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परिशिष्ट २ : ३६६
संभवतः इसी अर्थ में देशी होना चाहिए। वितर्क (वितर्क)
देखें-'तक्क' । पडू (वृद्ध)
वृद्ध, श्रावक और ब्राह्मण ये तीनों शब्द आज भिन्न-२ अर्थ के वाचक हैं। प्राचीन साहित्य में ये तीनों शब्द प्रौढ़ आचार वाले श्रावक के लिए प्रयुक्त थे। अनुयोग द्वारा चूणि में ब्राह्मण के लिए वृद्धश्रावक
शब्द का उल्लेख हुआ है।' शोषि (शोधि)
धर्म आत्मशोधि का कारण है, अत: कारण में कार्य का उपचार करके यहां धर्म ओर शोधि को भाष्यकार ने एकार्थक माना है। . संकित (शंकित)
'संकित' आदि तीनों शब्द संदिग्ध चेतना के द्योतक हैं। इनका अर्थबोध इस प्रकार हैं१. शंकित-लक्ष्य के प्रति संशयशीलता । २. कांक्षित-कर्तव्य के प्रतिकूल सिद्धान्तों की आकांक्षा । ३. विचिकित्सित-फल के प्रति संदेह । ___भगवती सूत्र में इन तीनों शब्दों के साथ इन दो शब्दों का प्रयोग इसी अर्थ में हुआ है। भेदसमापन्न-लक्ष्य के प्रति मन में द्वधभाव उत्पन्न होना । कलुषसमापन्न-मतिविपर्यास ।
' धम्मसंगणि में, कंखा, कंखायना, कंखायितत्त, विमति, विचिकिच्छा द्वेलहक, धापथ, संसय, अनेकसंग्गाह, आसप्पना, परिसप्पना, अपरियोगाहना, थम्भितत्त, आदि का एक ही अर्थ में प्रयोग हुआ है।'
१. अनुवाचू पृ १२ ॥ २. व्यमा १० टी प६७। ३. ध प २५६.६०।
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