८ वृ)। चाउल्ल-चपल (अंवि पृ ३)। चाड-१ चुगलखोर, धूर्त (दअचू पृ २५५; दे ३।८) । २ पलायन
___ पलायनं चाडो णासणं इति चूणी' (बृटी पृ ४०८) । चाडय-चुगलखोर (निचू ३ पृ ४२) । चाय-कंद-विशेष (अंवि पृ १८१) । चार--१ चिरौंजी का पेड़ (अनुद्वामटी प ४२; दे ३।२१) । २ बंधन
स्थान, कारावास । ३ इच्छा (दे ३२१)। ४ फल-विशेष
(प्रज्ञा १६।५५)। चारक्खापाल-कैदखाने का अध्यक्ष, जेलर (आव २ पृ १८२) । चारण-ग्रन्थिच्छेदक (दे ३।६ )। चारणअ----ग्रन्थिच्छेदक, पॉकेटमार (दे ३।६)। चारवाय---ग्रीष्म ऋतु का पवन (दे ३६) । चारायण --गोत्र-विशेष (अंवि पृ १५०) । चारि-चारा (ओनि २३८) ।
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