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देशी शब्दकोश
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घरोली--छिपकली-'भमइ जं उमत्ता घरोलिव्य' (दे २।१०५)। घल्ल-अनुरक्त (दे २।१०५) । घल्लिअ-१ क्षिप्त, डाला हुआ (दे ६।११६ वृ)। २ निर्मित किया हुआ। घल्लित-आक्रांत होना, दबना-'सो रायगिहच्छणपिंडोलगो वेभारगिरिसिलाए
घल्लितो' (सूचू १ पृ २३२)। घसा-१ पोली भूमि (द ६।६१)-'घसा नाम जत्थ एगदेसे अक्कममाणे सो
पदेसो सव्वो चलइ सा घसा भण्णइ' (जिचू पृ २३१)।
२ भूमिरेखा। घसी-१ पोली भूमि । २ पुराने भूसे का ढेर-'गसति सुहुमसरीरजीव
विसेसा इति घसी अंतोसाणो भूमिपदेसो पुराणभूसातिरासी वा' (दअचू पृ १५६) ३ ढालू भूमि-'घसी नाम स्थलादधस्तादवतरणं" (आटी प ३३७) । ४ भूमि-रेखा (जीव ३१६२३) । ५ अवतरण,
नीचे उतरना। घाड-मस्तक के नीचे का भाग (ति ६५३) । घाडा-मस्तक के नीचे का भाग (जंबूटी प १७०) । धाडिय-मित्र-'घाडिउ त्ति वयंसो' (निचू २ पृ ५२)। घाडियय-मित्र (ज्ञा ११२१६५)। घाण-१ पावा, कडाही आदि में एक बार डालने का परिमाण
(प्रसाटी प ५३) । २ कोल्हू-'तिलपीडनयन्त्रे' (पिटी प ६)। घाणक-कोल्हु, घानी (प्रसाटी प १४३) । घाणी-दुर्गन्ध (निचू २ पृ ४१)। घायण-गायक (दे २।१०८) । घार–प्राकार, परकोटा (दे २।१०८)। घारंत-घृतपूर, घेवर (दे २।१०८) । घारिया-मिष्टान्न-विशेष (दअचू पृ २१७) । घारी (गुजराती)। घारी-१ चील पक्षी (दे २।१०७)। २ छन्द-विशेष । घालइ-एक प्रकार के तापस (निरटी पृ २५) । घासिआ-घास लाने वाली (ओटी प ६७) । घि-१ ग्रीष्म ऋतु-घि-सिसिरवासे' (ओभा ३१०) । २ गरमी। । घिघिणोपित-घूणित (?) (अंवि पृ १४८)। घिसु-१ गरमी-पिंसु मे विहुयणं विजाणाहि' (सू ११४४१)। २ ग्रीष्म
ऋतु।
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