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देशी शब्दकोश
कण्हाकडभु-वनस्पति-विशेष (भ २३३१) । कण्हाल-काली मिट्टी की भूमी-जहा कण्हाले जं पाणियं पडति तं
कतोवि ओलुटति' (आवचू १ पृ १२१)। कण्हुइ-१ कुतश्चित्, कहीं भी (उ ११७) । २ किंचित् (दश्रुचू प ६१) । कण्हेरी-मादा पशु-विशेष (अंवि पृ ६६) । कतवार-तृण आदि का समूह (दे २।११) । कत्ता-अन्धिका द्यूत की कपर्दिका, कौड़ी (दे २॥१)। कत्तोइ--कहीं (विपाटी प ८३)। कत्थइ-क्वचित् (प्रा २।१७४) । कत्थभाणी-जलीय वनस्पति-विशेष (प्रज्ञाटी प ३४) । कत्थलायण--गोत्र-विशेष (अंवि पृ १५०)। कत्थल-गुल्म-विशेष (जीव ३१५८०)। कदुक्का-नालिकाक्रीड़ा (सूचू १ पृ १७९) । कमिअ-महिष, भैंसा (दे २।१५) । कदुइय--वल्ली-विशेष (प्रज्ञा ११४०।२)। कनंगर-पाषाणमय लंगर (विपाटी प ७१) । कन्न 'लइअ'-कानों में पहिना हुआ, कानों में पिनद्ध (पिनि ५६१)। कन्नामोडि--कान मरोड़ना, कान खींचना (बुचू प २०६)। कन्नारोडग-कानों को बहरा करने वाला (शब्द) (आव १ पृ ११०) । कन्नारोडय-कानों के लिए अवरोधक, रोड़ा (बृटी पृ ५३) । कन्नोली-कान का आभूषण (पा ८४) । कपिह-दुष्ट घोड़ा (उचू पृ३०)। कप्पट---१ बच्चा (व्यभा ७ टी प ४०) । २ ईश्वर-पुत्र, धनिक-पुत्र
(व्यभा ४।२ टी प ३७)। कप्पटुंग-बच्चा (निभा ३८०)। कप्पट्ठिया-श्रेष्ठिवधू । २ कुलपुत्री (स्थाटी २५३) । कप्पट्री-१ तरुण स्त्री (वृभा १८४२) । २ बालिका
(व्यभा ४।४ टी प १२)। ३ कुलवधू (व्यभा ४।३ टी प ५२) । कप्पड-कपड़ा, वस्त्र (प्रसा ४३४) । कप्पणिय-जाति-विशेष-'मुरुंडोडगोडकप्पणिया' (कु पृ ४०)। कप्पयारी-दासी-'दासीओ कप्पयारीउ त्ति' (सूचू १ पृ २०१) ।
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