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परिशिष्ट २ । ३१५
"श्वानधन-कुत्तों को पालने वाला। मृताशा-मृत व्यक्तियों से श्मशान घाट पर प्राप्त होने वाली वस्तुओं
पर जीने वाला। श्मशानवृत्ति-श्मशानघाट पर कार्य करने वाला। नीच-अन्यान्य नीच कार्य करने वाला। ___इस प्रकार कार्यगत विभिन्नता होने पर भी जातिगत एकता के
आधार पर सभी एकार्थक हैं।' चालित्तए (चालयितुम्)
एक प्रकार से ये सारे शब्द मूलस्थान से च्युत करने की विभिन्न अवस्थाओं के द्योतक हैं। इनका अर्थभेद इस प्रकार हैचालित-स्वीकृत व्रत के प्रति अन्यथा भाव पैदा करना। क्षुभित—कृत संकल्प के प्रति संशय पैदा करना। खंडित-व्रत को आंशिक रूप से खंडित करना। भंजित-व्रत को सम्पूर्ण रूप से तोड़ देना।
विपरिणामित-संकल्प के विपरीत अध्यवसाय करना। 'चित्त (चित्त)
चित्त, मन और विज्ञान-ये तीनों शब्द सामान्य रूप से पर्यायवाची हैं, लेकिन इनमें कुछ अर्थ-भेद भी हैचित्त-चेतना का अंश । मन-मनोवर्गणा के पुद्गलों से उपरंजित पौद्गलिक द्रव्य ।' विज्ञान-विवेक चेतना या विशिष्ट चेतना।
बौद्ध साहित्य में भी चित्त शब्द के पर्याय में चित्त, मन, मानस, हदय, पण्डर, मनायतन, मनिन्द्रिय, विज्ञाण आदि शब्दों का उल्लेख हुआ है।' १. उशाटी प३२४ । २. (क) अनुद्वाचू पृ १३ : चित्त इत्यात्मा।
(ख) वही, पृ १३ : तदेव मनोद्रव्योपरञ्जितं मनः। ३. धसं ३६ ।
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