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देशी शब्दकोश
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गल-कांटा-'मच्छोव्व गलं गिलिता' (दचू ११६) । गलगाल-कांटा, मछली
फंसाने की बंसी (कन्नड़)। गलतिया-गर्गरी-'पाणिगलंतिया य दिज्जइ' (आवहाटी २ पृ १३५) । गलच्छल्ल-गला पकड़ना (प्रटी प ५६)। गलत्थण--१ क्षेपण । २ प्रेरण (से ५।५३)। गलत्थलिअ-बाहर निकाला हुआ (दे २१८७) । गलत्थल्ल-गलहत्थ, हाथ से गला पकड़ना (ज्ञा १९४२) । गलत्थल्लिअ-प्रेरित-'सरवेअगलत्थल्लिअ' (से ५।४३) । गलत्थिअ-१ प्रेरित (से १२।११) । २ बाहर निकाला हुआ, क्षिप्त
(दे २१८७) । गलि-अविनीत-गिलत्येव केवलं न तु वहति गच्छति वेति गलिः'
(उशाटी प ४६)। गलिअ-स्मृत, याद किया हुआ (दे २१८१)। गलोलइय-गले का आभूषण (निचू २ पृ ३६८) । गल्ल-१ गाल, कपोल (उपा २।२१) । २ हाथी का कुम्भस्थल । ३ गढा ।'
४ मलिन (दअचू पृ ५२)-'गल्लोदगेण गोंदकेन यद्वा मलिनोदकेन'
(टी)। गल्लत्थलिय -क्षिप्त, फेंका हुआ (से ८।६१)। गल्लप्फोड- डमरुक (दे २१८६)। गल्लर---चपटा-'मुहं च से पेल्लियं गल्लरं भविस्सति' (निचू ३ पृ ४०६)। गल्लिका-यान-विशेष (अंवि पृ २६.)। गल्लिवग-गले में पहनने योग्य-गल्लिवगा व से णक्खत्तमालादी पाए कया'
(निचू ३ पृ ४०७)। गल्लोल-गडुक, पात्र-विशेष-'गल्लोलपाणिएणं ण्हवेति' (निचू १ पृ१०) ।। गवच्छ-आच्छादन (जंबूटी प ५८)। गवच्छिय-आच्छादन-'ते णं वायकरगा किण्हसुत्तसिक्कग-गवच्छिया
णीलसुत्तसिक्कग-गवच्छिया' (जीव ३।३२६) । गवत्त-घास, तृण (पिनि २२४; दे २।८५) । गवर-वनस्पति-विशेष (प्रज्ञा १ टी)। गहकंडुक-क्षुद्र जंतु-विशेष (अंवि पृ २३८)। गहकल्लोल-राहु (दे २१८६) ।
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