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देशी शब्दकोश
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उक्खिन्न- व्याप्त (बृचू प १४१)। उक्खिरण-दान, उपहार-रहग्गतो य विविधफले खज्जगे य कवड्डगवत्थ
मादी य उक्खिरणे करेति' (निचू ४ पृ १३१)। उक्खिरणग-दान, उपहार (निभा ५७५४) । उक्खंड-१ उल्मुक, अलात । २ समूह । ३ वस्त्र का एक भाग, अंचल
(दे २१२५)। उक्खुडहुंचिय-उत्क्षिप्त, उछाला हुआ (दे ११४ वृ)। उक्खुरहुंचिय-उत्क्षिप्त, उछाला हुआ (दे ११४ वृ)। उक्खुलंपिय-खुजला कर (आटी प ३४०)। उक्खलंबिय-खुजला कर (आचूला ११६२ पा) । उक्खुलणियत्थ-जिसके वस्त्र अस्त-व्यस्त हों, वह (बृभा ४११२)। उक्खुलि-ऊखली (अंवि पृ १६३)। उखड्डमड्डा-बार बार-'उखड्डमड्ड त्ति वा बहुसो त्ति भूयो भूयो त्ति वा पुणो
पुणो त्ति वा एगट्ठ' (निचू ४ पृ ३०८)। उखलिका-ऊखली (अंवि पृ २२१) । उखली-उलूखल, ऊखली (आवहाटी २ पृ २४३)। उखा--थाली (भटी प ३२६)। उखुल-अस्तव्यस्त (बृटी पृ ११२१)। उगारिया-क्षुद्र जन्तु, दीमक (सूचू १ पृ १४५) । उगाल-फलक (व्यभा ४।४ टी प १०२) । उगाली-फलक (व्यभा ४।४ टी प १०२) । उग्गह-योनिद्वार-'उग्गह इति जोणिदुवारस्स सामइकी संज्ञा'
(निचू २ पृ १८६)। उग्गहिय--अच्छे प्रकार से ग्रहण किया हुआ (दे १।१०४)। उग्गाल-पान की पिचकारी (पंव ३८) । उग्गाहिय-१ गृहीत । २ उत्क्षिप्त । ३ प्रवर्तित (दे ॥१३७)। ४ उच्चालित
(पा ५४६)। उग्गुंडिय-धूल से सना हुआ-पंसुउग्गुंडियंगमंगा' (भ ७।११६) । उग्गुतिय-- उत्तेजित-'सिंगाररसुग्गुतिया मोहकुवितफुफगा' (दअचू पृ ५६)। उग्गुलंछिआ-हृदय-रस का उछलना-१ भावोद्रेक । २ वमन के संवेदन
के कारण होने वाली उथल-पुथल (दे ११११८)।
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