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३३८ : परिशिष्ट २
धम्ममण ( धर्ममनस् )
'धम्ममण' के पर्याय के रूप में ५ शब्दों का उल्लेख है । पांचों शब्द धार्मिक चेतना से युक्त व्यक्ति के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हैं । इनका अर्थबोध इस प्रकार है
१. धर्ममन- धर्म में अनुरक्त ।
२. अविमन - अशून्य चित्त, भावक्रिया से युक्त ।
३. शुभमन - असंक्लिष्ट चित्त वाला ।
४. अविग्रहमन - विकल्प शून्य चेतना वाला ।
५. समाधिमन - रागद्वेष वाला ।
रहित अथवा उपशम प्रधान स्वस्थ मन
धम्मिय (धार्मिक)
धम्मिय शब्द के पर्याय में छह शब्दों का उल्लेख है । धर्म का अनुसरण करने वाला, उससे प्रेम करने वाला, धर्म कहने वाला, प्रतिक्षण धर्म को ही देखने वाला, धार्मिक आचरण करने वाला व्यक्ति धार्मिक ही होता है अतः ये सभी एकार्थक हैं ।
-धर्म (धर्म)
धार्मिक की प्रथम पहचान है— दृष्टि की समीचीनता । आत्मधर्म और आत्मस्वभाव ये दोनों सम्यग्दर्शन के ही वाचक हैं। यहां 'धर्म' शब्द सम्यक दर्शन के लिए प्रयुक्त है ।
धरणा ( धरणा)
ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया के चार घटक हैं-- अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । किसी भी ज्ञान की चिरकाल तक स्मृति बनाये रखना धारणा है । सामान्यतः सभी शब्द एकार्थक होते हुए भी धारण करने की अनेक अवस्थाओं के वाचक हैं'
धरणा - ज्ञात अर्थ को कुछ समय तक स्मृति में रखना ।
धारणा - विस्मृत अर्थ को पुनः स्मृत करना ।
१. टीप १११ ।
२. नंदी च पृ ३७ : सामण्णधारणं पडुच्च णियमा एगठिया, धारणत्यविकपणताए भिण्णत्था ।
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