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प्रांतीय बोलियों से भी बताते हैं । वे देशी शब्दों को आर्यों और आर्येतर जातियों के आपसी आदान-प्रदान से विकसित शब्द मानते हैं । उनका यह सुदृढ़ मत है कि देशी शब्दों में अधिकतर शब्द आर्यों की ही प्रारंभिक बोलियों से लिए गए हैं । इनमें कुछ शब्द निश्चित रूप से द्रविड़ भाषाओं के हैं । द्रविड़ भाषाओं के शब्द किस रूप में देश की विभिन्न आधुनिक भाषाओं में उपलब्ध होते हैं एवं आर्य भाषा के शब्दों में कैसे परिवर्तन होते हैं इसके दो दृष्टांत हम यहां प्रस्तुत करते हैं
अड् धातु (बाधा देना) से उत्पन्न शब्द
तमिल -- अटइ
कन्नड -- अड, अड्ड
अडक
तुलु — अटक,
कुइ --
-- अड
ब्राहुई—अड् लहू न्दा-
-अड़ण्; अड़कू
पंजाबी --- अड्ना; अङ्कणा कुमौनी अड्णो
हिन्दी - अड्ना गुजराती - अड्उं; अड्वं मराठी - अणें ; अडकणे
सा धातु (खाना, भूखा रहना) से उत्पन्न शब्द
शतपथ ब्राह्मण— प्सात (मुक्त)
पालि - छात, छातक ( भूखा ), छातता ( भूख )
प्राकृत -- छाय ( भूखा )
सिंहली - सय, सा, साय ( भूख, सुखा ) ।'
इस प्रकार के अनेक शब्द उद्धृत किए जा सकते हैं जिनके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक आर्य भाषाओं में देशी शब्द विभिन्न रूपों में प्रवेश पा गए, जिनका निर्धारण श्रम एवं गवेषणा साध्य है ।
प्रस्तुत कोश की संपादन मंडली को हम हार्दिक धन्यवाद देते हैं जिन्होंने अथाह परिश्रम पूर्वक इस विषय पर उपलब्ध सारी सामग्री का विद्वत्तापूर्ण उपयोग किया है तथा आचार्य हेमचन्द्र विरचित प्राकृत व्याकरण १. देखें- आर. एन. टर्नर : ए कोम्पेरेटिव डिक्शनरी ऑफ द इण्डो-आर्यन लेंग्वेजज ।
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